भाई मेरे! उन्हें सुलझाओगे कैसे? उलझाव ही यही है कि प्रेम का अभाव है। जीवन की समस्याएं ही इसलिए हैं कि प्रेम के रसस्रोत से हमारे संबंध छूट गए हैं। भक्ति का प्रवाह नहीं है इसलिए जीवन में समस्याओं के डबरे भर गए हैं।
तुम तो यह कह रहे हो, अभी लोग बहुत बीमार हैं, अभी औषधि की बात करने से क्या फायदा? पहले लोग तो ठीक हो लें, पहले लोग स्वस्थ हो लें फिर औषधि की चिंता करेंगे। तुम्हारा प्रश्न ऐसा है।
भक्ति औषधि है। भक्ति का अर्थ क्या है? भगवान से जुड़ने का उपाय। उससे नहीं जुड़े हैं यही तो दुःख है। उससे टूट गए हैं यही तो पीड़ा है। उसे भूल गए हैं, विस्मरण कर बैठे हैं यही तो अंधकार है। उसकी तरफ पीठ कर ली है और कचरे की तरफ उन्मुख हो गए हैं। धन से जुड़ गए हैं, ध्यान से टूट गए हैं। पद से जुड़ गए हैं, परमात्मा से टूट गए हैं। देह से जुड़ गए हैं, आत्मा से टूट गए हैं। इससे ही जीवन में इतना दुःख है।
और यह दुःख बिना प्रेम और भक्ति में डूबे मिटेगा नहीं। और ये समस्याएं उलझी ही रहेंगी। तुम जितना सुलझाओगे उतनी उलझती जाएंगी क्योंकि तुम ही उलझे हुए हो। तुम तो सुलझो! सुलझानेवाला तो सुलझे! तुम जो भी करोगे, गलत हो जाएगा।
ऐसा ही समझो कि एक पागल आदमी भवन बनाए। यह भवन बनेगा नहीं। बनेगा भी तो गिरेगा। इससे तो बिना भवन के रह लेना बेहतर है। इस पागल आदमी ने बहुत भवन बनाए हैं, सब गिर गए । यह पागल आदमी जो भी करेगा उसमें इसके पागलपन की छाप होगी।
आदमी ने कुछ कम उपाय किए हैं समस्याएं हल करने के लिए? समस्याएं कम हुईं? पांच हजार साल में एक भी समस्या नहीं मिटी। हां, पांच हजार साल के लंबे चेष्टा के इतिहास में नई—नई समस्याएं जरूर खड़ी हो गईं। पुरानी अपनी जगह हैं और नई समस्याओं की कतारें बंध गई हैं। पुरानी समस्या तो जाती ही नहीं, उसको सुलझाने में नई समस्याएं और आ जाती हैं।
लेकिन कुछ लोग इस पृथ्वी पर हुए हैं जिनके जीवन में समस्या नहीं थी, जिनके जीवन में समाधान था। लेकिन समाधान आता कहां से है? समाधान आता है समाधि से। ये दोनों शब्द एक ही धातु से बने हैं। जिसका चित्त भीतर मौन हो जाता है, शून्य हो जाता है, उस शून्य चित्त में पूर्ण का अवतरण होता है।
और तुम्हारे भीतर परमात्मा का प्रकाश आ जाए तो सारी समस्याएं ऐसे ही तिरोहित हो जाती हैं, जैसे दीये के जल जाने पर अंधेरा तिरोहित हो जाता है; या सूरज के निकल आने पर रात विदा हो जाती है। अंधेरी रात में तुम पक्षियों से कितनी ही प्रार्थनाएं करो कि गाओ गीत, कि खोलो कंठ; कि कोयल, तुझे हुआ क्या? क्यों चुप हो? तुम्हारी सब चेष्टाएं व्यर्थ जाएंगी। सूरज को उगने दो, पक्षियों के कंठों से गीतों के झरने फूटने लगेंगे। अनायास हो जाता है।
नाम सुमिर मन बाँवरे
ओशो
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