मैं तुम्हें कमल की याद दिलाना चाहता हूँ। कीचड़ की निंदा में मत पेड़ो, कमल की तलाश करो।, और जिस कद तुम कीचड़ में कमल को पा लोगे, उस दिन क्या कीचड़ को धन्यवाद न दोगे? उस दिन क्या देह को धन्यवाद न दोगे? उस दिन क्या इस पार्थिव जगत के प्रति अनुग्रह से न भरोगे? जिस पार्थिव जगत में परमात्मा का अनुभव हो सकता है। क्या उस पार्थिव जगत की निंदा की जा सकती है? मैं तुम्हें संसार के प्रति प्रेम से भरना चाहता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि तुम्हारे ह्रदय में संसार के निषेद की जो सदियों-सदियों पुरानी धारणाओं के संस्कार है। वो आमूल मिट जाएं, उन्हें पोंछ डाला जाए।
वे ही तुम्हें रोक रहें है, परमात्मा को देखने और जानने से। नाचों, तो तुम पाओगें उसे। नृत्य में वह करीब से करीब होता है। गुनगुनाओ, गाओ, तो वह भी गुनगुनाएगा तुम्हारे भीतर, गाएगा तुम्हारे भीतर। ध्यान रहें, परमात्मा के मंदिर में वे ही लोग प्रवेश करते है, जो नाचते हुए प्रवेश करते है, जो हंसते हुए प्रवेश करते है। जो आनंदित प्रवेश करते है। रोते हुए लोगों ने परमात्मा के द्वार पर कभी मार्ग नहीं पाया है।
ओशो
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