क्या मरने के बाद? आमतौर से हमें यही खयाल है कि
परलोक का अर्थ मरने के बाद है। लेकिन जब आत्मा मरती ही नहीं, तो मरने के
बाद परलोक का अर्थ ठीक नहीं है। परलोक इस लोक के साथ, यहीं और अभी मौजूद
है, जस्ट बाई दि कार्नर। परलोक कहीं मरने के बाद और नहीं है। परलोक यहीं और
अभी मौजूद है। पर हमें उसका कोई पता नहीं है। जिसे अपना पता नहीं, उसे
परलोक का पता नहीं हो सकता; क्योंकि परलोक में जाने का द्वार स्वयं का
अस्तित्व है, स्वयं का ही होना है।
जिसे अपना पता है, वह एक ही साथ परलोक और लोक की देहली पर, बीच में खड़ा
हो जाता है। इस तरफ झांकता है तो लोक, उस तरफ झांकता है तो परलोक। बाहर सिर
करता है तो लोक, भीतर सिर करता है तो परलोक। परलोक अभी और यहीं है।
ब्रह्म कहीं दूर नहीं, आपके बिलकुल पड़ोस में, आपके पड़ोसी से भी ज्यादा
पड़ोस में है। आपके बगल में जो बैठा है आदमी, उसमें और आपमें भी फासला है।
लेकिन उससे भी पास ब्रह्म है। आपमें और उसमें फासला भी नहीं है।
जब जरा गर्दन झुकाई देख ली
दिल के आईने में है तस्वीरे-यार।
बस, इतना ही फासला है, गर्दन झुकाने का। यह भी कोई फासला हुआ!
बाहर लोक है, भीतर परलोक है।
गीता दर्शन
ओशो
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