कल मैं एक सूफी कहानी पढ़ता था। एक गरीब खानाबदोश तीर्थयात्रा से वापस
लौट रहा था। रास्ते में उसे एक मरूद्यान में, भयंकर रेगिस्तान के बीच एक
छोटे से मरूद्यान में पानी का इतना मीठा झरना मिला कि उसने अपनी चमड़े की
बोतल में जल भर लिया। सोचा, अपने सम्राट को भेंट करूंगा। इतना प्यारा, इतना
स्वच्छ उसने जल देखा नहीं था। और इतनी मिठास थी उस जल में।
भर लिया अपनी चमड़े की बोतल में और पहला काम उसने यही किया, राजधानी
पहुंचा तो जाकर राजा के द्वार पर दस्तक दी। कहा, कुछ भेंट लाया हूं सम्राट
के लिए। बुलाया गया। उसने बड़ी तारीफ की उस झरने की और कहा, यह जल लाया हूं।
इतना मीठा जल शायद ही आपने जीवन में पिया हो। सम्राट ने थोड़ा सा जल लेकर
पिया, खूब प्रसन्न हुआ, आनंदित हुआ। उस गरीब की झोली सोने की अशर्फियों से
भर दी। उसे विदा किया।
दरबारियों ने भी कहा कि थोड़ा हम भी चखकर देखें। सम्राट ने कहा, रुको;
पहले उसे जाने दो। जब वह चला गया तब सम्राट ने कहा, भूलकर मत पीना। बिल्कुल
जहर हो गया है। लेकिन उस गरीब आदमी के प्रेम को देखो। जब उसने भरा होगा तो
मीठा रहा होगा। लेकिन चमड़े की बोतल में, महीनों बीत गए उस जल को भरे हुए।
वह बिल्कुल सड़ चुका है। जहरीला हो गया है। घातक भी हो सकता है। इसलिए मैंने
एक ही घूंट पिया। और फिर मैंने बोतल सम्हालकर रख ली। उसके सामने मैं
तुम्हें यह जल नहीं देना चाहता था क्योंकि मुझे भरोसा नहीं था तुममें इतनी
समझ होगी कि तुम उसके सामने ही कह न दोगे कि यह जहर है। भूलकर भी इसे पीना
मत।
स्वच्छ से स्वच्छ जल भी जब झरनों में नहीं बहता तो जहरीला हो जाता है।
तुम्हारे आंसू अगर तुम्हारे आंख के झरनों से न बहे, तुम्हारे शरीर में जहर
होकर रहेंगे। तुम्हारे रोएं अगर आनंद में नाचना चाहते थे, न नाचे तो
तुम्हारे भीतर वही ऊर्जा जहर बन जाएगी।
इस जगत् में लोग इतने कडुवे क्यों हो गए हैं? इसीलिए हो गए हैं। इतना
तिक्त स्वाद हो गया है लोगों में। शब्द बोलते हैं तो उनके शब्दों में जहर
है। गीत भी गाएं तो उनके गीतों में गालियों की धुन होती है। सब जहरीला हो
गया है। क्योंकि जीवन एक कला भूल गया है बांटने की, देने की, लुटाने की।
लुटाओ! ‘दोनों हाथ उलीचिए यही सज्जन को काम।
‘लोग पागल कहें, ठीक ही कहते हैं। बुरा न मानना। जो पागल कहे उसको भी
बांटना। कौन जाने! तुम्हें पागल कहने में भी तुम्हारे प्रति उसका आकर्षण ही
कारण हो। कौन जाने! तुम्हें पागल कहकर वह अपनी सिर्फ सुरक्षा कर रहा हो।
नाम सुमिर मन बाँवरे
ओशो
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