हमने अभी तक प्रकाश देखा नहीं है। आप कहेंगे, प्रकाश देखा नहीं है!
प्रकाश देख रहे हैं। सुबह सूरज निकलता है और हम प्रकाश देखते हैं। और रात
चांद आता है और चांदनी छा जाती है और हम प्रकाश देखते हैं। प्रकाश हमने
देखा है। नहीं, फिर भी मैं आपसे कहता हूं प्रकाश अभी आपने देखा नहीं है।
अभी केवल प्रकाशित चीजें देखी हैं। जब सूरज निकलता है तब आप प्रकाश नहीं
देखते हैं, सिर्फ प्रकाशित चीजें देखते हैं — पहाड़, नदी, झरने, वृक्ष, लोग।
अभी यहां बिजली के बल्व जल रहे हैं। आप कहेंगे, हम प्रकाश देखते हैं। आप
प्रकाश नहीं देखते। बिजली का बल्व दिखाई पड़ता है लोगों पर पड़ता हुआ। लोग जो
प्रकाशित हैं, वे दिखाई पड़ते हैं। आब्जेक्ट्स दिखाई पड़ते हैं।
प्रकाश का अनुभव बाहर के जगत में होता ही नहीं। बाहर के जगत में केवल
प्रकाशित चीजें दिखाई पड़ती हैं। और जब प्रकाशित चीजें नहीं दिखाई पड़ती हैं,
तो हम कहते हैं, अंधकार है। इस कमरे में कब अंधकार हो जाता है? जब इस कमरे
में कोई चीज दिखाई नहीं पड़ती है, तो हम कहते हैं, अंधकार है। और जब चीजें
दिखाई पड़ती हैं, तो हम कहते हैं, प्रकाश है। प्रकाशित चीजों को देखा है
हमने, सीधे प्रकाश को नहीं देखा है।
अगर कोई भी चीज इस कमरे में न हो तो आपको प्रकाश दिखाई नहीं पड़ेगा। चीज
से टकराता है प्रकाश, चीज का आकार दिखाई पड़ता है, तो आपको लगता है प्रकाश
है। चीज अगर बिलकुल स्पष्ट दिखाई पड़ती है, तो आप कहते हैं, ज्यादा प्रकाश
है। अस्पष्ट दिखाई पड़ती है, तो कहते हैं, कम प्रकाश है। नहीं दिखाई पड़ती
है, तो कहते हैं, अंधकार है। बिलकुल अंदाज नहीं आता, तो कहते हैं, महा
अंधकार है। लेकिन न तो आपने प्रकाश देखा है, न आपने अंधकार देखा है। अनुमान
है हमारा कि जब चीजें दिखाई पड़ रही हैं तो प्रकाश होगा।
असल में प्रकाश इतनी सूक्ष्म ऊर्जा है कि बाहर उसके दर्शन नहीं हो सकते।
प्रकाश के दर्शन तो भीतर ही होते हैं, क्योंकि भीतर कोई चीज नहीं होती,
जिसको प्रकाशित किया जा सके। भीतर कोई आब्जेक्ट्स नहीं हैं जो प्रकाशित हो
जाएं और उनको आप देख लें। भीतर जब प्रकाश का अनुभव होता है तो शुद्ध प्रकाश
का, सीधे प्रकाश का, इमीजिएट, बिना किसी चीज के माध्यम के प्रकाश का ही
अनुभव होता है। सिर्फ प्रकाश!
और एक फर्क। बाहर जो भी हम देखते हैं, मैंने कहा, प्रकाशित चीजें देखते
हैं और दूसरी बात प्रकाश का स्रोत देखते हैं और प्रकाशित चीजें देखते हैं।
बीच में जो प्रकाश है, वह हम कभी नहीं देखते। सूरज दिखाई पड़ता है, यह बिजली
का बल्व दिखाई पड़ता है, इधर नीचे चमकती हुई प्रकाशित चीजें दिखाई पड़ती
हैं। दोनों के बीच में जो प्रकाश है, वह दिखाई नहीं पड़ता। स्रोत दिखाई पड़ता
है प्रकाश का। जिन चीजों पर पड़ता है, वे चीजें दिखाई पड़ती हैं।
लेकिन भीतर जब प्रकाश दिखाई पड़ता है तो न तो वहां चीजें होती हैं और न
वहा सोर्स होता है- सोर्सलेस लाइट। वहां कोई सूरज नहीं होता, जिसमें से
प्रकाश आ रहा है। वहां कोई दीया नहीं जलता, जिसमें से प्रकाश आ रहा है।
वहां सिर्फ प्रकाश होता है सोर्सलेस, उदगमरहित। उदगमरहित प्रकाश।
वस्तुएं-शून्य जगत। उस शून्य में जब प्रकाश पहली दफा दिखाई पड़ता है, तब अगर
कबीर, तब अगर मोहम्मद, और तब अगर सूफी फकीर या बाउल फकीर या झेन फकीर
नाचने लगते हैं और कहते हैं कि तुम जिसे प्रकाश कहते हो, वह अंधेरा है…।
ईशावास्य उपनिषद
ओशो
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