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Friday, September 11, 2015

एक को सम्हालने में सब सम्हल जाता है, सब को सम्हालने में एक भी खो जाता है।

       भक्त का मार्ग है कि वह प्रभु को पुकारे, सब दाव लगा दे एक बात पर कि प्रभु मिले तो सब मिला और प्रभु न मिला तो कुछ भी न मिला। सब तरफ से अपनी आकांक्षा ओं को बटोर ले, इकट्ठा कर ले, सारी आकांक्षा ओं को एक प्रभु में डुबो दे। जब सारी आकांक्षा ए एक आकांक्षा बन जाती हैं, उसका नाम अभीप्सा। संसारी आदमी की बहुत आकांक्षा एं होती हैं धन भी पाना, पद भी पाना, प्रतिष्ठा भी पानी, प्रेम भी पाना, सम्मान भी पाना, इस संसार को भी सम्हालना है और अगर कोई दूसरा संसार है तो थोड़ा दान इत्यादि करके उसको भी सम्हालना है, उसके पास पच्चीस वासनाएं होती हैं, सभी को सम्हालने में सभी खो जाता है।

         भक्त की एक ही आकांक्षा होती है। वह सारी आकांक्षा ओं को एक ही आकांक्षा में डुबा देता है, वह सारे तीरों को एक ही निशाने पर लगा देता है, वह सारी किरणों को इकट्ठा कर लेता है और एक ही दाव लगा देता है, भभककर उठती है फिर आग। जैसे छोटे छोटे झरने खो जाएं हो सकता है मरुस्थल में, लेकिन जब सारे छोटे छोटे झरने मिलकर गंगा बन जाते हैं तो फिर सागर तक पहुंचना सुनिश्चित है। छोटी छोटी आकांक्षाओं में बंटा हुआ आदमी खो जाता है, खंडित हो जाता है। भक्ति का अर्थ है, सारी आकांक्षाए एक में लग गइ, एक परमात्मा को पाना ही लक्ष्य तुम्हारे लिए यही मार्ग होगा। तुम्हारी मस्ती इसकी खबर देती है। तुम्हारा खुमार इसकी खबर देता है। भक्ति और भजन, गीत और गायन, वादन और नर्तन तुम्हारा मार्ग होगा। प्यार का जश्न नई तरह मनाना होगा

   गम किसी दिल में सही गम को मिटाना होगा, तुम गाओ भी और जहां कोई रोता हो, उसको भी गाने में लगाओ। तुम हंसों और जहां कोई रोता हो, उसको भी हसाओ। तुम अगर रोओ भी तो तुम्हारे आंसू हंसने चाहिए। तुम अगर रोओ भी तो तुम्हारे रोने में गीत और प्रार्थना होनी चाहिए। तुम अपने सारे जीवन को एक उत्सव के रंग में रंग लो। तुम्हारे भीतर संन्यास घटित ही हो रहा है, सिर्फ उसकी बाह्य घोषणा करने की जरूरत है।
उसकी भी हिम्मत जुटाओ।

अथातो भक्ति जिज्ञासा 

ओशो 

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