Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Thursday, September 10, 2015

मजनू की कहानी

        लैला को उसका पिता लेकर भाग गया है। प्रेमियों से ये पिता बहुत ही डरते हैं। वह एकदम भाग गया है लैला को लेकर। मजनू को खबर आई तो वह भागा हुआ गया है। एक गांव में पड़ाव पड़ा है उसके पिता का। राह के एक किनारे छिप कर वह मजनू प्रतीक्षा करता है। लैला वहां से गुजरी तो उसने पूछा, उसने पूछा कब तक लौटोगी? कब तक आओगी? लैला तो बोल न सकी, पिता पास था और लोग पास थे। उसने हाथ से इशारा किया कि आऊंगी, जरूर आऊंगी। जिस वृक्ष के नीचे उसने वायदा किया था, मजनू उसी वृक्ष के नीचे टिक कर खड़ा हो गया।

     कहते हैं, बारह वर्ष बीत गए और मजनू वहां से नहीं हिला, नहीं हिला, वह खड़ा ही रहा उसी वृक्ष से टिका हुआ। कहते हैं कि धीरे धीरे वह वृक्ष की छाल और मजनू की खाल जुड़ गई। कहते हैं उस वृक्ष का रस उस मजनू के प्राणों और शरीरों में बहने लगा। कहते हैं उसके हाथ पैर से भी शाखाएं निकल गईं और पत्ते छा गए।

      और बारह वर्ष बाद लैला उस रास्ते से वापस निकली। उसने वहां पूछा लोगों से कि मजनू नाम का एक युवक था वह दिखाई नहीं पडता, वह कहां है? लोगों ने कहा कैसा मजनू? बारह साल पहले हुआ करता था। बारह साल से तो वह दिखाई नहीं पड़ा इस गांव में। लेकिन ही, कभी—कभी रात के सन्नाटे में उस जंगल से आवाज आती है लैला, लैला, लैला! जंगल से आवाज? लेकिन आदमी हम दिन में जाते हैं, वहां कोई नहीं दिखाई पड़ता, उस जंगल में कभी कोई आदमी दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन कभी—कभी उस जंगल से आवाज आती है। लोग तो डरने लगे उस रास्ते से निकलने में। एक वृक्ष के नीचे ऐसा मालूम पड़ता है कि जैसे कोई है, और कोई है भी नहीं। और कभी कभी वहां से एकदम आवाज आने लगती है लैला, लैला!

    लैला भागी हुई वहां गई। वहां तो कहीं मजनू दिखाई नहीं पड़ता, लेकिन एक वृक्ष से आवाज आ रही थी। वह उस वृक्ष के पास गई। मजनू अब वहां नहीं था। वह वृक्ष ही हो गया था, लेकिन उस वृक्ष से आवाज आती थी, लैला, लैला! वह सिर पीट पीट कर उस वृक्ष पर रोने लगी और कहने लगी, पागल! तू वृक्ष से हट क्यों नहीं गया? वह वृक्ष कहने लगा, प्रतीक्षा कहीं हटती है?

     प्रेम हमेशा प्रतीक्षा करने को तैयार होता है। सिर्फ सौदेबाज प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं होता। वह कहता है जल्दी निपटाइए। प्रेम तो प्रतीक्षा करने को राजी है अनंतकाल तक। 

साधनापथ 
ओशो 
 


No comments:

Post a Comment

Popular Posts