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Thursday, September 10, 2015

साहस

   एक चर्च में एक पादरी अपने सुनने वालों को करेज क्या है, साहस क्या है, यह समझाता था। वह समझा रहा था कि साहस क्या है न: उसने बताया कि अकेले होने का नाम साहस है। एक बच्चे ने पूछा उस चर्च में बैठे हुए कि हमें थोड़ा सा किसी कहानी से समझा दें तो हम समझ जाएं, किसी उदाहरण से। अकेले होने का क्या मतलब?

    तो उस पादरी ने कहा कि समझ लो कि तुम तीस विद्यार्थी हो और पहाड़ पर गए हो पिकनिक के लिए सैर के लिए, यात्रा के लिए। दिन भर तुमने यात्रा की। रात तुम थके मांदे अपनी जगह ठहरने को आ गए हो। रात तुम इतने थक गए हो कि जल्दी से अपने बिस्तरों में जाने की इच्छा है। तीस में से उनतीस बच्चे अपने अपने बिस्तरे में कंबल ओढ़ कर सो गए हैं, लेकिन एक बच्चा कोने में खड़े होकर प्रार्थना कर रहा है। रात्रि की अंतिम प्रार्थना। ठंडी रात, दिन भर का थका हुआ बच्चा और उनतीस बच्चों ने टेम्पटेशन दिया उसको कि मैं भी सो जाऊं। उनतीस सो गए हैं अपने अपने बिस्तरों में। नहीं, लेकिन वह उनतीस को इनकार करता है और एक कोने में खड़े होकर अपनी रात्रि कालीन प्रार्थना पूरी करता है।

 इसको, उस पादरी ने कहा मैं कहता हूं साहस।

      फिर एक महीने बाद वह पादरी उस चर्च में वापस आया और उसने कहा कि बच्चों! मैंने पिछली बार तुम्हें साहस के संबंध में कुछ समझाया था। क्या तुम याद कर सकते हो कि मैंने क्या समझाया था? जिस बच्चे ने पूछा था उसने खड़े होकर कहा आपने कहा था अकेले होने का साहस, बस, यही असली साहस है। यही अकेले होने की हिम्मत। बस, यही धार्मिक आदमी का लक्षण है।

उस पादरी ने पूछा मैंने तुम्हें एक घटना भी समझाई थी, क्या तुम दोहरा सकते हो?

उस बच्चे ने कहा कि हमने उस घटना को और अच्छा बना लिया है।

उस पादरी ने पूछा मतलब?

उसने कहा कि समझ लीजिए कि आप तीस संन्यासी हैं किसी पहाड़ पर गए हुए हैं। तीस पादरी पहाड़ पर गए हुए हैं। दिन भर के थके मांदे, भूखे आप रात में घूम कर अपने स्थान पर वापस लौटे हैं। उनतीस पादरी ठंड में कंपते हुए एक दूसरे के डर से प्रार्थना कर रहे हैं और एक कंबल के भीतर जाकर सो गया है। तो आपने समझाया था, यह है साहस, और निश्चित ही पहले वाले मामले से दूसरे वाले मामले में ज्यादा साहस की जरूरत है।

   लेकिन धार्मिक आदमी को गहरे से गहरे साहस को, अकेले होने के साहस को जुटाना पड़ता है। और उपेक्षा का मैं मतलब यह लेता हूं कि आप इतने आत्मविश्वास से भर गए हैं कि सारे जगत के मत की उपेक्षा कर सकते हैं। और धार्मिक आदमी आत्मविश्वास से ही निर्मित होता है, सेल्फ कांफिडेंस से निर्मित होता है। जितना आत्मविश्वास से भरा हुआ व्यक्ति होगा उतना ही सारे जगत के प्रति, लोगों के प्रति, लोग क्या कहते हैं, परंपराएं क्या कहती है, रूढियां क्या कहती हैं, शास्त्र क्या कहते हैं, गुरु क्या कहते हैं, इस सबके प्रति वह उपेक्षा कर सकता है।

जितना आत्मविश्वास कम होगा उतनी ही उपेक्षा जुटानी मुश्किल है। आत्मविश्वास बिलकुल नहीं होगा तो वह आदमी कभी भी उपेक्षा के इस द्वार से पार नहीं हो सकता है।

धार्मिक मनुष्य आत्मविश्वास ही तो उसका सहारा है, लेकिन क्या कभी आपने सोचा कि जब आप जनमत की उपेक्षा नहीं कर पाते हैं तो आप अपने आत्मविश्वास की हत्या कर रहे हैं, आप अपने बल को तोड़ रहे हैं। जब भी आप झुकते हैं असत्य के लिए, मत के लिए, भीड़ के लिए तभी आप परमात्मा की विपरीत दिशा में यात्रा कर रहे हैं।

साधनापथ

ओशो 

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