मुल्ला नसरुद्दीन एक बार एक जंगल में बैठा हुए था और एकदम जंगल में जैसे एक भूकंप आ
गया हो। सारे जानवर उसके सामने से भागते हुए निकले। थोड़ी देर तो वो बैठे देखता रहा कि मामला क्या है? लेकिन जब उन्होंने देखा कि पूरे जंगल के
पशु पक्षी सभी भागे जा रहे हैं एक दिशा में, तो उसे भी थोड़ी हैरानी हुई। मुल्ला ने एक हिरण को पकड़ कर पूछा कि बात क्या है, कहां भागे जाते हो? उसने
कहा कि छोड़िए, इधर रुकने की फुर्सत नहीं है। आपको पता नहीं, आखिरी दिन आ
गया है दुनिया का, सृष्टि नष्ट होने के करीब है! महाप्रलय आ रहा है!
लेकिन नसरुद्दीन ने पूछा कि तुझे कहा किसने? उसने कहा कि वे जो लोग आगे जा रहे
हैं। आगे वालों के पीछे मुल्ला भाग कर पहुँचा उन्हें रोका, पकड़ा, पूछा कि
जा कहां रहे हो? शेर भी भागे जा रहे हैं, हाथी भी भागे जा रहे हैं। जाते
कहां मित्र? उन्होंने कहा कि आपको पता नहीं, महाप्रलय आ रहा है? लेकिन
बताया किसने? तो उन्होंने कहा वे लोग जो आगे जा रहे हैं। बुद्ध भागते
भागते बड़े परेशान हो गए, क्योंकि जो भी मिला उसने कहा, जो लोग आगे जा रहे
हैं।
आखिर में, सबसे आखिर में खरगोशों की एक भीड़ मिली। उनसे मुल्ला ने पूछा कि
दोस्तो! कहां भागे चले जा रहे हो? उनकी तो हालत समझ सकते हैं। जब शेर और
हाथी भाग रहे हों तो बेचारे खरगोश! उन खरगोशों ने तो रुकने की भी हिम्मत
नहीं की। भागते ही भागते चिल्लाया कि वह जो आगे आगे एक खरगोश था उनका
नेता। उन्होंने मुल्ला ने बामुश्किल उसको पकड़ा और पूछा कि दोस्त! कहां भाग
रहे हो? क्योंकि उसके आगे अब कोई भी नहीं था। उसने कहा. कहां भाग रहा हूं?
महाप्रलय होने वाली है। किसने तुझे कहा? उसने कहा. किसी ने कहा नहीं, ऐसा
मुझे अनुभव हुआ है। अनुभव तुझे कैसा हुआ?
मैं एक वृक्ष के नीचे सो रहा था, दोपहर थी, ठंडी हवाएं चल रही थीं और एक
छाया में सोया हुआ था, वह खरगोश कहने लगा, फिर एकदम से कोई जोर की आवाज हुई
और मेरी मां ने मुझसे बचपन में कहा था कि जब ऐसी आवाज होती है तो महाप्रलय
आ जाता है। नसरुद्दीन ने उस खरगोश से कहा पागल! किस वृक्ष के नीचे बैठा था? वह
कहने लगा आमों का वृक्ष था। उसने ने कहा कोई आम तो नहीं गिरा था? उसने
कहा यह भी हो सकता है। बेचारा खरगोश! आम भी काफी है गिर जाए तो। मुल्ला उसे
लेकर उस वृक्ष के पास लौटा। वहां तो काफी आम गिरे थे। वह खरगोश कहने लगा,
जरूर मैं इस जगह सोया हुआ था। ये आम ही गिरे होंगे। लेकिन मेरी मां ने मुझे
कहा था कि जब महाप्रलय होती है तो बड़े जोर की आवाज होती है। आवाज बड़े जोर
की थी। और सारा जंगल भाग रहा था एक खरगोश के कहने पर!
सारी दुनिया भाग रही है करीब करीब ऐसे ही। हम भी अगर इस भांति भागते हैं
जीवन में……एक आदमी खबर कर देता है, हिंदू मुस्लिम दंगा हो गया, फिर कोई भी
नहीं पूछता कि किस खरगोश ने यह हरकत शुरू की है। फिर गांव का मौलवी, पंडित,
संन्यासी, धार्मिक, पूजा पुजारी, माला फेरने वाला, जनेऊ वाला, तिलकछापे
वाले सब भागने लगते हैं। हिंदू मुसलमान दंगा हो गया है!
यह सारी मनुष्य जाति अत्यंत एब्सर्डिटी, छूता से भरी हुई है और इस मूढ़ता
की बुनियाद में एक बात है, वह यह कि हम दिए हुए ज्ञान को पकड़ कर तृप्त हो
जाते हैं। उसे स्वीकार कर लेते हैं। जो आदमी बाहर से आए हुए ज्ञान से
चुपचाप राजी हो जाता है उस आदमी के भीतर वह घटना पैदा नहीं होती कि उसका
अपना ज्ञान पैदा हो सके। अपना ज्ञान पैदा होता है उस वैक्यूम में, उस शून्य
में जब आप बाहर के ज्ञान को इनकार कर देते हैं। कह देते हैं कि नहीं,
हमारे द्वार पर नहीं है प्रवेश इस जान का जो दूसरे का है। जो दूसरे का है
वह हमारे लिए अज्ञान के ही बराबर है, अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है।
अज्ञान कम से कम अपना तो है। और यह ज्ञान है दूसरे का। जो आदमी दूसरे के
ज्ञान को कह देता है कि नहीं, अज्ञान है मेरा और मेरे ज्ञान से ही टूट सकता
है। इस गणित को बहुत गहराई में समझ लेना जरूरी है।
साधनापथ
ओशो
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