मुल्ला नसरुद्दीन एक बार जुए में पकड़ गया था। एक राजधानी में धर्मगुरुओं
की एक बड़ी समिति थी। एक यहूदी धर्मगुरु, एक ईसाई धर्मगुरु, एक हिंदू
धर्मगुरु और मुल्ला नसरुद्दीन एक ही होटल में ठहराए गए थे। लेकिन रात जुए
में पकड़े गए चारों। अदालत में जब सुबह मौजूद किए गए तो मजिस्ट्रेट भी थोड़ा
संकोच से भर गया। कल सांझ ही इनके प्रवचन उसने सुने थे। और बड़ा प्रभावित
हुआ था। लेकिन पुलिस का आदमी ले आया था अदालत में, तो अब मुकदमा तो चलता
ही। फिर भी उसने सोचा, जल्दी निपटा देने जैसा है। इसे आगे खींचने जैसा नहीं
है।
पूछा उसने ईसाई पुरोहित से कि क्या आप जुआ खेल रहे थे? ईसाई पुरोहित ने
कहा, क्षमा करें, इट डिपेंड्स ऑन हाउ यू डिफाइन। यह बहुत सी बातों पर
निर्भर करेगा कि आप जुए की व्याख्या क्या करते हैं। ऐसे तो पूरी जिंदगी ही
जुआ है। मजिस्ट्रेट जल्दी मुक्त करना चाहता था। उसने देखा, यह तो लंबा
थियोलाजी का मामला हो जाएगा। उसने कहा, साफ साफ कहिए आप जुआ नहीं खेल रहे
थे? ईसाई पादरी ने कहा, पूरी जिंदगी ही जुआ है जहां, वहां जुए से बचा कैसे
जा सकता है! फिर भी जज ने कहा, मैं समझ गया कि आप जुआ नहीं खेल रहे थे, आप
बरी किए जाते हैं। ईसाई पादरी बाहर चला गया।
यहूदी रबी से पूछा, आप जुआ खेल रहे थे? क्योंकि आपके सामने टेबिल पर
रुपए रखे थे और ताश पीटे जा रहे थे। यहूदी रबी ने कहा, क्षमा करें,
अभिप्राय अपराध नहीं है। अभी जुआ शुरू नहीं हुआ था, अभी सिर्फ आशय था। हम
शुरू करने को ही थे जरूर, लेकिन अभी शुरू नहीं हुआ था। और जो शुरू नहीं हुआ
है, अभी अदालत के कानून के बाहर है। जज ने कहा, माना। आप बरी किए जाते
हैं, आप जुआ नहीं खेल रहे थे, सिर्फ अभिप्राय, अभिप्राय पर कोई कानून नहीं
लग सकता। आप जाए। हिंदू धर्मगुरु से पूछा, आप भी इसमें सम्मिलित थे?
हिंदू धर्मगुरु ने कहा, यह जगत माया है। जो दिखाई पड़ता है, वैसा है
नहीं,इट जस्ट एपियर्स। कैसा जुआ? कैसे पत्ते? कौन पकड़ा गया? किसने पकड़ा पू
मजिस्ट्रेट ने कहा, मैं समझा। आप जाएं। जब जगत ही असत्य है, तो कैसा जुआ?
बिलकुर। ठीक कहते हैं।
लेकिन मुल्ला बहुत मुसीबत में था, क्योंकि उसी के हाथ में पत्ते पीटते
हुए पकड़े गए थे, और उसी के सामने पैसों का ढेर भी लगा था। मजिस्ट्रेट ने
कहा कि इन तीनों को छोड़ देना तो आसान था, नसरुद्दीन तुम्हारे लिए क्या
करें? तुम क्या जुआ खेल रहे थे? नसरुद्दीन ने पूछा, क्या मैं पूछ सकता हूं
विद इम? किसके साथ? क्योंकि वे तीनों तो जा ही चुके थे, बरी हो चुके थे।
नसरुद्दीन ने कहा, अकेले भी जूआ अगर खेला जा सकता है, तो जरूर खेल रहा था।
हमारा सारा आचरण दूसरे के संबंध में है। अकेले के आचरण का कोई अर्थ नहीं
है। सत्य बोरने तो किसी से, झूठ बोलें तो किसी से, चोरी करें तो किसी की,
अचोर रहें तो किसी के संबंध में। हमारा सब आचरण दूसरे से संबंध है। इसलिए
ऋषि ने पहले तो कहा, ब्रह्मचर्य संपदा है संन्यासी की। दूसरे के
साथ ऐसा संबंधित होना, जैसे ईश्वर संबंधित होता हो।
निर्वाण उपनिषद
ओशो
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