जिनको आप साधारणतः शांत समझते हैं, वे भयंकर अशांति के जन्मदाता हो
सकते हैं। तो जो आदमी कभी-कभी क्रोध करता है, उसके क्रोध से जरा सावधान
रहना। जो अकसर करता है, उसके क्रोध का कोई मतलब नहीं है; हवा आयी और गयी।
छोटे बच्चे बड़े अपराध नहीं कर सकते। और उसका कारण यह है कि वे छोटा-छोटा
क्रोध करके दिनभर निकाल लेते हैं। इसलिए छोटे बच्चे क्षणभर में क्रोध
करेंगे, क्षणभर बाद बिलकुल शांत हो जायेंगे–जैसे तूफान कभी आया ही न हो।
भरोसा ही न आयेगा कि इस बच्चे ने थोड़ी देर पहले एक भयंकर क्रोध किया था। वह
मुस्कुरा रहा है, नाच रहा है, प्रसन्न है। बच्चे से बड़े अपराध की संभावना
नहीं है।
जो लोग अपने जीवन को सहज प्रगट करते रहते हैं, ये कोई महात्मा तो नहीं
हो सकते, लेकिन ये महा-अपराधी भी नहीं हो सकते। इनके महा-अपराधी होने का
कोई उपाय नहीं है।
दमन से महा-अपराध पैदा होता है। अपराध से बचना हो जाता है, महा-अपराध
पैदा हो जाता है; क्योंकि ऊर्जा का एक नियम है कि आप उसे इकट्ठी करके रख
नहीं सकते–उबल जायेगी, ओवरफलो हो जायेगी। एक सीमा है जब तक आप संभाल
सकेंगे, और फिर संभालने के बाहर हो जायेगी। इस तरह अगर आप संभालते गये,
संभालते गये, तो वह सीमा आ जाती है जहां आपके भीतर इकट्ठी शक्ति प्रगट
होगी, और अगर वह आपके विपरीत प्रगट हो जाये तो आप विक्षिप्त भी हो सकते
हैं।
मनसविद कहते हैं कि पागल आदमी वही है, जिसने बहुत दबाया है। दबाना इतना ज्यादा हो गया है कि अब होश में उसे निकालने का कोई उपाय न रहा, तो
उसने होश भी खो दिया है। अब वह बेहोशी में निकाल रहा है। पागलखानों में जो
लोग बंद हैं, वे दमित स्थिति के आखिरी परिणाम हैं। तो आप दमन कर-करके विक्षिप्त हो सकते हैं, विमुक्त कभी नहीं हो सकते।
विमुक्त होना हो, तो दबाना कोई रास्ता नहीं है। और जिसे हम दबाते हैं, हम
उससे और ज्यादा बुरी तरह ग्रसित हो जाते हैं। उसकी जकड़ हम पर बढ़ जाती है।
तो दबाने से तो कोई कभी पहुंचता नहीं, पर मन को बिना समझे बहुत लोग
दबाने की कोशिश में लग जाते हैं। वह सरल दिखता है, सुगम दिखता है,
तात्कालिक परिणामकारी दिखता है–लेकिन लंबे अरसे में भयानक है, खतरनाक है।
ओशो
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