भोगना चाहो, तो भोगना पड़ता है। भोगना न चाहो, तो कट सकता है। सब तुम पर
निर्भर है। अगर हिसाबी किताबी हो तो भोगना पड़ेगा। हिसाब किताब जला दिया,
अस्तित्व भी जला देता है। अस्तित्व को दर्पण है। तुम जैसे हो वैसे ही झलका
देता है। अब बंदर अगर दर्पण में झाकेगा तो तुम यह मत समझना कि देवता की
तस्वीर दिखायी पड़ेगी। बंदर दर्पण में झांकेगा तो बंदर ही दिखायी पड़ेगा।
निश्चित तुमने जो सुना है, ठीक सुना है, लोग कहते रहे हैं: हिसाबी किताबी लोग, गणित की लकीर से चलनेवाले लोग। हिसाब किताब में यह बात समझ में आती है कि बुरा किया है, तो भला करके बुरे को मिटाना पड़ेगा। तभी न्याय हो पाएगा। तभी हिसाब किताब पूरा होगा। इसलिए उनको लगता है कि जन्मों जन्मों तक बुरा किया, अब जन्मों जन्मों तक भला करेंगे, तब कहीं चुकतारा हो पाएगा। ये हिसाबी किताबी की दुनिया है।
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन का दादा मर रहा था। तो दादा ने अपने पोते को समझाते हुए कहा, नसरुद्दीन, बेटा काम करो, बेकार फिरना अच्छा नहीं है। जब मैं तुम्हारी उस का था तब मैंने एक फर्म मैं छ: रुपये महीने की नौकरी की थी और फिर पांच साल के बाद उतनी ही बड़ी फर्म का मालिक बन गया था। मुल्ला नसरुद्दीन ने हाथ मटका कर कहा, दादा जी, वे जमाने गये। अब ऐसी धांधली नहीं चलती। हर जगह कायदे से हिसाब रखा जाता है। हिसाब रखा जाता है। हिसाबी किताबी मन एक ढंग से सोचता है। प्रेम दूसरे ढंग से सोचता है। वे ढंग अलग हैं।
अगर तुम ज्ञान के मार्ग पर चलोगे तो तुमने जो सुना है वह ठीक ही सुना है कि पूर्वजन्म के पाप कहें, या प्रारब्ध, उन्हें भोगना पड़ेगा। भोगना ही नहीं पड़ेगा, उनके प्रतिकार के लिए उतने ही शुभ कर्म करने पडेंगे। और यह तो अंतहीन प्रक्रिया होगी। इसमें से छूटोगे कैसे? कितने जन्मों तक तुमने पाप किये हैं? उतने ही जन्म लग जाएंगे उन्हें भोगने में। और इस बीच भी तुम खाली तो नहीं बैठे रहोगे। इस बीच भी कुछ तो करोगे। और कुछ भी करोगे तो पाप होता रहेगा। तुम यह मत सोचना कि पाप करने से ही पाप होता है। जीने मात्र से पाप हो जाता है। सांस लेने से पाप हो रहा है। देखते नहीं, तेरापंथी जैनमुनि नाक पर मुंहपट्टी बाधे रखता है। किसलिए? क्योंकि सांस की गर्म हवा हवा में तैरते छोटे छोटे कीटाणुओं को मार डालती है। सांस ही लेने में पाप हो रहा है। एक श्वास में करीब एक लाख जीवाणुओं की हत्या हो जाती है।
अब तुम क्या करोगे, सांस तो लतै कम से कम! अपने खाट पर ही पड़े रहोगे, मगर सांस तो लोगे? भोजन तो करोगे? पानी तो पीओगे? जिओगे तो कुछ? चलोगे फिरोगे? हिलने डुलने में पाप हो रहा है। जीने का अर्थ, कहीं न कहीं कुछ न कुछ होगा। तो ये इतने जन्म तुम्हें पुराने पाप काटने में लग जाएंगे, और इस बीच तुम बैठे नहीं रहोगे, गोबर गणेश बन कर बैठे नहीं रहोगे, कुछ न कुछ करोगे, उसे करने से फिर नया पाप होता रहेगा, फिर इस शृंखला का अंत कहा होगा? यह गणित बड़ा लंबा लंबा है। इस लंबे गणित में से बाहर आने का उपाय नहीं है। लेकिन जो बाहर आना नहीं चाहते, उनको यह गणित बड़ा सहारे का है। वे कहते हैं, हम करें भी क्या? प्रारब्ध तो भोगना पड़ेगा। यह प्रारब्ध को भोगने की बात उनकी तरकीब है। वे बाहर निकलना नहीं चाहते।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं हम संन्यास तो लेना चाहते हैं, मगर अभी प्रारब्ध? जैसे उन्हें पता है कि प्रारब्ध क्या है। जैसे उन्हें पता है कि प्रारब्ध रोक रहा है। वे कहते हैं, अभी तो प्रारब्ध ऐसा है कि अभी तो संसार में रहना पड़ेगा। संसार में रहना चाहते हो, सीधा क्यों नहीं कहते, प्रारब्ध की आडू क्यों लेते हो? यह चालबाजी क्यों? यह बेईमानी क्यों? यह होशियारी क्यों? इतना ही कहो ना सीधा कि अभी संसार में रहना है। अभी धंधा करना है, अभी चोरी बेईमानी करनी है। प्रारब्ध, ऊंचा शब्द उपयोग कर लिया। उसके पीछे तुम छिप गये।
उससे तुम्हें सहारा मिल गया। अब तुम्हें यह कहने का भी कारण नहीं रहा कि मैं अपनी वजह से रुका हूं। प्रारब्ध रोक रहा है! तुम्हें जो करना है वह तुम करते हो, तुम्हें जो नहीं करना है वह तुम नहीं करते हो। लेकिन प्रारब्ध के बहाने तुम अपने को बचा लेते हो। स्थगित कर रहे हो तुम जीवन को। तुम कहते हो पहले सब भोग लेंगे, फिर कहीं मुक्ति होगी। तुम असत्य में मुक्ति चाहते नहीं।
भक्ति का शास्त्र छलांग में भरोसा करता है। भक्ति का शास्त्र कहता है, तुम परमात्मा पर छोड़ दो इसी क्षण और तुम मुक्त हो गये।
अथतो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
निश्चित तुमने जो सुना है, ठीक सुना है, लोग कहते रहे हैं: हिसाबी किताबी लोग, गणित की लकीर से चलनेवाले लोग। हिसाब किताब में यह बात समझ में आती है कि बुरा किया है, तो भला करके बुरे को मिटाना पड़ेगा। तभी न्याय हो पाएगा। तभी हिसाब किताब पूरा होगा। इसलिए उनको लगता है कि जन्मों जन्मों तक बुरा किया, अब जन्मों जन्मों तक भला करेंगे, तब कहीं चुकतारा हो पाएगा। ये हिसाबी किताबी की दुनिया है।
मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन का दादा मर रहा था। तो दादा ने अपने पोते को समझाते हुए कहा, नसरुद्दीन, बेटा काम करो, बेकार फिरना अच्छा नहीं है। जब मैं तुम्हारी उस का था तब मैंने एक फर्म मैं छ: रुपये महीने की नौकरी की थी और फिर पांच साल के बाद उतनी ही बड़ी फर्म का मालिक बन गया था। मुल्ला नसरुद्दीन ने हाथ मटका कर कहा, दादा जी, वे जमाने गये। अब ऐसी धांधली नहीं चलती। हर जगह कायदे से हिसाब रखा जाता है। हिसाब रखा जाता है। हिसाबी किताबी मन एक ढंग से सोचता है। प्रेम दूसरे ढंग से सोचता है। वे ढंग अलग हैं।
अगर तुम ज्ञान के मार्ग पर चलोगे तो तुमने जो सुना है वह ठीक ही सुना है कि पूर्वजन्म के पाप कहें, या प्रारब्ध, उन्हें भोगना पड़ेगा। भोगना ही नहीं पड़ेगा, उनके प्रतिकार के लिए उतने ही शुभ कर्म करने पडेंगे। और यह तो अंतहीन प्रक्रिया होगी। इसमें से छूटोगे कैसे? कितने जन्मों तक तुमने पाप किये हैं? उतने ही जन्म लग जाएंगे उन्हें भोगने में। और इस बीच भी तुम खाली तो नहीं बैठे रहोगे। इस बीच भी कुछ तो करोगे। और कुछ भी करोगे तो पाप होता रहेगा। तुम यह मत सोचना कि पाप करने से ही पाप होता है। जीने मात्र से पाप हो जाता है। सांस लेने से पाप हो रहा है। देखते नहीं, तेरापंथी जैनमुनि नाक पर मुंहपट्टी बाधे रखता है। किसलिए? क्योंकि सांस की गर्म हवा हवा में तैरते छोटे छोटे कीटाणुओं को मार डालती है। सांस ही लेने में पाप हो रहा है। एक श्वास में करीब एक लाख जीवाणुओं की हत्या हो जाती है।
अब तुम क्या करोगे, सांस तो लतै कम से कम! अपने खाट पर ही पड़े रहोगे, मगर सांस तो लोगे? भोजन तो करोगे? पानी तो पीओगे? जिओगे तो कुछ? चलोगे फिरोगे? हिलने डुलने में पाप हो रहा है। जीने का अर्थ, कहीं न कहीं कुछ न कुछ होगा। तो ये इतने जन्म तुम्हें पुराने पाप काटने में लग जाएंगे, और इस बीच तुम बैठे नहीं रहोगे, गोबर गणेश बन कर बैठे नहीं रहोगे, कुछ न कुछ करोगे, उसे करने से फिर नया पाप होता रहेगा, फिर इस शृंखला का अंत कहा होगा? यह गणित बड़ा लंबा लंबा है। इस लंबे गणित में से बाहर आने का उपाय नहीं है। लेकिन जो बाहर आना नहीं चाहते, उनको यह गणित बड़ा सहारे का है। वे कहते हैं, हम करें भी क्या? प्रारब्ध तो भोगना पड़ेगा। यह प्रारब्ध को भोगने की बात उनकी तरकीब है। वे बाहर निकलना नहीं चाहते।
मेरे पास लोग आते हैं, वे कहते हैं हम संन्यास तो लेना चाहते हैं, मगर अभी प्रारब्ध? जैसे उन्हें पता है कि प्रारब्ध क्या है। जैसे उन्हें पता है कि प्रारब्ध रोक रहा है। वे कहते हैं, अभी तो प्रारब्ध ऐसा है कि अभी तो संसार में रहना पड़ेगा। संसार में रहना चाहते हो, सीधा क्यों नहीं कहते, प्रारब्ध की आडू क्यों लेते हो? यह चालबाजी क्यों? यह बेईमानी क्यों? यह होशियारी क्यों? इतना ही कहो ना सीधा कि अभी संसार में रहना है। अभी धंधा करना है, अभी चोरी बेईमानी करनी है। प्रारब्ध, ऊंचा शब्द उपयोग कर लिया। उसके पीछे तुम छिप गये।
उससे तुम्हें सहारा मिल गया। अब तुम्हें यह कहने का भी कारण नहीं रहा कि मैं अपनी वजह से रुका हूं। प्रारब्ध रोक रहा है! तुम्हें जो करना है वह तुम करते हो, तुम्हें जो नहीं करना है वह तुम नहीं करते हो। लेकिन प्रारब्ध के बहाने तुम अपने को बचा लेते हो। स्थगित कर रहे हो तुम जीवन को। तुम कहते हो पहले सब भोग लेंगे, फिर कहीं मुक्ति होगी। तुम असत्य में मुक्ति चाहते नहीं।
भक्ति का शास्त्र छलांग में भरोसा करता है। भक्ति का शास्त्र कहता है, तुम परमात्मा पर छोड़ दो इसी क्षण और तुम मुक्त हो गये।
अथतो भक्ति जिज्ञासा
ओशो
No comments:
Post a Comment