प्रेम पूर्ण आदमी अगर अकेले में बैठा है, तो आप कहेंगे यह आदमी कितने प्रेम से भरा हुआ बैठा है।
फूल एकांत में खिलते है जंगल के तो वहां भी सुगंध बिखेरते रहते
है। चाहे कोई सूंघने वाला हो या न हो। रास्तें से कोई निकले या न निकले।
फूल सुगंधित होता रहता है। फूल का सुगंधित होना स्वभाव है। इस भूल में आप
मत पड़ना कि आपके लिए सुगंधित हो रहा है।
प्रेमपूर्ण होना व्यक्तित्व बनाना चाहिए। वह हमार व्यक्तित्व हो, इससे कोई संबंध नहीं कि वह किसके प्रति।
लेकिन जितने प्रेम करने वाले लोग है, वे सोचते है कि मेरे प्रति
प्रेमपूर्ण हो जाये। और किसी के प्रति नहीं। और उनको पता नहीं है कि जो
सबके प्रति प्रेम पूर्ण नहीं है वह किसी के प्रति भी प्रेम पूर्ण नहीं हो
सकता।
पत्नी कहती है पति से, मुझे प्रेम करना बस, फिर आ गया स्टाप।
फिर इधर-उधर कहीं देखना मत, फिर और कहीं तुम्हारे प्रेम की जरा सी धारा न
बहे, बस प्रेम यानी इस तरफ। और उस पत्नी को पता नहीं है कि प्रेम झूठा है,
वह अपने हाथ से किये ले रही है, जो पति प्रेमपूर्ण नहीं है हर स्थिति
में, हरेक के प्रति,वह पत्नी के प्रति भी प्रेम पूर्ण नहीं हो सकता।
प्रेम पूर्ण चौबीस घंटे के जीवन का स्वभाव है। वह ऐसी कोई नहीं
कि हम किसी के प्रति प्रेमपूर्ण हो जायें और किसी के प्रति प्रेमहीन हो
जायें। लेकिन आज तक मनुष्य इसको समझने में समर्थ नहीं हो सका है।
बाप कहता है कि मेरे प्रति प्रेम पूर्ण, लेकिन घर में जा चपरासी
है उसके प्रति….वह तो नौकर है। लेकिन उसे पता है कि जो बेटा एक बूढ़े नौकर
के प्रति प्रेमपूर्ण नहीं हो पाया है….वह बूढ़ा नौकर भी किसी का बाप है।
लेकिन उसे पता नहीं कि जो बेटा एक बूढे नौकर के प्रति प्रेमपूर्ण
नहीं हो सका वह आज नहीं कल, जब उसका बाप भी बूढ़ा हो जायेगा। उसके प्रति भी
प्रेम पूर्ण नहीं रह पायेगा। तब वह बाप पछतायेंगा। कि मेरा लड़का मेरे
प्रति प्रेमपूर्ण नहीं है। लेकिन इस बाप को पता ही नहीं कि लड़का
प्रेमपूर्ण हो सकता था। उसके प्रति भी, अगर जो भी आसपास थे, सबके प्रति
प्रेमपूर्ण होने की शिक्षा दी गयी होती। तो वह उसके प्रति भी प्रेमपूर्ण
होता।
प्रेम स्वभाव की बात है। संबंध की बात नहीं है।
प्रेम रिलेशनशिप नहीं है। प्रेम है ‘’स्टेट ऑफ माइंड’’ मनुष्य के व्यक्तित्व का भीतरी अंग है।
तो हमें प्रेम पूर्ण होने की दूसरी दीक्षा दी जानी चाहिए एक-एक
चीज के प्रति। अगर बच्चा एक किताब को भी गलत ढंग से रखे तो गलती बात है,
उसे उसी क्षण टोकना चाहिए कि ये तुम्हारे व्यक्तित्व के प्रति शोभा
दायक नहीं है। कि तुम इस भांति किताब को रखो। कोई देखेगा,कोई सुनेगा, कोई
पायेगा कि तुम किताब के साथ दुर्व्यवहार किये हो? तुम कुत्ते के साथ गलत
ढंग से पेश आये हो यह तुम्हारे व्यक्तित्व की गलती है।
क्रमशः
सम्भोग से समाधी की ओर
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