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Friday, October 9, 2015

व्यर्थ को बनाने में श्रम नहीं करना पड़ता; सार्थक को बनाने में बड़ा श्रम करना पड़ता है

एक आदमी ने एक नया बंगला खरीदा। बगीचा लगाया। फूल के बीज बोये। पौधे भी आने शुरू हुए लेकिन साथ साथ घास पात भी उग गया। वह थोड़ा चिंतित हुआ। उसने पड़ोसी नसरुद्दीन से पूछा कि कैसे पहचाना जाए कि क्या घास पात है और क्या असली पौधा है। नसरुद्दीन ने कहा, ‘सीधी तरकीब है, दोनों को उखाड़ लो। जो फिर से उग आये, वह घास पात है।’

व्यर्थ की यह खूबी है उखाड़ो, उखाड़ने से कुछ नहीं मिटता। उखाड़ने में सार्थक तो खो जाएगा, व्यर्थ फिर उग आयेगा। सार्थक को बोओ, तब भी पका नहीं कि फसल काट पाओगे; क्योंकि हजार बाधाएं हैं। व्यर्थ को बोओ ही मत तो भी फसल काटोगे; उखाड उखाडकर फेंको कि और और उग आएगा।

व्यर्थ को बनाने में श्रम नहीं करना पड़ता; सार्थक को बनाने में बड़ा श्रम करना पड़ता है। इसलिए, तुमने व्यर्थ को चुना है। वह अपने से उग रहा है। किसी को चोर होने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती; चोरी घास पात की तरह उगती है। किसी को कामवासना से भरने के लिए कोई श्रम करना पड़ता है? कोई प्रार्थना, कोई योग, कोई साधना? वह घास पात की तरह उगती है। क्रोध करने के लिए कहीं सीखने जाना पड़ता है? किसी विद्यापीठ में? नहीं, वह घास पात की तरह बढ़ता है। ध्यान सीखना हो तो कठिनाई शुरू होती है। प्रेम सीखना हो तो बड़ी कठिनाई शुरू होती है; मोह बढ़ता है अपने आप, घास पात की तरह। प्रेम श्रम मांगता है और प्रेम को अगर लाना हो तो घास पात को प्रतिक्षण उखाड़कर फेंकना पड़ेगा; घास पात उस सबको खा जाएगा, जो सार्थक है; उस सब को ढांक लेगा, छिपा लेगा।

व्यर्थ की एक खूबी है कि वह तुमसे श्रम नहीं मांगता; तुम आलसी बने रहो, वह अपने आप बढ़ता है। वह तुम्हें मृत्यु के आखिरी क्षण तक पकड़े रहेगा। साधक का अर्थ है: जिसने सार्थक की खोज शुरू कर दी। सार्थक को पाना यात्रा है पर्वत की तरफ, ऊंचाई की तरफ। व्यर्थ को पाना लुढ़कने जैसा है; जैसे, पत्थर पहाड़ से लुढ़कता हो, वह अपने ही आप चला आता है। गुरुत्वाकर्षण उसे नीचे ले आता है, कुछ करना नहीं पड़ता। 

तुमने अब तक जीवन में कुछ नहीं किया है, इसलिए तुम व्यर्थ हो। तुम कहोगे, ‘नहीं, ऐसी बात नहीं है। मैने धन कमाया, पद प्रतिष्ठा पर पहुंचा। मैंने बड़ी उपाधियां इकट्ठी की हैं।’ तो मैं तुमसे यह कहता हूं कि वह तुमने किया नहीं, वह घास पात की तरह अपने आप बढ़ा है। और, अगर गौर से तुम भीतर विश्लेषण करोगे तो तुम्हें भी दिखाई पड़ जाएगा कि धन कमाने के लिए तुमने कुछ किया नहीं; धन की आकांक्षा घास पात की तरह तुम्हारे भीतर थी, वह बढ़ गयी है। तुम उखाड़कर भी फेंको तो भी बढ़ जाती है। तुमने घर बनाने के लिए कुछ किया नहीं; वह वासना तुम्हारे भीतर घास पात की तरह बड़ी है। वह मृत्यु के आखिरी क्षण तक तुम्हें पकड के रहेगी।

साधक का अर्थ है: जो इस सत्य को समझ जाए कि जो अपने आप बढ़ रहा है, वह व्यर्थ ही होगा; मुझे कुछ बोना पड़ेगा।

शिव सूत्र 

ओशो 

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