तुमने देखा, काली की प्रतिमा को, काली को मां कहते है. वह मातृत्व का
प्रतीक है. और देखा गले में मनुष्य के सिरों का हार पहने हुए है. हाथ में
अभी-अभी काटा हुआ आदमी का सिर लिए हुए है, जिससे खून टपक रहा है. काली
खप्पर वाली, भयानक, विकराल रूप है, सुंदर चेहरा है, जीभ बाहर निकली हुई है.
भयावनी और देखा तुमने नीचे अपने पति की छाती पर नाच रही है. इसका अर्थ
समझे, इसका अर्थ हुआ की मां भी है और मृत्यु भी है. यह कहने का एक ढंग
हुआ—बड़ा काव्यात्म ढंग है. मां भी है, मृत्यु भी है. तो काली को मां भी
कहते है, और सारा प्रतीक इकट्ठा किया हुआ है. भयावनी भी है और सुंदर भी है.
स्त्री प्रतीक है. स्त्री से तुम स्त्री मत समझ लेना, अन्यथा सूत्र का
अर्थ चूक जाओगे. स्त्री से तुम यह महत्वपूर्ण बात समझना की स्त्री
जन्मिदात्री है. तो जहां से वर्तुल शुरू हुआ है वहीं समाप्त होगा.
ऐसा समझो, वर्षा होती है बादल से. पहाड़ों पर वर्षा हुई, हिमालय पर वर्षा
हुई, गंगोतरी से जल बहा, गंगा बनी, वहीं समुद्र में गिरी. फिर पानी भाप बन
कर उठता है बादल बन जाते है. वर्तुल वहीं पूरा हाता है जहां से शुरू हुआ
था. बादल बन कर ही वर्तुल पूरा होता है.
पूर्व ने हमने जान है हर चीज वर्तुलाकार है. सब चीजें वहीं आ जाती है.
बूढा फिर बच्चे जैसा हाँ जाता है, असहाय. जैसे बच्चा बिना दाँत के पैदा
होता है, ऐसा बूढ़ा फिर बिना दाँत के हो जाता है. जैसा बच्चा असहाय होता है
मां बाप को चिंता करनी पड़ती है—उठाओ, बिठाओ, खिलाओ, ऐसी ही दशा बूढे की
हो जाती है. वर्तुल पूरा हुआ.
जीवन की सारी गति वर्तुलाकार है, मंडलाकार है. स्त्री में जन्म मिलता है
तो कहीं गहरे में स्त्री से ही मृत्यु भी मिलती होगी. अब अगर स्त्री शब्द
को हटा दो चीजे और साफ हो जाएगी. क्योंकि हमारी पकड़ यह होती है: स्त्री
यानी स्त्री.
हम प्रतीक नहीं समझ पाते; हम काव्यो के संकेत नहीं समझ पाते. स्त्रियों को
लगेगा, यह तो उनके विरोध में वचन है. और पुरूष सोचेगे, हम तो पहले ही से
पता था, स्त्रियाँ बड़ी खतरनाक है. यहाँ स्त्री से कोई लेना देना नहीं है.
तुम्हारी पत्नी से कोई संबंध नहीं है. यह तो प्रतीक है, वह तो काव्य् की
प्रतीक है, यह तो सूचक है कुछ कहना चाहते है इस प्रतीक के द्वारा.
कहना यह चाहते है कि काम से जन्म होता है और काम के कारण ही मृत्यु होती
है. होगी ही. जिस वासना के कारण देह बनती है, उसी वासना के विदा हो जाने पर
देह विसर्जित हाँ जाती है. वासना ही जैसे जीवन है. और जब वासना की ऊर्जा
क्षीण हो गयी तो आदमी मरने लगता है. बूढे का क्या अर्थ है, इतना ही अर्थ है
कि अब वासना की ऊर्जा क्षीण हो गई है. अब नदी सूखने लगी है अब जल्दी ही
नदी तिरोहित हो जाएगी. बचपन का क्या अर्थ है—गंगोतरी. नदी पैदा हो रहीं है.
जवानी का अर्थ है: नदी बाढ़ पर है. बुढ़ापे का अर्थ है, नदी विदा होने के
करीब आ गई, समुद्र में मिलन का क्षण आ गया; नदी अब विलीन हो जाएगी.
कामवासना से जन्मी है. इस जगत में जो भी, जहां भी जन्म घट रहा है फूल खिल
रहा है, पक्षी गुनगुना रहे है, बच्चे पैदा हो रहे है, अंडे रखे जा रहे है.
सारे जगत में सृजन चल रहा है वह काम-ऊर्जा है, वह सेक्स-एनर्जी है. तो जैसे
ही तुम्हारे भीतर से काम ऊर्जा विदा हो जाएगी, वैसे ही तुम्हारा जीवन
समाप्त होने लगा, मौत आ गयी.
मौत क्या है, काम-ऊर्जा का तिरोहित हो जाना मौत है. इसलिए तो मरते दम तक
आदमी कामवासना से ग्रसित रहता है. क्योंकि आदमी मरना नहीं चाहता.
इसलिए कामवासना के साथ हम अंत तक घिरे और पीड़ित रहते है. उसी किनारे को
पकड़ कर तो हमारा सहारा है. न स्त्रियाँ उपलब्ध हों तो लोग नंगे चित्र ही
देखते रहेंगे; फिल्म में ही देख आयेंगे जा कर; राह के किनारे खड़े हो
जायेंगे; बाजार में धक्का-मुक्की कर आयेंगे. कुछ जीवन को गति मिलती मालूम
होती है. वरना तो लगता है अब ठहरे तब ठहरे.
वासना, काम जीवन है. जीवन का पर्याय है काम. और काम का खो जाना है मृत्यु .
इसलिए इन दोनों को एक साथ रखा है. काली के प्रतीक के रूप में.
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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