लंका में एक मंदिर है, जहां बुद्ध का दात पूजा जा रहा है। और
वैज्ञानिकों ने खोज की है और वे कहते हैं यह बुद्ध का दांत ही नहीं है।
बुद्ध की तो बात छोड़ो, यह आदमी का ही दांत नहीं है। वह किसी जानवर का दांत है। मगर बौद्ध मानने को तैयार नहीं हैं। और उनको भी दिखायी पड़ता है कि इतना
बड़ा दांत आदमी का होता ही नहीं। इस ढंग का दात आदमी का नहीं होता।
वैज्ञानिकों ने सब परीक्षण करके तय कर दिया है कि किस तरह के जानवर का दात
है। मगर पूजा जारी है!
वे कहते हैं : सदा से चली आयी है; हम छोड़ कैसे सकते हैं! सदियां मूढ़
थीं? पच्चीस सौ साल से हम इसको पूजते हैं! किसी को पता नहीं चला, आपको पहली
दफा पता चला! पूजा जारी रहेगी।
अस्थियां पूंजी जाती हैं। राख पूंजी जाती है। लाशें पूंजी जाती हैं। और जीवंत का तिरस्कार होता है! आदमी बहुत अदभुत है।
जब बुद्ध जिंदा होते हैं, तब पत्थर मारे जाते हैं। और जब बुद्ध मर जाते
हैं, तब पूजा होती है! जब क्राइस्ट जिंदा थे, तो सूली लगायी। और जब अब मर
गए हैं, तो कितने चर्च! लाखों चर्च! कितनी चर्चा! जितनी किताबें जीसस पर
लिखी जाती हैं, किसी पर नहीं लिखी जातीं। और जितने पंडित—पुरोहित जीसस के
पीछे हैं, उतने किसी के पीछे नहीं। और जितने मंदिर जीसस के लिए खड़े हैं,
उतने मंदिर किसी के लिए नहीं हैं। आधी पृथ्वी ईसाई है!
और इस आदमी को सूली लगा दी थी। और इस आदमी को जब सूली लगी थी, तो लोग
पत्थर फेंक रहे थे, सड़े—गले छिलके फेंक रहे थे, लोग इसका अपमान कर रहे थे;
हंस रहे थे। और जब यह आदमी सूली पर लटका हुआ प्यास से तड़फ रहा था और इसने
पानी मांगा, तो किसी ने गंदे डबरे में एक चीथड़े को भिगोकर एक बांस पर
लगाकर जीसस की तरफ कर दिया कि इसे चूस लो।
जीसस जिंदा थे, तो यह व्यवहार। जीसस को खुद अपनी सूली ढोनी पड़ी थी
गोलगोथा के पहाड़ पर। गिर पड़े रास्ते में, क्योंकि सूली वजनी थी, बड़ी थी।
घुटने टूट गए; लहूलुहान हो गए। और पीछे से कोड़े भी पड़ रहे है कि उठो और
अपनी सूली ढोओ।
यह व्यवहार जीवित जीसस के साथ और अब पूजा चल रही है! और अब वही क्रास सभी मंदिरों में प्रतिष्ठित हो गया है। भजन कीर्तन हो रहे हैं!
और मैं तुमसे कहता हूं : जीसस अगर वापस आ जाएं, तो फिर सूली लगे।
आदमी वहीं का वहीं है। आदमी कहीं गया नहीं है।
आदमी मुर्दों को पूजता है। क्यों? क्योंकि मुर्दों के द्वारा कोई
क्रांति नहीं होती, तुम सुरक्षित रहते हो। जिंदा जीसस तुम्हारे जीवन को बदल
डालेंगे। जिंदा जीसस से दोस्ती करोगे, प्रेम लगाओगे, तो बदलाहट होगी। मरे
हुए जीसस से बदलाहट नहीं होती। मरे हुए जीसस को तो तुम बदल दोगे। तुम्हें
वे क्या बदलेंगे।
इसलिए आदमी अतीत के साथ अपने मोह को बांधकर रखता है। इसी मोह के कारण
इतनी सड़न है, इतनी गंदगी है, धर्म के नाम पर इतना अनाचार है। धर्म के नाम
पर इतना रक्तपात है, युद्ध, हिंसा।
धर्म के नाम पर जितने लोग मारे गए हैं, और किसी नाम पर नहीं मारे गए
हैं। और धर्म प्रेम की बात करता है! और प्रार्थना की बात करता है। और
परिणाम में हत्या होती है।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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