तुम परमात्मा के लिए एक घंटा भी नहीं देना चाहते, तो चूकोगे, बहुत बुरी
तरह चूकोगे, बहुत पछताओगे! और फिर पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत! मौत
ने अगर द्वार पर दस्तक दे दी, तब बहुत पछताओगे। क्योंकि उस क्षण में जितना
समय ध्यान के लिए दिया था वही बचा हुआ सिद्ध होता है और जो और तरह गया वह
गया। वह गया, नाली मैं बह गया! जो ध्यान में लगाया था वही बच जाता है।
परमात्मा के सामने तुमने जो ध्यान में समय बिताया था, बस उसका ही लेखा है,
बाकी कुछ नहीं लिखा जाता। बाकी तो सब दो कौड़ी का है, उसका कोई मूल्य नहीं
है।
तुम परमात्मा के सामने खड़े हो कर यह नहीं कह सकोगे कि रोज टेनिस खेलने जाता था, कि इतनी फिल्में देखीं, कि एक फिल्म नहीं छोड़ी।
एक सज्जन को तो मैं जानता हूं, मेरे छोटे गांव में, वहां एक ही
सनेमागृह है, एक फिल्म आती है तो चार -पांच दिन चलती है, वे एक ही फिल्म
चार -पांच दिन देखते हैं। उनसे मैंने पूछा : एक ही फिल्म चार -पांच दि
देखना बड़ी हिम्मत की बात है! आदमी एकाध ही बार देखने से… हिंदी फिल्में और
करीब-करीब दूसरी फिल्मों से ही, उनकी ही चोरी और उन्हीं का पुनःरुक्तिकरण होता है। तुम एक ही फिल्म पाच बार देखते हो!
उन्होंने कहा। देखता कौन है! मगर न जायें तो करें क्या? न जायें तो
जायें कहां? समय कट जाता है। कभी-कभी सो भी लेते हैं वहां , कभी देख भी
लेते हैं। और मालूम भी है कि अब यह फिल्म तो दो दफे देख ली तो इसका पता है,
क्या-क्या होने वाला है। लेकिन फिर भी जायें तो कहां जायें? तुम
देखते हो जीवन कैसा रिक्त है, कैसा खाली है! और हंसना मत उन पर, क्योंकि
तुम भी यही कर रहे हो अलग- अलग ढंग से। वही जो तुमने कल किया था, आज भी
करोगे। और वही तुमने परसों भी किया था, वही तुमने नरसों भी किया था।
पुनरुक्ति ही तो तुम्हारा जीवन है। तुम दोहराते ही तो रहते हो। सुबह से
सांझ तक एक कोस्कू के बैल की तरह घूमते रहते हो। वही झगड़े वही प्रेम, वही
मनाना, वही बुझाना! वही हार, वही जीत, वही अकड़! बस वही है! वही क्रोध, वही
संबंध। अंतर क्या है?
अगर तुम अपनी जिंदगी को जरा गौर से देखो तो तुम पाओगे एक पुनरुक्ति है।
लेकिन तुम देखते भी नहीं, क्योंकि देखोगे तो बहुत ऊब पैदा होगी, बहुत
घबड़ाहट होगी। तुम देखते ही नहीं, भागे चले जाते हो- इस आशा में के कोल्ह के
बैल नहीं हो, कहीं पहुंच रहे हो, अब पहुंचे तब पहुंचे।
जीवन की अंतिम घड़ी में बहुत रोओगे। मौत के कारण नहीं; वह जो जीवन
गंवाया, उसके कारण। अभी समय है। अभी थोड़े से क्षण परमात्मा को देना शुरू कर
दो। अभी एक घंटे – भर बस बैठ ही रहो। और बहुत बाधायें आयेंगी। अगर अखबार
पढ़ो तो पत्नी बच्चों से कहती है : शांत, डैडी अखबार पढ़ रहे हैं! अगर ध्यान
करोगे तो बच्चे आ कर कान में अंगुली डालेंगे और पत्नी कहेगी कि है। ठीक है,
फिजूल समय गंवाना!
पत्निया जितना ध्यान से डरती हैं उतना किसी और चीज से नहीं। क्योंकि
ध्यान, फिर आखिरी कदम संन्यास। पति भी ध्यान से बहुत डरते हैं। अगर पत्नी
ध्यान करने लगे तो बेचैन। यहां मुझे रोज इस तरह के अनुभव होते हैं। अगर पति
ध्यान करे तो पत्नी आ जाती है कि आप क्यों हमारी गृहस्थी बरबाद करना चाहते
हैं? जैसे ध्यान से गृहस्थी बरबाद होना कोई अनिवार्यता है! ही, पहले होती
रही है बरबाद, वह मुझे पता है। वह संन्यास गलत था। वह संन्यास भ्रांत था।
मैं उस संन्यास का पक्षपाती नहीं हूं। किसी ने उसका लेखा-जोखा नहीं किया
कि बुद्ध और महावीर कि पीछे जो लोग घर-द्वार छोड्कर चले गये, उनके घर
-द्वारों का क्या हुआ? पत्नियों ने भीख मांगी, बच्चे बीमारियों में मरे, कि
स्त्रिया वेश्याएं हो गइ, कि बूढ़ों को सड्कों पर घिसट- घिसट कर भिख मतानी
पड़ी, कि मरने को उनको कफन भी न मिला। इसका किसी ने कोई हिसाब नहीं लगाया
है। लेकिन जिस दिन भी यह हिसाब लगाया जायेगा, उस दिन बड़ी हैरानी होगी।
महावीर एक तरह तो पैर फूंक -फूंक कर रखते रहे कि चींटी न मरे, लेकिन उनके
पीछे जो संन्यास खड़ा हुआ उसमें आदमी दबे और मरे, उसमें घर बरबाद हुए, उसमें
गृहस्थिया टूटी।
हंसा तो मोती चुगे
ओशो
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