मोह एक नशा है। जैसे नशे में डूबा हुआ कोई आदमी चलता है, डगमगाता है;
पका पता भी नहीं कि कहां जा रहा है, क्यों जा रहा है; चलता है बेहोशी में,
ऐसे तुम चलते रहे हो। कितना ही तुम सम्हालो अपने पैरों को, इससे कोई फर्क
नहीं पड़ता। सभी शराबी सम्हालने की कोशिश करते हैं। तुम अपने को भला धोखा दे
दो, दूसरों को कोई धोखा नहीं हो पाता। सभी शराबी कोशिश करते हैं कि वे नशे
में नहीं है; जितनी कोशिश करते है, उतना ही प्रगट होता है। और, यह मोह नशा
है।
और जब मैं कहता हूं कि मोह नशा है, तो बिलकुल रासायनिक अर्थों में कहता
हूं कि मोह नशा है। मोह की अवस्था में तुम्हारा पूरा शरीर नशीले द्रव्यों
से भर जाता है वैज्ञानिक अर्थों में भी। जब तुम किसी एक सी के प्रेम में
गिरते हो तो तुम्हारे पूरे शरीर का खून विशेष रासायनिक द्रव्यों से भर जाता
है। वे द्रव्य वही हैं जो भांग में, गांजे में, एल. एस. डी. में हैं।
इसलिए अब जिसके तुम प्रेम में पड़ गये हो, वह सी अलौकिक दिखायी पड़ने लगती
है। वह सी फीकी नहीं मालूम होती। जिस पुरुष के प्रेम में तुम पड़ जाओ, वह
पुरुष इस लोक का नहीं मालूम पड़ता। नशा उतरेगा, तब वह दो कौड़ी का दिखायी
पडेगा। जब तक नशा है..!
इसलिए तुम्हारा कोई भी प्रेम स्थायी नहीं हो सकता क्योंकि नशे की अवस्था
में किया गया है। वह मोह का स्वरूप है। होश में नहीं हुआ है, बेहोशी में
हुआ है। इसलिए हम प्रेम को अंधा कहते हैं। प्रेम अंधा नहीं है, मोह अंधा
है। हम भूल से मोह को प्रेम समझते हैं। प्रेम तो आंख है; उससे बड़ी कोई आंख
नहीं है। प्रेम की आंख से तो परमात्मा दिखायी पड़ जाता है इस संसार में छिपा
हुआ।
मोह अंधा है; जहां कुछ भी नहीं है वहां सब कुछ दिखायी पड़ता है। मोह एक
सपना है। और, जिनको हम योगी कहते है, वे भी इस मोह से पस्त होते हैं।
सिद्धियां तो हल हो जाती हैं। वे कुछ शक्तियां तो पा लेते हैं। शक्तियां
पानी कठिन नहीं है।
दूसरे के मन के विचार पढ़े जा सकते हैं सिर्फ थोड़ा ही उपाय करने की जरूरत
है। दूसरे के विचार प्रभावित किये जा सकते हैं थोड़ा ही उपाय करने की
जरूरत है। आदमी आये तुम बता सकते हो कि तुम्हारे मन में क्या खयाल है। थोड़े
ही उपाय’ करने की जरूरत है। यह एक विज्ञान है; धर्म का इससे कुछ लेना देना
नहीं। मन को पढ़ने का विज्ञान है, जैसे किताब को पढ़ने का विज्ञान है। जो
अनपढ़ है, वह तुम्हें किताब को पढ़ते देखकर बहुत हैरान होता है कि क्या
चमत्कार हो रहा है! जहां कुछ भी दिखायी नहीं पड़ता उसे काले धब्बे हैं वहां
से तुम ऐसा आनंद ले रहे हो कविता का, उपनिषद का, वेद का मंत्रमुग्ध हो रहे
हो! अपढ़ देखकर हैरान होता है।
लेकिन तुम बहुत चमत्कृत होओगे। तुम गये किसी साधु के पास और उसने कहा कि आओ; तुम्हारा नाम लिया, तुम्हारे गांव का पता बताया और कहा कि ‘तुम्हारे घर के बगल में एक नीम का झाडू है’ तुम दीवाने हो गये! लेकिन, साधु को नीम के झाडू से क्या लेना, तुम्हारे गांव से क्या लेना, तुम्हारे नाम से क्या मतलब? साधु तो वह है जिसे यह पता चल गया है कि किसी का कोई नाम नहीं, रूप नहीं, किसी का कोई गांव नहीं। ये गांव, नाम, रूप सब संसार के हिस्से है। तुम संसारी हो! वह साधु भी तुम्हें प्रभावित कर रहा है, क्योंकि वह तुमसे गहरे संसार में है। उसने और भी कला सीख ली।
क्रमशः
शिव सूत्र
ओशो
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