Osho Whatsapp Group

To Join Osho Hindi / English Message Group in Whatsapp, Please message on +917069879449 (Whatsapp) #Osho Or follow this link http...

Monday, October 5, 2015

भय से मुक्ति 1

मैं भावनगर से आया। एक चित्रकार को उसके मां बाप मेरे पास ले आए। योग्य, प्रतिभाशाली चित्रकार है, लेकिन एक अजीब भय से सारी प्रतिभा कुंठित हो गयी है। एक भय पकड़ गया है, जो जान लिये ले रहा है। अमरीका भी गया था वह, वहां भी चिकित्सा चली। मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषण किये, साइकोएनलिसिस की। कोई फल नहीं हुआ सब समझाया जा चुका है, कोई फल नहीं हुआ। मेरे पास लाये हैं,कहा कि हम मुश्किल में पड़ गये हैं। कोई फल होता नहीं है। सब समझा चुके हैं, सब हो चुका है। इसे क्या हो गया है, यह एकदम भयभीत है।

मैंने पूछा, किस बात से भयभीत है? तो उन्होंने कहा कि रास्ते पर कोई लंगड़ा आदमी दिख जाये, तो यह इसको भय हो जाता है कि कहीं मैं लंगड़ा न हो जाऊं। अब बड़ी मुश्किल है। अंधा आदमी मिल जाये, तो घर आकर रोने लगता है कि कहीं मैं अंधा न हो जाऊं। हम समझाते हैं कि तू अंधा क्यों होगा, तू बिलकुल स्वस्थ है, तुझे कोई बीमारी नहीं है। कोई आदमी मरता है रास्ते पर, बस यह बैठ जाता है। यह कहता है कहीं मैं मर न जाऊं। हम समझाते हैं, समझाते समझाते हार गये। डाक्टरों ने समझाया, चिकित्सकों ने समझाया, इसकी समझ में नहीं पड़ता है।

मैंने कहा, तुम समझाते ही गलत हो। वह जो कहता है, ठीक ही कहता है। गलत कहां कहता है? जो आदमी आज अंधा है, कल उसके पास भी आंख थी। और जो आदमी आज लंगड़ा है, हो सकता है कि उसके पास भी पैर हों। और आज उसके पास पैर हैं, कल वह लंगड़ा हो सकता है। और आज जिसके पास आंख है, कल वह अंधा हो सकता है। इसमें यह युवक गलत नहीं कह रहा है। गलत तुम समझा रहे हो। और तुम्हारे समझाने से इसका भय बढ़ता जा रहा है। तुम कितना ही समझाओ कि तू अंधा नहीं हो सकता है। गारंटी कराओ। कौन कह सकता है कि मैं अंधा नहीं हो सकता। सारी दूनिया कहे तो भी निश्‍चित नहीं है कि मैं अंधा नहीं हो सकता। अंधा मैं हो सकता हूं क्योंकि आंखें अंधी हो सकती हैं। मेरी आंखों ने कोई ठेका लिया है कि अंधी नहीं हों! पैर लंगड़े हुए हैं। मेरा पैर लंगड़ा हो सकता है। आदमी पागल हुए हैं। मैं पागल हो सकता हूं। जो किसी आदमी के साथ कभी भी घटा है वह मेरे साथ भी घट सकता हूएए, क्योंकि सारी संभावना सदा है।

मैंने कहा, इस युवक को तुम गलत समझा रहे हो। तुम्हारे गलत समझाने से यह कितनी ही कोशिश करे कि मैं अंधा नहीं हो सकता, लेकिन इसे दिखायी पड़ता है कि अंधे होने की संभावना तुम कितना ही कहो कि नहीं हो सकता है, मिटती नहीं।

उस युवक ने कहा, यही मेरी तकलीफ है। यह जितना समझाते हैं, उतना मैं भयभीत हुए चला जा रहा हूं। मैंने उससे कहा कि यह बिलकुल ही गलत समझाते हैं। मैं तुमसे कहता हूं तुम अंधे हो सकते हो, तुम लंगड़े हो सकते हो, तुम कल सुबह मर सकते हो, तुम्हारी पत्नी तुम्हें कल छोड़ सकती है, मां तुम्हारी दुश्मन हो सकती है, मकान गिर सकता है, गांव नष्ट हो सकता है, सब हो सकता है। इसमें कुछ इनकार करने जैसा जरा भी नहीं है। इसे स्वीकार करो। मैंने कहा, तुम जाओ, इसे स्वीकार करो। सुबह मेरे पास आना।

यह युवक गया है तभी मैंने जाना है कि वह कुछ और ही होकर जा रहा है। अब कोई लड़ाई नहीं है। जो हो सकता है, और जिससे बचाव का कोई उपाय नहीं है, और जिसके बचाव का कोई अर्थ नहीं है और जिसके लड़ने की मानसिक तैयारी बेमानी है। वह हलका होकर गया है।

वह सुबह आया है और उसने कहा कि तीन साल में मैं पहली दफे सोया हूं। आश्रर्य, कि यह बात स्वीकार कर लेने से हल हो जाती है कि मैं अंधा हो सकता हूं। ठीक है, हो सकता हू।

मैंने कहा, तुम डरते क्यों हो अंधे होने से? उसने कहा कि डरता इसलिए हूं कि फिर चित्र न बना पाऊंगा। तो मैंने कहा, जब तक अंधे नहीं हो, चित्र बनाओ, व्यर्थ में समय क्यों खोते हो। जब अंधे हो जाओगे, नहीं बना पाओगे, पका है। इसलिए बना लो, जब तक आंख—हाथ है, बना लो। जब आंख विदा हो जाये, तब कुछ और करना।
लेकिन आंख विदा हो सकती है। सारा जीवन ही विदा होगा एक दिन, सब विदा हो सकता है। किसी की सब चीजें इकट्ठी विदा होती हैं, किसी की फुटकर फुटकर विदा होती हैं, इसमें झंझट क्या है? एक आदमी होलसेल चला जाता है, एक आदमी पार्ट पार्ट में जाता है, टुकड़े टुकड़े में जाता है। किसी की आंख चली गयी तो कुछ और, फिर कुछ और गया। कोई आदमी इकट्ठे ही चला गया।

इकट्ठे जाने वाले समझते हैं कि जिनके थोड़े थोड़े हिस्से जा रहे हैं, वे अभागे हैं। बड़ी मुश्किल बात है। इतना ही क्या कम सौभाग्य है कि सिर्फ आंख गयी है। अभी पैर नहीं गया, अभी पूरा नहीं गया। इतना ही क्या कम सौभाग्य है कि सिर्फ पैर गये हैं, अभी पूरा आदमी नहीं गया है।

क्रमशः 

सम्भोग से समाधी की ओर 

ओशो 

No comments:

Post a Comment

Popular Posts