बड़ा प्यारा वचन है! अगर नदी को तैरना हो तो गऊ की पूंछ पकड़ कर कोई तैर
सकता है। लेकिन भेड़ कि पूंछ अगर पकड़ ली, तो डूबोगे। तुम भी डूबोगे, भेड़
तो डूबने ही वाली है। अगर किसी के साथ तिरना हो तो किसी को पकड़ो -किसी
बुद्ध को, किसी महावीर को, किसी जरथुस्त्र को, किसी कबीर को, किसी नानक को।
क्या भेड़ों को पकड़ रहे हो!
भेड़ प्रतीक है भीड़ का। भीड़ की चाल भेड़ -चाल है। पंडित -पुरोहित
तुम्हारे जैसे ही अंधे हैं। उनके पास भी आंख नहीं है। और उनको तुम पकड़े
हो! नानक कहते हैं : अंधा अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़त। अंधे अंधों को ठेल
रहे हैं ! अंधे अंधों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। दोनों कुएं में गिर रहे
हैं, गिरेंगे ही। कब तक बचेंगे? कहां तक बचेंगे? मगर कतारें हैं। तुम अपने
से आगे वाले को पकड़े हो। तुमसे आगे वाला उससे आगे वाले को पकड़े है। अगर मैं
तुमसे पूछूं कि तुम हिंदू क्यों हो, तो तुम कहते हो : मेरे पिता हिंदू
मेरी मां हिंदू। उनसे पूछो कि वे हिंदू क्यों हैं? वे कहते हैं : हमारे
पिता हिंदू थे, हमारी मां हिंदू थी।
ऐसे तुम परंपराग्रस्त, रूढ़िग्रस्त, अंधविश्वास से भरे – सोचते हो किसी
दिन परमात्मा को उपलब्ध हो सकोगे, उस पार जा सकोगे? किसी जलते हुए दीये का
सहारा लो। ये बुझे दीये काम न आयेंगे। और मंदिर -मस्जिदों में बुझे दीये
हैं। किसी सदगुरु को पकड़ो। मगर सदगुरु को पकड़ना हिम्मत का काम है। पंडित
-पुरोहितों को, तथाकथित साधु- संन्यासियों को। जिनको लाल कहते हैं कोड
अठासी रिख; करोड़ों ऋषि -मुनि घूम-फिर रहे हैं-इनको पकड़ना आसान है। क्यों?
क्योंकि वे तुमसे कुछ जीवन का रूपांतरण करने के लिए नहीं कहते। और कहते भी
हैं तो ऐसी क्षुद्र बातों का रूपांतरण करवाते हैं कि जिनका कोई मूल्य नहीं।
कोई कहता है पान खाना छोड़ दो। कोई कहता है कि बीड़ी न पियो। कोई कहता है
रात भोजन न करो। कोई कहता है पानी छानकर पियो। ये कोई क्रांतिया हैं? पानी
छानकर भी पिया तो तुम सोचते हो राम मिल जायेंगे? इतने से, बस पानी छानकर पी
लेने से? और मैं नहीं कह रहा हूं कि पानी बिना छाने पीना, ख्याल रखना। छान
कर पियो; स्वास्थ्यप्रद है, लेकिन इससे राम के लेने-देने का क्या है? और
मैं तुमसे यह नहीं कह रहा हूं कि खूब दिल खोलकर बीड़ी-सिगरेट पीने लगना।
लेकिन इतना मैं तुमसे कहूंगा कि बीड़ी-सिगरेट न पियो तो यह मत सोचना कि
स्वर्ग में तुम्हारे लिए कोई उत्सव मनाया जायेगा, कि स्वर्ग के द्वार पर
परमात्मा खड़ा फूल- मालाएं लिए स्वागत करेगा, जब तुम पहुंचोगे, क्योंकि
तूमने कभी बिडी नहीं पी। जरा सोचो भी तो, अगर परमात्मा तुमसे पूछेगा, तुमने
किया क्या? तो तुम्हारे पास यही होगा बताने को की बीड़ी नहीं पी! बात ही
बेहूदी लगेगी। बात ही भद्दी लगेगी।
किस मुंह से कहोगे? और मैं यह नहीं कह रहा हूं कि बीड़ी पियो। मेरी बात
को गलत मत समझ लेना। बीड़ी न पीना समझदारी है। बीड़ी पीना नासमझी है। लेकिन
धर्म से क्या लेना-देना? बीड़ी पीनेवाला मूड है, पापी नहीं। मूड है क्योंकि
नाहक धुएं को बाहर – भीतर करता है। वैसे ही हवाओं में अब काफी धुआ है।
अब तुम्हें बीड़ी इत्यादि पीने के जरूरत नहीं है। अब तुम बीड़ी पी ही रहे
हो। धूम्रपान चल ही रहा है। न्यूयॉर्क या बंबई जैसे नगरों में हवा इतने
धुएं से भरी है कि तुम श्वास ले रहे हो, यह धूम्रपान हो रहा है! अब
न्याउयॉर्क में धूम्रपान किये बिना रहा ही नहीं जा सकता। हरेक आदमी
धूम्रपान कर रहा है, अनजाने ही। हवाओं में इतना धुआ है कि वैज्ञानिक कहते
हैं कि हमें आशा नहीं थी कि आदमी के फेफड़े इतने धुएं को झेल सकेंगे। तीन
गुना ज्यादा है मनुष्य की झेलने की क्षमता से। क्योंकि कारें हैं और
फैक्ट्रिया हैं और ट्रेनें हैं, और हवाई जहाज हैं। और सब तरह के उपद्रव
हैं। अब तुम सिगरेट-बीड़ी पियो या न पियो…।
मगर, जो नहीं पीता, बुद्धिमान है। मगर बुद्धिमानी…। यह तो ऐसा ही हुआ,
तुम पैर के बल चलते हो। यह बुद्धिमानी है। तुम चारों हाथ -पैर से चलने लगो
तो यह नालायकी होगी। लेकिन फिर तुम परमात्मा से यह नहीं कह सकते कि मैं दो
पैर से चलता था, चार हाथ -पैर से नहीं चलता था, तो मुझे स्वर्ग मिलना
चाहिए। दो पैर से चलना कोई पुण्य नहीं है, समझदारी है।
और तुम्हारे साधु -संन्यासी तुमसे छुड़वाते क्या हैं? इस तरह की
बेहूदगियो को अणु -व्रत कहा जाता है, छोड़ो कुछ, व्रत ले लो। बड़ा नहीं, कुछ
छोटा ले लो। महाव्रत महात्मा लेते हैं, तुम अणु -व्रत ही ले लो, चलो छोटा
सही। अणु -व्रत भी खूब मजेदार लोग लेते हैं! कोई कहता है कि सप्ताह में एक
दिन नमक नहीं खायेंगे। जैसे परमात्मा नमक का दुश्मन है! मैं तुमसे कहता हूं
: परमात्मा मीठा भी बहुत नमकीन भी बहुत।… कि कोई कहता है एक दिन घी नहीं
खायेंगे। क्या-क्या उपद्रव तुमने बना रखे हैं! मगर ये बातें सस्ती हैं,
सुगम हैं। इनको कोई भी कर सकता है। इनको करने के लिए थोड़ी बुद्धिहीनता
चाहिए बस- थोड़ा बुद्धपन! उतनी योग्यता हो तो इस तरह की बातें कोई भी कर
सकता है।
इस तरह की बातें जो लोग तुमसे करवा लेते हैं, वे अच्छे लगते हैं।
सस्ते में निपटा दिया। परमात्मा पक्का हो गया। मोक्ष निश्चित हो गया। अब बस
दिल में आशाएं कर रहे हैं कि पान छोड़ दिया, तमाखू भी छोड़ दी, एक दिन नमक
भी नहीं खाते, रात भोजन भी नहीं करते। पानी भी छान कर पीते हैं।
अब दिल ही
दिल में बैठे सोच रहे हैं कि उर्वशी स्वर्ग में मिलेगी या नहीं? अब और क्या
चाहिए साधुता के लिए? अब दिल ही दिल में सोच रहे हैं कि अहा, झरने बहते
हैं वहां शराब के! अगर शराब की आदत हो तो ख्याल रखना। जब स्वर्ग के दरवाजे
पर पूछा जाये तुमसे कि कौन से स्वर्ग जाना चाहते हो? फौरन कहना :
मुसलमानों के स्वर्ग में प्राहिबिशन हो ही नहीं सकता, क्योंकि वहां झरने ही
शराब के हैं। वहां पानी कोई पीता ही नहीं। पानी भी, कहां जमीन की बातें
तुम स्वर्ग में उठा रहे हो! पानी भी कोई पीने की चीज है! वहां पीने वाले
पीने वाली चीज पीते हैं। और वहां कोई ऐसा नहीं है कि कुल्हड़ में पी रहे
हैं- नदियों में डुबकी मार रहे हैं! तुम सोच-समझ कर चुनना। हिंदुओं के
स्वर्ग के अपने मजे हैं। मुसलमानों के स्वर्ग के अपने मजे हैं। यहूदियों
के स्वर्ग के अपने मजे हैं!
हंसा तो मोती चुने
ओशो
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