एक बूढ़ा आदमी सदैव बोझ से दबा है। एक अतीत है लंबा अतीत कितनी ही
इच्छाएं हैं मरी हुई, कितनी ही निराशाएं हैं, कितने ही क्षितिज हैं जो
नहीं मिले, कितने ही इंद्रधनुष हैं जो टूट गए। उसका एक लंबा अतीत है और वह
केवल उससे दबा है। एक बूढ़ा आदमी हमेशा अतीत के बारे में सोच रहा है, याद
कर रहा है और बार बार अपनी अतीत की स्मृतियों में डूब रहा है। एक बूढ़ा आदमी
धीरे धीरे भविष्य का भूलने लगता है क्योंकि भविष्य का अर्थ है मृत्यु और
कुछ नहीं, इसलिए अब वह भविष्य में देखने का प्रयत्न नहीं करता। वह पीछे
देखना शुरू करता है। एक बच्चा सदैव आगे देखता है, पीछे कभी भी नहीं क्योंकि
पीछे कुछ भी देखने के लिए नहीं है। बूढ़े के लिए भविष्य में केवल मृत्यु है
और कुछ भी नहीं है।
एक युवा आदमी वर्तमान में है। इसलिए एक युवा आदमी बच्चों को नहीं समझ
पाता और वह एक बूढ़े आदमी को भी नहीं समझ पाता। वे दोनों ही उसे मूर्ख दिखते
हैं। बच्चे उसे मूर्ख दिखते हैं क्योंकि वे व्यर्थ ही अपना समय नष्ट कर
रहे हैं खिलौनों से खेलते हुए। एक बूढ़ा आदमी मृतवत दिखलाई पड़ता है, व्यर्थ
की चिंताओं के कारण। एक युवा आदमी यथार्थतः नहीं समझ पाता: क्योंकि वह देख
ही नहीं पाता कि बूढ़े को क्या हो गया है कि अब वह केवल एक अतीत है। ऐसा
होता है।
वे सब दूसरे को मूर्ख समझते हैं। बच्चे युवा एवं वृद्धों को नहीं समझ
सकते। युवा बच्चों और वृद्धों को नहीं समझ सकते। और वृद्ध युवकों और बच्चों
को नहीं समझ सकते। क्यों? क्योंकि उनकी समय की समझ भिन्न है इसलिए उनकी
भाषा भी।
परन्तु प्रत्येक युवा बूढ़ा होगा, और प्रत्येक बच्चा युवा होगा और हर एक
बूढ़ा कभी जवान था और एकबच्चा था, और मन चलता है, चलता चला जाता है इसी तरह।
बच्चों में उसका एक बड़ा वस्तुतः स्थान होता है, जिसमें कि वह चल सकता है,
बूढ़े मन के पास कोई स्थान नहीं होता, जिसमें कि वह चल सके। परन्तु यह एक मन
की गति है, न कि समय की।
आत्मपूजा उपनिषद
ओशो
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