मुल्ला नसरुद्दीन एक स्कूल में शिक्षक था। और जैसा कि स्कूल में
शिक्षकों की आदत होती है, वह अखबार लेकर आंख बंद करके विश्राम करता था।
लड़के उसे कई दफे सोया हुआ पकड़ लेते थे। आखिर लड़कों ने एक दफे कहा कि आप
हमें तो सोने नहीं देते और आप खुद घुर्राटे लेते हैं! उसने कहा, मैं
घुर्राटे नहीं लेता। तुम सब काम में लगे हो, उस बीच मैं स्वर्ग की यात्रा
पर जाता हूं; वहां देवी-देवताओं से मिलता हूं, भगवान के दर्शन करता हूं;
वहीं से तो ज्ञान लाता हूं तुम्हारे लिए रोज-रोज।
एक दिन मुल्ला नसरुद्दीन बीच में जग गया; एक मक्खी उसके ऊपर भिनभिना रही
थी। तो उसने देखा, एक सामने ही बैठा लड़का घुर्राटे ले रहा है। तो उसने
जगाया। अब लड़के भी कुशल हो गए थे। लोग सीख लेते हैं, आखिर गुरु जब इतना
ज्ञानी तो लड़के भी ज्ञानी हो गए। उस लड़के ने कहा, आप यह मत समझना कि मैं
कोई सो रहा था; मैं स्वर्ग गया था। नसरुद्दीन थोड़ा चिंतित हुआ। उसने कहा कि
वहां क्या देखा? उसने कहा, क्या देखा? मैंने सब देवी-देवताओं से पूछा कि
मुल्ला नसरुद्दीन इधर आते हैं? उन्होंने कहा, हमने तो कभी नाम ही नहीं
सुना।
न गुरु जानते हैं, न मां-बाप को कुछ पता है। कोई भी उस स्वर्ग में गए
नहीं, कोई उस मोक्ष को जाना नहीं, और वे तुम्हें सिखा रहे हैं। हर बच्चे को
वे सिखा रहे हैं। मैं छोटा था तो मुझे ले जाया जाता था मंदिर, कि झुको!
मैं पूछता कि अगर आपको पता हो पक्का तो मैं झुकने को राजी हूं, मुझे आप पर
भरोसा है। लेकिन मुझे शक है कि आपको पता नहीं है। मुझे लगता है कि आपके
मां-बाप ने आपको झुकाया, आप मुझे झुका रहे हैं। अगर आपको पक्का पता हो तो
मैं भरोसे में झुकने को राजी हूं। मेरे पिता ईमानदार आदमी हैं। उन्होंने
मुझे कहा, तो फिर हम ही झुकते हैं, तुम मत झुको। क्योंकि हमारी तो आदत हो
गई, और न झुकने से बड़ी अड़चन होगी। अब तुम अपना सम्हालो। मगर इस तरह के कठिन
सवाल मत उठाओ।
मां-बाप से सीख लिया है; स्कूल में सीख लिया है; किताबों में लिखा है।
सब तरफ प्रचार हो रहा है, उससे सीख लिया है। उसको तुम ज्ञान समझ रहे हो!
किसको धोखा दे रहे हो? खुद ही धोखा खा रहे हो।
ताओ उपनिषद
ओशो
No comments:
Post a Comment