मैंने सुना है, एक आदमी अपने घर लौटा। और उसने पाया कि उसका निकटतम
मित्र उसकी पत्नी का चुंबन ले रहा है। मित्र घबड़ा गया। उस आदमी ने कहा,
घबड़ाओ मत। मैं सिर्फ एक ही प्रश्न पूछना चाहता हूं। मुझे चुंबन लेना पड़ता
है क्योंकि यह मेरी पत्नी है। लेकिन तुम क्यों ले रहे हो? तुम पर कौन-सा
कर्तव्य आ पड़ा है?
आदमी की वासना जैसे ही चुकती है, सौंदर्य खो जाता है।
दो शराबी एक शराबघर में बैठकर बात कर रहे थे। आधी रात हो गई और एक शराबी
दूसरे से कहता है, ‘इतनी रात तक बाहर रुकते हो, पत्नी नाराज नहीं होती?’
तो उस दूसरे आदमी ने कहा, ‘पत्नी? मैं विवाहित नहीं हूं।’ तो उस पहले आदमी
ने कहा, ‘तुम और चकित करते हो। अगर विवाहित ही नहीं तो, इतनी रात तक यहां
रुकने की जरूरत क्या है?’
लोग पत्नियों से बचने के लिए ही तो आधी-आधी रात तक शराबघरों में बैठे
हैं! उस शराबी ने कहा, तुम मुझे हैरान करते हो। अगर विवाहित ही नहीं हो तो
इतनी रात तक यहां किसलिए रुके हो?
जिससे हम परिचित हो जाते हैं, उसी से आकर्र्षण खो जाता है। इसलिए वासना
को जो भी मिल जाता है, वही व्यर्थ हो जाता है। जो दूर है, वह सुंदर लगता
है। जो पास है, वह कुरूप हो जाता है। जो हाथ में है, वह असार मालूम पड़ता
है। जो हाथ के बाहर है, बहुत पार है, जिसको हम पा भी नहीं सकते जो हमारी
पहुंच से बहुत दूर है उसका सौंदर्य सदा बना रहता है।
आंखें सिर्फ अगर देखें, और जो देखें उसमें कुछ डालें ना, तो आंखों ने
देखा। लेकिन तुम कैसे देखोगे? तुम्हारी आंखें डालने का काम ही कर रही हैं।
तुम्हारी आंखें धागे भी फेंक रही हैं वासनाओं के। तो तुम जो भी देखते हो,
उस पर तुम्हारी वासना भी तुम फेंक रहे हो। आंख इकहरा मार्ग नहीं है, डबल-वे
ट्रेफिक है। उसमें तुम्हारी आंख से भी कुछ जा रहा है। आंख में भी कुछ आ
रहा है। ये दोनों मिश्रित हो रहे हैं। इन मिश्रित आंखों से जो देखा जाएगा,
वह सत्य नहीं हो सकता।
इसलिए ज्ञानियों ने कहा है, जब तुम्हारी आंखें शून्य हों और जब तुम्हारी
आंखें कुछ भी जोड़ेंगी नहीं, तब सत्य तुम्हारे लिए प्रगट हो जाएगा। शून्य
आंखें लेकर जाना, दर्पण की तरह आंखें लेकर जाना; तभी तुम जान सकोगे, जो है
उसे।
बिन बाती बिन तेल
ओशो
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