दुनिया में तीन तरह के लोग हैं। पहले, जिन्हें हम मूढ़ कहें, बुद्धिहीन
कहें। वे अनुभव से भी नहीं सीखते हैं। बार बार अनुभव हो, तब भी नहीं सीखते
हैं। वे पुन: पुन: वही भूल करते हैं। वे भूलें भी नयी नहीं करते हैं! वे
भूलें भी पुरानी ही दोहराते हैं। उनके जीवन में नया कुछ होता ही नहीं। उनका
जीवन कोल्हू के बैल जैसा होता है। बस, उसी में डोलता रहता है। वही चक्कर
काटता रहता है। गाड़ी के चाक जैसा घूमता रहता है।
एक आदमी अपनी पत्नी से बहुत पीड़ित था। और कई बार अपने मित्रों से कह
चुका था कि अगर यह मेरी स्त्री मर जाए, तो मैं दुबारा सपने में भी विवाह की
न सोचूंगा। फिर स्त्री मर गयी, संयोग की बात। और पाच—सात दिन बाद ही वह
आदमी नयी स्त्री की तलाश करने लगा। तो उसके मित्रों ने पूछा. अरे! अभी
पांच सात दिन ही बीते। और तुम तो कहते थे, सपने में न सोचूंगा। उन्होंने
कहा. छोड़ो भी। जाने भी दो। उस समय की बात उस समय की थी। सब बदल गया अब। सभी
स्त्रियां एक जैसी थोड़े ही होती हैं। उसने दुख दिया, तो सभी दुख देंगी,
ऐसा थोड़े ही है।
उसने फिर विवाह कर लिया और फिर दुख पाया। तब वह अपने मित्रों से बोला कि
तुम ठीक ही कहते थे। अब यह भी अनुभव हो गया कि सभी स्त्रियां एक जैसी हैं।
कुछ भेद नहीं पड़ता। सब संबंधों में दुख है। और यह विवाह का संबंध तो
महादु:ख है। अब कभी नहीं। अगर भगवान एक अवसर और दे, तो अब कभी न करूंगा
विवाह।
पुरानी कहानी है, भगवान ने सुन लिया होगा। एक अवसर और दिया! पत्नी फिर
मर गयी। साधारणत: पहली पत्नी नहीं मरती! अक्सर तो ऐसा होता है कि पत्नी पति
को मारकर ही मरती है।
तुमने देखा, विधवाएं दिखायी पड़ती हैं। स्त्रियों की शारीरिक उम्र
पुरुषों से ज्यादा है; पांच साल ज्यादा है, औसत। अगर आदमी सत्तर साल जीएगा,
तो स्त्री पचहत्तर साल जीएगा। और एक मूढ़ता के कारण कि जब हम विवाह करते
हैं, तो हम पुरुष की उम्र तीन चार पांच साल ज्यादा..। लड़का होना चाहिए
इक्कीस का और लड़की होनी चाहिए सोलह की या अठारह की। तो पांच साल का तो
स्वाभाविक भेद है, पांच साल का भेद हम खड़ा कर देते हैं। तो पुरुष दस साल
पीछे पिछड़ जाता है। तो अगर पुरुष मरेगा, तो उसके दस साल बाद तक उसकी पत्नी
के जिंदा रहने की संभावना है।
तो पहली पत्नी ही नहीं मरती! पहली भी मरी। दूसरी मरी। यह कथा सतयुग की
होगी। कलयुग में ये बातें कहां! दूसरी स्त्री के मरने के पांच सात दिन बाद
ही वह आदमी फिर स्त्री तलाश करने लगा। मित्रों ने कहा : अरे भई! अब तो
सम्हलो। वह आदमी मुस्कुराया और उसने कहा : सुनो। अब मुझे एक बात समझ में आ
गयी मन में कि आशा की हमेशा अनुभव पर विजय होती है। अब मुझे फिर आशा बंध
रही है कि कौन जाने, तीसरी स्त्री भिन्न हो,! अरे! किसने जाना!
आशा पर अनुभव नहीं जीत पाता; अनुभव पर आशा जीत जाती है
दूसरे वे लोग हैं, जिन्हें हम बुद्धिमान कहें। वे अनुभव से सीखते हैं।
अनुभव के बिना नहीं सीखते। बुद्धिमान को पुनरुक्ति नहीं करनी पड़ती। एक ही
अनुभव काफी होता है। मगर एक अनुभव जरूरी होता है। बिना अनुभव के नहीं
बुद्धिमान सीख सकता। मगर एक काफी है। एक बार चख लिया समुद्र के पानी को, तो
सारे समुद्रों का पानी चख लिया। बात समाप्त हो गयी। उस स्वाद ने निर्णय दे
दिया। अब दुबारा यही भूल नहीं करेगा।
मूढ़ बंधी बंधायी भूलें करता है। कुछ सीखता ही नहीं। इसका मतलब
हुआ वही वही भूलें करने का मतलब हुआ कि कुछ सीखता नहीं कि भूलों को बदल ले।
नयी भूलें करे। पुरानी छोड़े। कुछ नए उपाय करे।
बुद्धिमान एक भूल को एक बार करता है। ऐसा नहीं कि बुद्धिमान भूलें नहीं
करता। मगर जब करता है, तो नयी भूलें करता है। इसलिए बुद्धिमान विकासमान
होता है। वह आगे बढ़ता है। हर अनुभव उसे नया ज्ञान दे जाता है।
तीसरे व्यक्ति होते हैं, जिनको प्रज्ञावान कहा जाता है। वे बुद्धिमान से
आगे होते हैं। वे अनुभव में नहीं गुजरते। वे अनुभव को बाहर से ही देखकर
जाग जाते हैं। वे दूसरों का अनुभव देखकर भी जाग जाते हैं। उन्हें स्वयं ही
अनुभव में जाने की जरूरत नहीं होती।
पहला आदमी ऐसा कि जब गिरेगा आग में, तो एक बार गिरेगा, दो बार गिरेगा।
रोज जलेगा; फिर फिर गिरेगा। दूसरा आदमी ऐसा कि एक बार जल जाएगा, तो सम्हल
जाएगा। और तीसरा आदमी ऐसा कि दूसरों को गिरते देखकर, जलते देखकर ही सम्हल
जाएगा। उसको प्रज्ञावान कहा है।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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