तुमने कभी सोचा, अगर परमात्मा तुम्हें मिल जाएगा तो तुम क्या मांगोगे?
सोचना ईमानदारी से कि अगर परमात्मा मिल ही जाए कल सुबह उठते ही से, तुम
क्या मांगोगे? एक कागज पर जरा लिखना। तीन चीजें तुम मांग सकते हो, तो लिखना
कि कौन सी तीन चीजें मांगोगे?
तुम खुद ही चकित होओगे कि क्या मांगने की
आकांक्षा आ रही है–कि एक सुंदर पत्नी, फिल्म अभिनेत्री, कोई बड़ा मकान, कि
बड़ी कार, कि मुकदमे में जीत–क्या मांगोगे? तुम जो मांगोगे, उससे पता चलेगा
कि तुम कहां हो। तुम्हारी मांग तुम्हें बता देगी। क्या तुम परमात्मा को देख
कर मांगने की चेष्टा करोगे या सच में ही देख कर इतने परितृप्त हो जाओगे कि
कहोगे कि कुछ भी मांगना नहीं? मांगने की चेष्टा में ही छिपा है कि
परमात्मा की चाह न थी; चाह कुछ और थी, परमात्मा का तो उपयोग था। मांग तो
कुछ और ही रहे थे; परमात्मा से मिलेगा, इसलिए परमात्मा की भी खोज थी। लेकिन
परमात्मा लक्ष्य न था; लक्ष्य तो वही है जो तुम मांगना चाहते हो। मिला
परमात्मा और तुमने मांग ली इंपाला कार; इंपाला कार लक्ष्य था। तो परमात्मा न
हुआ, इंपाला कार का कोई दुकानदार हुआ। और तुम्हारी नजर इंपाला कार पर थी
और परमात्मा से भी तुमने वही मांगा। तुम जब मंदिर जाते हो, क्या मांगते हो,
सोचना थोड़ा। तुम्हारी मांग ही तुम्हारे और परमात्मा के बीच में बाधा है।
वे दो सीढियां नहीं हैं तुम्हारे जीवन में, इसलिए हजार तरह की मांगें
खड़ी हो गई हैं। अगर तुम परमात्मा से ही तृप्त हो सको तो समझना कि दो
सीढ़ियों को तुम पार कर गए।
इसलिए अपने मन में बहुत प्रसन्न मत होना। क्योंकि मैं यह देखता हूं कि
पूरब के लोग बड़ी रुग्ण सांत्वना से भर गए हैं। वे अपने को संतोष दिलाते
रहते हैं कि पश्चिम में तो बड़ा विषाद है, लोग दुखी हैं। देखो पश्चिम में
कितने लोग आत्महत्या करते हैं, यहां कोई करता है? आत्मा भी तो होना चाहिए
आत्महत्या करने के पहले; हत्या किसकी करोगे! पश्चिम में कितने लोग पागल हो
जाते हैं; यहां कोई होता है? पागल होने के लिए बुद्धि भी तो चाहिए। जिनकी
बुद्धि नहीं है, उनको कभी पागल होते देखा है? जो हो वही तो खो सकते हो।
पश्चिम सोचता है, प्रगाढ़ता से सोचता है, इसलिए पागल हो जाता है।
तुमने कभी
सोचा है? तुम्हारा सोच-विचार क्या है? अखबार पढ़ने से ज्यादा तुम्हारा कोई
सोच-विचार है? अखबार पढ़ कर तुम सोच रहे हो पागल हो जाओगे? तुमने किसी विचार
को इतनी गहनता से समझने की कोशिश की है कि तुम्हारा सारा जीवन आंदोलित हो
जाए, कि तुम कंप जाओ, कि तुम्हारी जमीन से जड़ें हिल जाएं, कि तुम्हारी
बुनियाद गिर जाए? तुमने कभी कुछ नहीं सोचा है। तुमने क्या सोचा है? पागल
कैसे हो जाओगे? और जिंदगी में तुमने पाया कुछ नहीं है अभी; आत्महत्या के
करीब तुम आओगे कैसे? आत्महत्या के करीब तो वही आता है जिसने जीवन को सारा
देख लिया और पाया कि व्यर्थ है; अब कुछ करने को नहीं दिखाई पड़ता, आत्महत्या
कर लूं! मिटा दूं इस जीवन को!
ताओ उपनिषद
ओशो
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