बुद्ध एक गांव में ठहरे हैं। उस गांव के सम्राट के बेटे ने आकर दीक्षा
ली। उस सम्राट के लड़के से कभी किसी ने न सोचा था कि वह दीक्षा लेगा। लंपट
था, निरा लंपट था। बुद्ध के भिक्षु भी चकित हुए। बुद्ध के भिक्षुओं ने कहा,
इस निरा लंपट ने दीक्षा ले ली? इस आदमी से कोई आशा नहीं करता था। यह हत्या
कर सकता है, मान सकते हैं। यह डाका डाल सकता है, मान सकते हैं। यह किसी की
स्त्री को उठाकर ले जा सकता है, मान सकते हैं। यह संन्यास लेगा, यह कोई
सपना नहीं देख सकता था! इसने ऐसा क्यों किया? बुद्ध से लोग पूछने लगे।
बुद्ध ने कहा, मैं तुम्हें इसके पुराने जन्म की कथा कहूं। एक छोटी-सी
घटना ने आज के इसके संन्यास को निर्मित किया है–छोटी-सी घटना ने। उन्होंने
पूछा, कौन-सी है वह कथा? तो बुद्ध ने कहा…।
और बुद्ध और महावीर ने उस साइंस का विकास किया पृथ्वी पर, जिससे लोगों
के दूसरे जन्मों में झांका जा सकता है; किताब की तरह पढ़ा जा सकता है।
तो बुद्ध ने कहा कि यह व्यक्ति पिछले जन्म में हाथी था, आदमी नहीं था।
और तब पहली दफा लोगों को खयाल आया कि इसकी चाल-ढाल देखकर कई दफा हमें ऐसा
लगता था कि जैसे हाथी की चाल चलता है। अभी भी, इस जन्म में भी उसकी
चाल-ढाल, उसका ढंग एक शानदार हाथी का, मदमस्त हाथी का ढंग था।
बुद्ध ने कहा, यह हाथी था पिछले जन्म में। और जिस जंगल में रहता था,
हाथियों का राजा था। तो जंगल में आग लगी। गर्मी के दिन थे, भयंकर आग लगी
आधी रात को। सारे जंगल के पशु-पक्षी भागने लगे, यह भी भागा। यह एक वृक्ष के
नीचे विश्राम करने को एक क्षण को रुका। भागने के लिए एक पैर ऊपर उठाया,
तभी एक छोटा-सा खरगोश वृक्ष के पीछे से निकला और इसके पैर के नीचे की जमीन
पर आकर बैठ गया। एक ही पैर ऊपर उठा, हाथी ने नीचे देखा, और उसे लगा कि अगर
मैं पैर नीचे रखूं, तो यह खरगोश मर जाएगा। यह हाथी खड़ा-खड़ा आग में जलकर मर
गया। बस, उस जीवन में इसने इतना-सा ही एक महत्वपूर्ण काम किया था, उसका फल
आज इसका संन्यास है।
रात वह राजकुमार सोया। जहां पचास हजार भिक्षु सोए हों, वहां अड़चन और
कठिनाई स्वाभाविक है। फिर वह बहुत पीछे से दीक्षा लिया था, उससे बुजुर्ग
संन्यासी थे। जो बहुत बुजुर्ग थे, वे भवन के भीतर सोए। जो और कम बुजुर्ग
थे, वे भवन के बाहर सोए। जो और कम बुजुर्ग थे, वे रास्ते पर सोए। जो और कम
बुजुर्ग थे, वे और मैदान में सोए। उसको तो बिलकुल आखिर में, जो गली राजपथ
से जोड़ती थी बुद्ध के विहार तक, उसमें सोने को मिला। रात भर! कोई भिक्षु
गुजरा, उसकी नींद टूट गई। कोई कुत्ता भौंका, उसकी नींद टूट गई। कोई मच्छर
काटा, उसकी नींद टूट गई। रातभर वह परेशान रहा। उसने सोचा कि सुबह मैं इस
दीक्षा का त्याग करूं। यह कोई अपने काम की बात नहीं।
सुबह वह बुद्ध के पास जाकर, हाथ जोड़कर खड़ा हुआ। बुद्ध ने कहा, मालूम है
मुझे कि तुम किसलिए आए हो। उसने कहा कि आपको नहीं मालूम होगा कि मैं किसलिए
आया हूं। मैं कोई साधना की पद्धति पूछने नहीं आया। क्योंकि कल मैंने
दीक्षा ली, आज मुझे साधना की पद्धति पूछनी थी; उसके लिए मैं नहीं आया।
बुद्ध ने कहा, वह मैं तुझसे कुछ नहीं पूछता। मुझे मालूम है, तू किसलिए आया।
सिर्फ मैं तुझे इतनी याद दिलाना चाहता हूं कि हाथी होकर भी तूने जितना
धैर्य दिखाया, क्या आदमी होकर उतना धैर्य न दिखा सकेगा?
उस आदमी की आंखें बंद हो गईं। उसको कुछ समझ में न आया कि हाथी होकर इतना
धैर्य दिखाया! यह बुद्ध क्या कहते हैं, पागल जैसी बात! उसकी आंख बंद हो
गई।
लेकिन बुद्ध का यह कहना, जैसे उसके भीतर स्मृति का एक द्वार खुल गया।
आंख उसकी बंद हो गई। उसने देखा कि वह एक हाथी है। एक घने जंगल में आग लगी
है। एक वृक्ष के नीचे वह खड़ा है। एक खरगोश उसके पैर के नीचे आकर बैठ गया।
इस डर से वह भागा नहीं कि मेरा पैर नीचे पड़े, तो खरगोश मर जाए। और जब मैं
भागकर बचना चाहता हूं, तो जैसा मैं बचना चाहता हूं, वैसा ही खरगोश भी बचना
चाहता है। और खरगोश यह सोचकर मेरे पैर के नीचे बैठा है कि शरण मिल गई। तो
इस भोले से खरगोश को धोखा देकर भागना उचित नहीं। तो मैं जल गया।
उसने आंख खोली, उसने कहा कि माफ कर देना, भूल हो गई। रात और भी कोई कठिन
जगह हो सोने की, तो मुझे दे देना। अब मैं याद रख सकूंगा। उतना छोटा-सा,
उतना छोटा-सा काम, क्या मेरे जीवन में इतनी बड़ी घटना बन सकता है?
सब छोटे बीज बड़े वृक्ष हो जाते हैं। चाहे वे बुरे बीज हों, चाहे वे भले बीज हों, सब बड़े वृक्ष हो जाते हैं–सब बड़े वृक्ष हो जाते हैं।
हमें चूंकि कोई पता नहीं होता कि जीवन किस प्रक्रिया से चलता है, इसलिए
कठिनाई होती है। हमें कोई पता नहीं होता कि किस प्रक्रिया से चलता है।
यह बीज पिछले जन्मों का है। यह कहीं पड़ा रहता है, चुपचाप प्रतीक्षा करता
है। जैसे बीज गिर जाता है, फिर वर्षा की प्रतीक्षा करता है। महीनों बीत
जाते हैं धूल में, धंवास में उड़ते, हवाओं की ठोकरें खाते, फिर वर्षा की
प्रतीक्षा चलती है। फिर कभी वर्षा आती है। शायद इन आठ महीनों में बीज भी
भूल गया होगा कि मैं कौन हूं। बीज को पता भी कैसे होगा कि मेरे भीतर क्या
पैदा हो सकता है। फिर वर्षा आती है, बीज जमीन में दब जाता है और टूटकर
अंकुर हो जाता है, तभी बीज को पता चलता है। बीज भी चौंकता होगा; चौंककर
कहता होगा कि मैं सूखा-साखा सा, मुझमें इतनी हरियाली छिपी थी! मैं
सूखा-साखा सा, कंकड़-पत्थर मालूम पड़ता था देखने पर, मुझमें ऐसे-ऐसे फूल छिपे
थे! बीज को भी भरोसा न आता होगा।
गीता दर्शन
ओशो
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