विज्ञान लड़ता है, जीतना चाहता है, विजय की उसकी यात्रा है।
धर्म जीतना नहीं चाहता है, लड़ना भी नहीं चाहता है, मैत्री उसका आधार है।
वह अस्तित्व के साथ एक प्रेम-संबंध स्थापित करना चाहता है। अस्तित्व के
साथ उसका प्रेमी और प्रेयसी का नाता है, शत्रु का नहीं। इसके गहन परिणाम
होते हैं।
क्योंकि जब आप मित्र की तलाश में निकलते हैं, तो सारा अस्तित्व मित्रता
के हाथ फैला देता है। उस क्षण आपको पता लगता है कि आप अजनबी नहीं हैं। और
उस क्षण आपको यह भी पता लगता है कि पूरा अस्तित्व एक मां की गोद है। और उस
समय आपको पता चलता है कि यह अस्तित्व अकारण ही आपको पैदा नहीं किया है।
इसके उल्लास में, इसके उत्सव में, इसके आनंद में आपका जन्म है। आप इसके
आनंद-क्रीड़ा के हिस्से हैं।
इसलिए हमने कहा जगत को परमात्मा की लीला, उसके आनंद का खेल। और हम सब
उसके आनंद के खेल की लहरें हैं, उसका विस्तार हैं। लेकिन इस प्रतीति तक
पहुंचने के लिए कि परमात्मा की लीला है।
समाधी के सप्त द्वार
ओशो
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