एक वृक्ष अफ्रीका का वृक्ष सैकड़ों फुट ऊपर चला जाएगा। वह धूप की तलाश कर
रहा है। अफ्रीका का वृक्ष लंबा हो जाएगा। हिंदुस्तान का वृक्ष उतना लंबा
नहीं होगा, क्योंकि उतने घने जंगल नहीं हैं। जब घना जंगल होता है तो वृक्ष
को अपनी जिंदगी बचाने के लिए ऊंचाई ऊंचाई ऊंचाई खोजनी पड़ती है, ताकि दूसरे
वृक्षों के पार जाकर वह सूरज की रोशनी ले सके। अगर वह नहीं खोजता ऊंचाई, तो
मर जाएगा। वह उसकी जिंदगी का सवाल है।
तो वृक्ष थोड़ा सा चुनाव कर रहा है। घना जंगल होगा, तो वृक्ष चौड़े कम
होने लगेंगे, लंबे ज्यादा होने लगेंगे, कोनीकल हो जाएंगे। क्योंकि चौड़ा
होना खतरनाक है, चौड़े में मर जाएंगे, इधर उधर के वृक्षों में उलझ जाएंगी
शाखाएं और सूरज तक पहुंच ही नहीं पाएंगे। अब सूरज तक पहुंचना है तो शाखाएं
मत निकालो, अब तो एक ही पीड़ को लंबा करो। यह भी चुनाव है। यह भी वृक्ष चुन
रहा है। इसी वृक्ष को अगर तुम ऐसे मुल्क में ले आओ जहां घने जंगल नहीं हैं,
तो उसकी लंबाई कम हो जाएगी।
कुछ वृक्ष थोड़ा बहुत सरकते भी हैं। साल में दस पांच फीट सरक जाते हैं।
उसका मतलब है, वह कुछ जड़ों को चलाते हैं पैरों की तरह। जिस तरफ उनको जाना
है उस तरफ की जड़ों को मजबूत करके पकड़ लेते हैं, और जहां से छोड़ना है वहां
की जड़ों को ढीला करके छोड़ देते हैं, तो थोड़ा सा सरक जाते हैं। दलदली जमीन
हो तो उनको आसानी मिल जाती है। थोड़ासा सरकने लगते हैं।
कुछ वृक्ष और तरह की भी तैयारियां करते हैं, पक्षियों को लुभाते हैं,
क्योंकि कुछ वृक्ष मांसाहारी हैं। तो पक्षियों को लुभाते हैं, फंसाते हैं
और पक्षी आ जाएं, तो फौरन पत्ते बंद कर लेते हैं। और पक्षियों को लुभाने के
उन्होंने बड़े इंतजाम किए हुए हैं। उनके ऊपर थालियों जैसे पत्ते होंगे।
थालियों में बड़ा सुगंधित रस होगा। वह रस अपनी थालियों में भरे रहेंगे।
स्वभावत: उनका रस दूर दूर से सुगंध की वजह से पक्षियों को खींचेगा। पक्षी
उस रस को पीने आकर बैठे नहीं कि चारों तरफ के पत्ते उस थाली पर बंद होकर
पक्षी को दबा लेंगे। उसका खून पी जाएगा वृक्ष। अब नहीं कहा जा सकता कि यह
चुनाव नहीं कर रहा है। यह चुनाव कर रहा है। यह अपनी तरफ से कुछ इंतजाम भी
कर रहा है। यह अपनी तरफ से कुछ खोज भी कर रहा है।
पशु और भी ज्यादा चुनाव कर रहे हैं, भाग रहे हैं, दौड़ रहे हैं। लेकिन इन सबके चुनाव मनुष्य के चुनाव की दृष्टि से बहुत साधारण हैं।
मनुष्य के सामने और बड़े चुनाव हैं, क्योंकि उसकी चेतना और भी विकसित हो
गई है। अब वह शरीर से ही नहीं चुनता है, अब वह मन से भी चुनता है। और अब वह
जगत में पृथ्वी की यात्रा ही नहीं चुनता, पृथ्वी के ऊपर वर्टिकल यात्रा भी
चुनता है। वह भी उसका चुनाव है। लेकिन है हाथ में सदा।
अब इस संबंध में अभी खोजबीन होनी बाकी है, लेकिन मुझे लगता है कि जिस
दिन भी खोजबीन होगी, यह बात पाई जा सकेगी। कुछ वृक्ष हो सकते हैं, जो
सुसाइडल हों, जो जीना न चुनें और जहां घना जंगल है, वहां भी छोटे रह जाएं
और मर जाएं। अब यह खोजबीन होनी बाकी है। आदमी में तो हमें साफ दिखाई पड़ता
है कि कुछ लोग सुसाइडल हैं। वे जीने को नहीं चुनते, मरने को चुनते रहते
हैं। उनको जहां भी कांटा दिखाई पड़े, वह बिलकुल दीवाने की तरह काटे की तरफ
जाते हैं। फूल दिखाई पड़े, तो उन्हें जंचते ही नहीं। उन्हें जहां हार दिखाई
पड़े, वहा वह बिलकुल हिप्नोटाइज होकर सरकते हैं। जहां जीत दिखाई पड़े, वहा वे
पच्चीस बहाने बनाते हैं। जहां विकास की संभावना हो, उसके खिलाफ वे हजार
तर्क इकट्ठे कर लेते हैं। जहां पतन का सुनिश्चित विश्वास हो उनको, वहां वे
बिलकुल बेधड़क बढ़े चले जाते हैं।
यह सब चुनाव है। और यह चुनाव जितना मनुष्य जागरूक होता चला जाएगा उतना
ही यह चुनाव आनंद की ओर अग्रसर होने लगेगा। जितना मूर्च्छित होगा, उतना दुख
की तरफ अग्रसर होता रहेगा।
तो जब मैं कहता हूं कि चुनना ही पड़ेगा। भाप बनने के उपाय हैं, लेकिन भाप की जगह तुम्हें पहुंचना पड़ेगा। बर्फ बनने के उपाय हैं, बर्फ की जगह तुम्हें पहुंचना
पड़ेगा। जिंदा रहने के उपाय हैं, लेकिन जिंदगी की व्यवस्था खोजनी पड़ेगी।
मरने के उपाय हैं, मरने की व्यवस्था खोजनी पड़ेगी। चुनाव तुम्हारा है। और
तुम और प्रकृति दो नहीं हो। तुम ही प्रकृति हो।
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