फ्रांस के एक बहुत बड़े मनसविद कुए ने इस नियम को “लो आफ रिवर्स इफेक्ट’
कहा है, उल्टे परिणाम का नियम। जो आप चाहते हैं, उससे उल्टा हो जाता है।
आपके चाहने के कारण ही उल्टा हो जाता है। और हमारी पूरी जिंदगी इसी नियम से
भरी हुई है। सुख चाहते हैं, दुख मिलता है। सफलता चाहते हैं, असफलता हाथ लग
जाती है। जीतना चाहते हैं, हार के सिवाय कुछ भी नहीं होता! हर जगह जो हम
चाहते हैं, उल्टा होता हुआ दिखाई पड़ता है। फिर हम चीखते हैं, चिल्लाते हैं,
रोते हैं। और प्रार्थना भी करते हैं कि हे परमात्मा, क्या भूल हो रही है,
कौन सा कसूर है; कौन से कर्म का फल है कि जो भी मैं चाहता हूं, वह नहीं
होता है और उल्टा हो जाता है! और जो मैं कभी नहीं चाहता, वह हो जाता है! और
जो मैं सदा चाहता हूं और जिसके लिए श्रम किया हूं, वह नहीं हो पाता!
इस नियम को ठीक से समझें। जब भी आप अस्तित्व के सामने अपनी चाह रखते
हैं, तभी आप उसके विपरीत हो जाते हैं। अस्तित्व की मर्जी के खिलाफ आप कुछ
भी करेंगे, उसमें हारेंगे और टूटेंगे। और सभी चाह उसके खिलाफ हैं। ऐसी कोई
चाह नहीं है, जो अस्तित्व के खिलाफ न हो। होगी ही। हम तो परमात्मा से भी
प्रार्थना करते हैं मंदिर में, उसके ही खिलाफ। घर में कोई बीमार है, हम
परमात्मा से कहते हैं कि इसे ठीक कर दे। अगर परमात्मा ही सब कुछ करता है,
तो यह बीमारी भी उसके द्वारा है। और जब हम कहते हैं कि इसे ठीक कर दे, तो
हम यह कह रहे हैं कि हम तुमसे ज्यादा समझदार हैं और तूने हमसे सलाह क्यों
नहीं ले ली इस आदमी को बीमार करने के पहले। इसे बदल दे। हमारी सब मांग,
हमारी सब प्रार्थनाएं, अस्वीकृतियां हैं। जो है, उसका हमें स्वीकार नहीं
है। और ध्यान रहे, जो है, उसका जब तक हमें स्वीकार नहीं है, तब तक जो भी हम
चाहेंगे, उससे उल्टा होगा। और जिस दिन जो भी है, उसका हमें पूरा स्वीकार
है–तो इस स्वीकार को ही मैं आस्तिकता कहता हूं। आस्तिकता का अर्थ ईश्वर को मान लेना नहीं है, क्योंकि ईश्वर
को बिना माने भी कोई आस्तिक हो सकता है। और ईश्वर को मानते हुए भी लाखों
लोग नास्तिक हैं, करोड़ों लोग नास्तिक हैं।
आस्तिकता का अर्थ है: सर्व स्वीकार का भाव–जो है, उसके साथ राजी होना।
जैसे मुर्दा नदी में बहता है जहां नदी ले जाए, तो नदी उसे खुद ऊपर उठा
लेती है। और जिस दिन कोई व्यक्ति इस अस्तित्व में मुद की भांति हो जाता है,
जहां ले जाए यह अस्तित्व, उस दिन यह अस्तित्व खुद ही उसे उठा लेता है। और
जब तक अस्तित्व से करते हैं छीना-झपटी, तब तक उसके सब रहस्य-द्वार बंद होते
हैं; हम इस योग्य नहीं।
शत्रु के लिए अस्तित्व का रहस्य खुल भी नहीं सकता है। दुश्मनी से इस
दुनिया में क्या खुला है? सब चीजें बंद हो जाती हैं। अस्तित्व के साथ
अस्तित्व के हृदय को खोलने के लिए वही कुंजी काम आती है, जो किसी भी
व्यक्ति के हृदय को खोलने के काम आती है। जब हम किसी व्यक्ति को स्वीकार कर
लेते हैं प्रेम के किसी क्षण में, उसका हृदय अपनी सब सुरक्षा हटा लेता है,
उसका हृदय खुल जाता है; अब हम उसके हृदय में प्रवेश कर सकते हैं। अब हमसे
उसे कोई भी भय नहीं है। प्रार्थना का यही अर्थ है। श्रद्धा का यही अर्थ है।
गहरे प्रेम का यही अर्थ है।
अस्तित्व तभी खुलता है हमारे सामने, अपने सब रहस्य खोल देता है, जिस दिन
पाता है कि अब हम संघर्ष नहीं कर रहे हैं, विरोध नहीं कर रहे हैं; अब
हमारी कोई चाह नहीं है।
समाधी के सप्त द्वार
ओशो
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