सारे शरीर को शिथिल छोड़कर, प्रत्येक चक्र पर सुझाव देकर शरीर को शिथिल
छोड़कर, अंधकार करके कमरे में, ध्यान में प्रवेश करें। जब शरीर शिथिल हो
जाए, जब श्वास शिथिल हो जाए और जब चित्त शांत हो जाए, तो एक भावना करें कि
आप मर गए हैं, आपकी मृत्यु हो गयी है। और स्मरण करें अपने भीतर कि अगर मैं
मर गया हूं, तो मेरे कौन से प्रियजन मेरे आस-पास इकट्ठे हो जाएंगे! उनके
चित्रों को अपने आस-पास उठते हुए देखें। वे क्या करेंगे, उनमें कौन रोएगा,
कौन चिल्लाएगा, कौन दुखी होगा, उन सबको बहुत स्पष्टता से देखें। वे सब आपको
दिखायी पड़ने लगेंगे।
फिर देखें कि मुहल्ले-पड़ोस के और सारे प्रियजन इकट्ठे हो गए और उन्होंने
लाश को आपकी उठाकर अब अर्थी पर बांध दिया है। उसे भी देखें। और देखें कि
अर्थी भी चली और लोग उसे लेकर चले। और उसे मरघट तक पहुंच जाने दें। और
उन्हें उसे चिता पर भी रखने दें।
यह सब देखें। यह पूरा इमेजिनेशन है, यह पूरी कल्पना है। इस पूरी कल्पना
को अगर थोड़े दिन प्रयोग करें, तो बहुत स्पष्ट देखेंगे। और फिर देखें,
उन्होंने चिता पर आपकी लाश को भी रख दिया। और लपटें उठी हैं और आपकी लाश
विलीन हो गयी।
जब यह कल्पना इस जगह पहुंचे कि लाश विलीन हो गयी और धुआं उड़ गया आकाश
में और लपटें हवाएं हो गयी हैं और राख पड़ी है, तब एकदम से सजग होकर अपने
भीतर देखें कि क्या हो रहा है! उस वक्त आप अचानक पाएंगे, आप देह नहीं हैं।
उस वक्त तादात्म्य एकदम टूटा हुआ हो जाएगा।
इस प्रयोग को अनेक बार करने पर जब आप उठ आएंगे प्रयोग करने के बाद भी,
चलेंगे, बात करेंगे, और आपको पता लगेगा, आप देह नहीं हैं। इस अवस्था को
हमने विदेह कहा है–इस अवस्था को। इस प्रक्रिया के माध्यम से जो जानता है
अपने को, वह विदेह हो जाता है।
अगर यह चौबीस घंटे सध जाए और आप चलें, उठें-बैठें, बात करें और आपको
स्मरण हो कि आप देह नहीं हैं, तो देह शून्य हो गयी। तो यह देह शून्य हो
जाना अदभुत है। यह अदभुत है, इससे अदभुत कोई घटना नहीं है। देह का
तादात्म्य टूट जाना सबसे अदभुत है।
देह-शुद्धि, विचार-शुद्धि और भाव-शुद्धि के बाद जब देह की शून्यता का यह
प्रयोग करेंगे, तो यह निश्चित सफल हो जाता है। और तब जीवन में बड़े अदभुत
परिवर्तन होने शुरू हो जाते हैं। आपकी सारी भूलें और सारे पाप देह से बंधे
हुए हैं। आपने जीवन में एक भी भूल और एक भी पाप नहीं किया होगा, जो देह से
बंधा हुआ न हो। और अगर आपको स्मरण हो जाए कि आप देह नहीं हैं, तो जीवन से
कोई भी विकृति के उठने की संभावना शून्य हो जाएगी।
तब अगर कोई आपको तलवार भोंक दे, तो आप देखेंगे, उसने देह में तलवार भोंक
दी और आपको कुछ भी पता नहीं चलेगा कि आपको कुछ हुआ। आप अस्पर्शित रह
जाएंगे। उस वक्त आप कमल के पत्ते की तरह पानी में होंगे। उस वक्त, जब
देह-शून्यता का बोध होगा, तब आप स्थितप्रज्ञ की भांति जीवन में जीएंगे। तब
बाहर के कोई आवर्त और बाहर के कोई तूफान और आंधियां आपको नहीं छू सकेंगी,
क्योंकि वे केवल देह को छूती हैं। उनके संघात केवल देह तक होते हैं, उनकी
चोटें केवल देह तक पड़ती हैं। लेकिन भूल से हम समझ लेते हैं कि वे हम पर
पड़ीं, इसलिए हम दुखी और पीड़ित और सुखी और सब होते हैं।
यह आंतरिक साधना का, केंद्रीय साधना का पहला चरण है। हम देह-शून्यता को
साधें। यह सध जाना कठिन नहीं है। जो प्रयास करते हैं, वे निश्चित सफल हो
जाते हैं।
ध्यान सूत्र
ओशो
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