क्या ईश्वर भी बहुत प्रकार के हैं? हिंदू का ईश्वर अलग ढंग का है। और
मूर्ति तोड़ दी जाए तो हिंदू के ईश्वर का अपमान हो जाता है। और मुसलमान का
ईश्वर और प्रकार का है। और अगर मस्जिद तोड़ दी जाए, आग लगा दी जाए, तो उसके
ईश्वर का अपमान हो जाता है।
ईश्वर तो उसका नाम है जो है। मस्जिद में भी वह उतना ही है जितना मंदिर
में। बूचड़खाने में भी वह उतना ही है जितना मंदिर में। और शराब घर में भी
उतना ही है जितना मस्जिद में। चोर के भीतर वह उतना ही है, जितना महात्मा के
भीतर है। रत्ती भर कम नहीं है। हो भी नहीं सकता। आखिर चोर के भीतर कौन
होगा, अगर परमात्मा न होगा? वह राम के भीतर उतना ही है, जितना रावण के
भीतर। रत्ती भर कम नहीं हो सकता रावण के भीतर। वह हिंदू के भीतर भी उतना ही
है, जितना मुसलमान के भीतर।
लेकिन वह जो हमारा गृह उद्योग है भगवान बनाने का, उस गृह उद्योग को बड़ा
धक्का लग जाएगा अगर हम यह मान लें कि सभी के भीतर वही है। तो हमें अपना अपना ईश्वर थोपे चले जाना चाहिए। अगर एक फूल में हिंदू भी ईश्वर देखे और
मुसलमान भी, तो भी झगड़ा हो सकता है, क्योंकि उस फूल में हिंदू अपना ईश्वर
ढालेगा, मुसलमान अपना ईश्वर ढालेगा। हिंदू मुसलमान तो जरा दूर की बातें
हैं, पास पास की दुकानों में भी झगड़े होते हैं। ये दुकानें तो जरा फासले पर
हैं। काशी और मक्का में काफी फासला है, लेकिन काशी में राम के और कृष्ण के
मंदिर में इतना फासला नहीं है। वहा भी झगड़ा इतना ही होता है।
मैं मृत्यु सिखाता हूँ
ओशो
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