एक आदमी मेरे पास आया। उसने स्वामी शिवानंद की किताबें पढ़ लीं। उसमें
उन्होंने लिखा है कि चार घंटे से ज्यादा सोना तामस का लक्षण है। अब यह आदमी
अभी मुश्किल से बत्तीस साल का था, जवान था। वह चार घंटे सोने लगा। जब तामस
है तो तामस से तो छुटकारा पाना ही है। तो जब चार घंटे सोने लगा तो दिन भर
तामस आने लगा। पहले सात घंटे सोता था तो सात घंटे तामस था। अब चौबीस घंटे
तामस हो गया। जब उसने पाया कि यह तो तामस बढ़ता ही जा रहा है तो शिवानंद की
किताबें और उसने गौर से देखीं कि गुरु इस संबंध में क्या कहते हैं? तो
उन्होंने बताया कि अगर तामस न मिटता हो तो उसका मतलब कि तुम भोजन ज्यादा कर
रहे हो। तो भोजन एक दफा कर दिया। नींद और कमजोरी–इन दो पंखों से वह
परमात्मा की यात्रा करने लगे। चौबीस घंटे भूखे और भोजन का चिंतन, और चौबीस
घंटे प्यासे नींद के और जम्हाइयां।
वे मेरे पास आए। मैंने उनसे कहा कि अब किताब खतम हो गई कि उसमें और कुछ
लिखा है? कुछ और लिखा हो जल्दी कर लो, नहीं तुम खतम हो जाओगे। शिवानंद का
शरीर देखा है? फोटो देखी? ये उपवासी मालूम पड़ते हैं? शिवानंद को चलाने के
लिए दो आदमियों के हाथ कंधों पर रख कर उनको उठाना पड़ता था। पहले उनकी फोटो
तो देखते, फिर किताब पढ़ते।
पर लोगों को कोई होश से जीने की कुछ नहीं है; कुछ भी पकड़ लेते हैं; कुछ
भी पकड़ लेते हैं। और शिवानंद की मृत्यु कैसे हुई? मस्तिष्क में रक्तस्राव
से। स्टैलिन की हुई, समझ में आता है। शिवानंद की मस्तिष्क में रक्तस्राव से
मृत्यु का मतलब है कि चित्त में बहुत तनाव, अशांति। स्टैलिन की हो, बिलकुल
मौजूं है बात, जमती है। राजनीतिज्ञ किसी और ढंग से मरे, चमत्कार है। लेकिन
संन्यासी ऐसे मरे तो भी चमत्कार है।
होश रखो; सुनो, समझो, अपने जीवन को पहचानो, और अपने मार्ग एक-एक कदम आहिस्ता-आहिस्ता उठाओ। और ध्यान रखो कि अति न हो जाए।
तो मैंने उन सज्जन को कहा कि सात घंटे सोना शुरू करो।
अगर परमात्मा को ऐसा खयाल होता कि तामस की बिलकुल जरूरत ही नहीं तो तामस
उसने बनाया ही न होता। विश्राम की जरूरत है, तामस में कुछ निंदा योग्य
नहीं है। निंदा योग्य तभी है जब तामस में अति हो जाए। अब कोई दिन भर ही
सोने लगे तो फिर निंदा योग्य है। लेकिन निंदा तामस के कारण नहीं है, निंदा
अति के कारण है। अन्यथा तामस की भी जरूरत है, क्योंकि तामस विश्राम का
सूत्र है। राजस श्रम का सूत्र है तो तामस विश्राम का सूत्र है। और दोनों
संतुलित हों तो तुम्हारे जीवन में सत्व की ज्योति जलेगी। त्रिकोण, ट्रायंगल
समझ लो। नीचे के दो कोण तामस और राजस, और ऊपर का उठा हुआ कोण सत्व। जब
दोनों संतुलित हो जाते हैं, तब तुम्हारे भीतर संतुलन के माध्यम से
धीरे-धीरे सत्व का स्वर आना शुरू होता है। सत्व का अर्थ है परम संतुलन,
अल्टीमेट बैलेंस।
इसलिए लाओत्से कहता है, संसार में अति कभी नहीं।
ताओ उपनिषद
ओशो
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