इस बात का स्मरण रखो कि मैं किसी भी बात के विरोध में नहीं हूं। मैं तो
अतिक्रमण के पक्ष में हूं लेकिन किसी भी चीज के खिलाफ नहीं हूं। परमात्मा
संसार के विरुद्ध नहीं है; वह तो अतिक्रमण है। उसे संसार से गुजर कर ही
पाना है; इसीलिए तुम्हें संसार में भेजा गया है। लेकिन तुम समझते हो, तुम
सोचते रहते हो कि तुम परमात्मा से अधिक समझदार हो। उसने तुम्हें संसार में
भेजा है ताकि तुम विकसित हो सको, अनुभव कर सकी, दुख पाकर पक सको। और तुम
समझते हो कि तुम बहुत समझदार हो! थोड़े कम समझदार ही रह लो, इतने समझदार मत
बनो। परमात्मा को थोड़ा सा मौका तो दो कि वह तुम्हारे भीतर से अपना रास्ता
बना सके। जीवन का अनुभव करो, एक ही कहने वाले मन से। और जब तुम ही कहते हो
तो वही जीवन परमात्मामय हो जाता है।
केनोउपनिषद
ओशो
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