बोलना तो तभी सार्थक है, जब कुछ जाना हो : जब कुछ अनुभव हुआ हो। जब कोई
बात तुम्हारे भीतर प्रखर होकर साफ हो गयी हो। जब तुम्हारे भीतर ज्योति जली
हो और तुम्हारे पास अपनी आंखें हों, तब बोलना। तब तक तो अच्छा है, चुप ही
रहना। तुम अपना कूड़ा करकट दूसरे पर मत फेंकना। तुम्हीं दबे हो, औरों पर
कृपा करो। मत किसी को दबाओ अपने कूड़े करकट से।
लेकिन लोग बड़े उत्सुक होते हैं! लोग अकेले अकेले में घबडाने लगते हैं।
राह खोजने लगते हैं कि कोई मिल जाता। किसी से दो बात कर लेते। बात करने का
मतलब कुछ कचरा वह हमारी तरफ फेंकता, कुछ कचरा हम उसकी तरफ फेंकते। न हमें
पता है, न उसे पता है। इसको लोग बातचीत कहते हैं!
यह बातचीत महंगी है। क्योंकि दूसरा भी अपने अज्ञान को छिपाता है और अपनी
बातों को इस तरह से कहता है, जैसे जानता हो। तुम भी अपने अज्ञान को छिपाते
हो और अपनी बातों को इस तरह से कहते हो, जैसे तुमने जाना है। दोनों
एक दूसरे को धोखा दे रहे हो। और अगर दूसरे नै मान लिया तुम्हारी बात को, तो
गड्डे में गिरेगा। तुम खुद गड्डे में गिरते रहे हो। तुम्हारी बात मानकर जो
चलेगा, वह गड्ढे में गिरेगा।
इसलिए तो कोई किसी की सलाह नहीं मानता। तुमने देखा, दुनिया में सबसे
ज्यादा चीज जो दी जाती है, वह सलाह है। और सबसे कम जो चीज ली जाती है, वह
भी सलाह है।
कोई किसी की मानता नहीं। बाप की बेटा नहीं मानता। भाई की भाई नहीं मानता। मित्र की मित्र नहीं मानता। अध्यापक की शिष्य नहीं मानता।
एक लिहाज से अच्छा है कि लोग किसी की मानते नहीं। अरे, गिरना है तो कम
से कम अपने ही गड्डे में गिरो। दूसरे की सलाह लेकर दूसरे के गड्डे में
क्यों गिरना! अपने गड्डे में गिरोगे, तो शायद कुछ अनुभव भी होगा। अपनी तरफ
से गिरोगे, अपने हाथ से गिरोगे, तो शायद निकलने की संभावना भी है। अवश,
दूसरे की सलाह से गिरोगे, तो निकलने की संभावना भी न रह जाएगी।
मैं तुमसे कहना चाहता हूं : अपने ही पैर से चलकर जो नर्क तक पहुंचा है,
वह वापस भी लौट सकता है। जो दूसरों के कंधों पर चढ़कर पहुंच गया है, वह गौडा
है। वह वापस कैसे लौटेगा त्र: उसका लौटना बहुत असंभव हो जाएगा।
और नर्क तक ले जाने वाले लोग तो तुम्हें बहुत मिल जाएंगे। एक ढूंढो,
हजार मिल जाएंगे। लेकिन नर्क से स्वर्ग तक लाने वाला तो बहुत मुश्किल है।
नर्क में कहां पाओगे ऐसा आदमी जो तुम्हें स्वर्ग तक ले जाए? यहां से नर्क
तक जाने के लिए तो सब गाडियां बिलकुल भरी हैं, लबालब भरी हैं। लेकिन नर्क
से इस तरफ आने वाली गाड़ियां चलती कहां हैं! उनको चलाने वाला नहीं है कोई। अच्छा ही है कि कोई किसी की सलाह नहीं मानता।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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