मनुष्य मध्यवर्गीय योनि है। न तो वह नर्क में है, और न स्वर्ग में। वह
त्रिशंकु की तरह; वह बीच में है। वह जरा ही भूल चूक करे तो नर्क में गिर
सकता है, और जरा ही होशियारी करे तो स्वर्ग में प्रवेश कर सकता है। वह
दोनों के मध्य में है।
मनुष्य योनि रूपांतरण की, ट्रांसफामेंशन की अवस्था है। और अगर समझ जाए
ठीक से, तो न नर्क में जाना चाहेगा और न स्वर्ग में। क्योंकि सुख भी
बार बार भोगने पर बासे हो जाते हैं, और दुख जैसे हो जाते हैं। अगर आप
स्वर्ग में जाएं तो वहा आप हर देवता को जम्हाई लेते हुए पाएंगे। ऊब गया
होगा। सुंदर सुंदर स्त्रियां चौबीस घंटे आपके पास मौजूद रहें, आप उनसे भी
भागना चाहेंगे कि थोड़ी देर मुझे अकेला रहने दो।
सौंदर्य भी कुरूपता हो जाती है। मिष्ठान्न खाते खाते जीभ तरसने लगती है,
विपरीत के लिए। सुविधा में बैठे बैठे मन असुविधा में जाने की आकांक्षा
करने लगता है। स्वर्ग में जो बैठे हैं, वे बुरी तरह ऊबे हुए हैं। बोरडम
स्वर्ग का लक्षण है। वहां हर आदमी ऊबा हुआ है। ऊबा हुआ है, इसीलिए तो इतना
मनोरंजन का उपाय कर रहा है। नाच, गाना, शराब वह चल रहा है।
मुसलमानों के स्वर्ग में शराब के चश्मे बह रहे हैं। बोतलों से काम वहा
नहीं चल सकता। झरने! कि आप पीए ही मत, डूबे, तैरें, नहाएं! स्वर्ग में
सिर्फ मनोरंजन के साधन हैं।
आप थोड़ा समझें। जमीन पर भी आज अमेरिका स्वर्ग होने के करीब पहुंच गया
है। बड़ी ऊब है। सब सुलभ है और कोई रस नहीं है। मनोरंजन ही मनोरंजन चारों
तरफ इकट्ठा हो गया है सुबह से रात तक आप मनोरंजन करते रहें। लेकिन रस
बिलकुल नहीं है। और कितनी ही बड़ी बात घट जाए, मिनटों में रस खत्म हो जाता
है। चांद पर ण्हुंचने की कितनी पुरानी आकांक्षा है आदमी की! जब से आदमी
जमीन पर है, तब से चांद का सपना है। छोटे बच्चे पैदा होते ही से हाथ बढ़ाने
लगते हैं चांद पकड़ने के लिए। आदमी हजारों हजारों वर्ष से चांद पर पहुंचने
की आकांक्षा रखे है।
फिर पहला आदमी एक दिन चांद पर उतर भी गया और अमेरिका में पंद्रह मिनट
में रस चला गया। पंद्रह मिनट, दस मिनट तक लोगों ने टेलीविजन पर देखा, फिर होने टेलीविजन अलग बंद दूसरा प्रोग्राम शुरू। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि
पंद्रह मिनट के बाद किसी का रस नहीं था कि चांद पर आदमी पहुंच गया। पंद्रह
मिनट में इतनी बड़ी घटना व्यर्थ हो गई। बस हो गई बात, खत्म हो गई। देख लिया
कि आदमी चांद पर उतर गया, अब और क्या है! अब कुछ और। भयंकर ऊब है।
स्वर्ग में भी मनोरंजन के इतने साधन हैं, भयंकर ऊब होगी। ऊब जहां होती
है, वहां मनोरंजन के साधन जुटाने पड़ते हैं। जहा मनोरंजन के साधन जुटते जाते
हैं, वहां ऊब बढ़ती चली जाती है। बहुत कथाएं हैं स्वर्ग के देवताओं की कि
वे तरसते हैं जमीन पर आकर किसी युवती को प्रेम करने को, कि वहां की उर्वशी
तड़पती है कि पृथ्वी के किसी पुरुरवा को प्रेम करे। यहां थोड़ा रस है,
क्योंकि यहां जीवन एकदम सुखद नहीं है। यहां जीवन संघर्ष है। यहां कठिनाई भी
है, असुविधा भी है।
जो मनुष्य इस बात को समझ लेता है कि दुख तो दुख है ही, सुख भी अंततः दुख
हो जाता है, और दुख से तो छुटकारा चाहिए ही, अंततः सुख से भी आदमी छूटना
चाहता है। जो इस सत्य को समझ लेता है, वह न तो स्वर्ग को चाहता है न नर्क
को, वह मुक्त होना चाहता है। वह समस्त वासनाओं के पार जाना चाहता है।
तो मनुष्य के अस्तित्व से तीन मार्ग निकलते हैं। एक दुख का, एक सुख का
और एक मोक्ष का, मुक्ति का। मुक्ति न तो सुख है न दुख। मुक्ति दोनों के पार
है।
कठोपनिषद
ओशो
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