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Saturday, January 2, 2016

हिंदू मंदिर सिर्फ हिंदू के लिए क्यों?

हिंदू मंदिर केवल हिंदुओं के लिए है। क्‍योंकि हिंदू मंदिर एक विशेष स्‍थान है, विशेष उदेश्‍य से निर्मित हुआ है। सदियों-सदियों से वे इस प्रयत्‍न में लगे है। कि कैसे जीवंत मंदिर बनाएँ जाएं। और कोई भी व्‍यक्‍ति उसमे उपद्रव पैदा कर सकता है। और यह उपद्रव खतरनाक है। सिद्ध हो सकता है। मंदिर कोई सार्वजनिक स्‍थान नहीं है। वहाँ एक विशेष उदेश्‍य से और विशेष लोगों के लिए बनाया गया है। वह आम दर्शकों के लिए नहीं है।

यही कारण है कि पुराने दिनों में आम दर्शकों को वहां प्रवेश नहीं मिलता था। अब सब को जाने दिया जाता है; क्‍योंकि हम नहीं जानते है कि हम क्‍या कर रहे है। दर्शकों को नहीं जाने दिया जाना चाहिए। यह कोई खेल तमाशे का स्‍थान नहीं है। यह स्‍थान विशेष तरंगों से तरंगायित है, विशेष उदेश्‍य के लिए निर्मित हुआ है।

इसलिए एक स्‍थान का उपयोग करो स्‍थान के रूप में मंदिर अच्‍छा है। ये विधियां मंदिर के लिए है। मंदिर अच्‍छा है; मस्‍जिद अच्‍छी है। चर्च अच्‍छा है। तुम्‍हारा अपना धर इन विधियों के लिए उपयुक्‍त नहीं है। वहां इतना कोलाहल है कि वह अराजकता का स्‍थान बन गया है। और तुम इतने बलवान नहीं हो कि अपनी ध्‍वनि से उस वातावरण को बदल सको। तो अच्‍छा है कि किसी ऐसी जगह चले जाओ। जो किसी विशेष ध्‍वनि के लिए बना हो। ऐसे स्‍थान का उपयोग करो। और अच्‍छा है कि रोज-रोज एक ही स्‍थान को काम में लाओ।

धीरे-धीरे तुम शक्‍ति शाली हो जाओगे। और धीरे-धीरे मन से ह्रदय में उतर जाओगे। तब तुम कही भी यह प्रयोग कर सकते हो। तब सारा ब्रह्मांड तुम्‍हारा मंदिर बन जाएगा। तब समस्‍या नहीं रहेगी।

लेकिन आरंभ में स्‍थान का चुनाव जरूरी है। और अगर समय का, निश्‍चित समय का चुनाव कर सको तो यह और अच्‍छा। क्‍योंकि तब वह मंदिर उस निश्‍चित समय पर तुम्‍हारी प्रतीक्षा करेगा। रोज ठीक उसी समय पर मंदिर तुम्‍हारा इंतजार करेगा। उस वक्‍त वह ज्‍यादा खुला होगा। उसे प्रसन्‍नता होगी कि तुम आ गए। वह सारा स्‍थान प्रसन्‍न होगा। और मैं ये बात प्रतीक के अर्थ में नहीं कह रहा हूं, यह एक सच्‍चाई है।
 
यह ऐसा है कि जैसे तुम किसी निश्‍चित समय पर भोजन लेते हो और रोज ठीक उसी समय पर तुम्‍हारा शरीर भूख अनुभव करने लगता है। शरीर की अपनी अलग आंतरिक घड़ी है। शरीर अपने ठीक समय पर भूख प्‍यास अनुभव करता है। अगर तुम प्रतिदिन एक विशेष समय पर सोते हो तो तुम्‍हारा पूरा शरीर उस समय सोने के लिए तैयार हो जाता है। और अगर तुम रोज-रोज अपने खाने और सोन का समय बदलते रहते हो तुम अपने शरीर को उपद्रव में डाल रहे हो।

अब तो वे कहते है कि ऐसे परिवर्तन से तुम्‍हारी आयु प्रभावित हो सकती है। अगर तुम रोज-रोज अपने शरीर की चर्या को, रूटीन को बदलते हो तो संभव है कि तुम्‍हारी उम्र कम हो जाए। यदि तुम अस्‍सी साल जीने वाले थे तो इस सतत परिवर्तन के कारण तुम सत्‍तर साल ही जीओगे। तुम दस साल गंवा दोगे। और अगर तुम शरीर की घड़ी के अनुसार अपनी चर्या चलाते हो तो तुम आसानी से अस्‍सी साल की बजाएं नब्‍बे साल वर्षो तक जीवित रह सकत हो। दस वर्ष जोड़े जा सकते है।

ठीक इसी तरह तुम्‍हारे चारों तरफ हर चीज की अपनी घड़ी है और सारा संसार जागतिक समय में गति करता है। अगर तुम प्रतिदिन निश्‍चित समय पर मंदिर में प्रवेश करते हो तो मंदिर तुम्‍हारे लिए तैयार होता है। और तुम मंदिर के लिए तैयार होते हो। ये दो तैयारियाँ आपस में मिलती है। और उसका फल हजार गुना हो जाता है।
 
यह तुम अपने घर में एक छोटा सा कोना इसके लिए सुरक्षित कर ले सकते हो। लेकिन तब उस स्‍थान को किसी और काम के लिए उपयोग मत करो। क्‍योंकि हर काम की अपनी तरंगें है। अगर तुम उस स्‍थान को व्‍यवसाय के काम में लाते हो, वहां ताश खेलते हो, तो वह स्‍थान कनफ्यूज्‍ड हो जाएगा। अब तो इन कनफ्यूज्‍ड को रेकार्ड करने के यंत्र है; जाना जा सकता है कि स्‍थान कनफ्यूज्‍ड है।

अगर तुम अपने घर में एक छोटा सा कोना इसके लिए अलग कर लो तो अच्‍छा । घर में एक छोटा सा मंदिर ही बना लो; बहुत अच्‍छा रहेगा। अगर तुम एक छोटा मंदिर बना सको तो सर्वोतम है। लेकिन फिर उसे किसी दूसरे काम में मत लाओ। उसे अपना निजी मंदिर रहने दो और शीध्र ही परिणाम आने लगेंगे। 


विज्ञान भैरव तंत्र 

ओशो 



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