बुद्ध यह हमेशा कहते थे कि गाली तब तक नहीं लगती जब तक तुम लो न। तुम
लेते हो, तो लगती है। किसी ने कहा: गधा। तुमने ले ली, तुम खड़े हो गए कि
तुमने मुझे गधा क्यों कहा? तुम लो ही मत। आया हवा का झोंका, चला गया हवा का
झोंका। झगड़ा क्या है! उसने कहा, उसकी मौज!
मैं अभी एक, कल ही एक छोटी सी कहानी पढ़ रहा था। अमरीका में प्रेसीडेंट
का चुनाव पीछे हुआ, कार्टर और फोर्ड के बीच। एक होटल में कहीं टेक्सास में कुछ लोग बैठे गपशप कर रहे थे और एक आदमी ने कहा, यह फोर्ड तो बिलकुल गधा
है। फिर उसे लगा कि गधा जरा जरूरत से ज्यादा हो गया, तो उसने कहा, गधा नहीं
तो कम से कम घोड़ा तो है ही। एक आदमी कोई साढ़े छह फीट लंबा एकदम उठकर खडा
हो गया और दो तीन घूंसे उस आदमी को जड़ दिए। वह आदमी बहुत घबड़ाया, उसने कहा
कि भई, आप क्या फोर्ड के बड़े प्रेमी हैं? उसने कहा कि नहीं, हम घोड़ों का
अपमान नहीं सह सकते।
अब तुमसे कोई गधा कह रहा है, अब कौन जाने गधे का अपमान हो रहा है कि
तुम्हारा हो रहा है। फिर गधे भी इतने गधे नहीं हैं कि गधे कहो तो नाराज
हों। तुम क्यों नाराज हुए जा रहे हो? और वह जो कह रहा है, वह अपनी दृष्टि
निवेदन कर रहा है। गधों को गधे के अतिरिक्त कुछ और दिखायी भी नहीं पड़ता।
उसे हो सकता है तुममें गधा दिखायी पड़ रहा हो। उसको गधे से ज्यादा कुछ
दिखायी ही न पड़ता हो दुनिया में। उसकी अड़चन है, उसकी समस्या है। तुम इसमें
परेशान क्यों हो? बुद्ध कहते थे, तुम लो मत, गाली को पकड़ो मत, गाली आए, आने
दो, जाए, जाने दो, तुम बीच में अटकाओ मत। तुम न लोगे, तो तुम्हें गाली
मिलेगी नहीं। तुम शांत रही।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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