मैंने सुना है,
एक अदभुत व्यक्ति हुआ, उसका नाम था, मुल्ला नसरुद्दीन। उसकी जिंदगी की बहुत सी कहानियां हैं। एक दिन सुबह-सुबह
एक वृक्ष पर चढ़ कर वह कुल्हाड़ी से वृक्ष को काट रहा है। और जिस शाखा पर बैठा है,
उसी शाखा को काट रहा है। शाखा कट जाएगी तो नीचे गिरेगा, जान खतरे में पड़ सकती है। नीचे से निकलने वाले एक राहगीर ने ऊपर की तरफ
आंख उठा कर देखा कि यह पागल क्या कर रहा है? और जब देखा कि
गांव का सबसे बुद्धिमान आदमी, मुल्ला नसरुद्दीन यह कर रहा है
तो उसने चिल्ला कर कहा कि हद हो गई, अगर कोई मूढ़ ऐसा करता
होता तो ठीक था, तुम यह क्या कर रहे हो? जिस शाखा पर बैठे हो उसी को काट रहे हो? गिरोगे,
मर जाओगे।
लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन तो अपने को बुद्धिमान समझता था। उसने कहा, जाओ, जाओ अपने रास्ते पर, जो सलाह बिना मांगे दी जाती है वह सलाह कभी ली नहीं जाती। और यह भी कहा कि तुमने मुझे बुद्धू, बुद्धु समझा हुआ है, मेरे पास अपनी बुद्धि है। और वह उस कुल्हाड़ी से लकड़ी को काटता रहा। आखिर वह शाखा कट गई और मुल्ला जमीन पर गिरा। गिरने पर उसे खयाल आया कि वह आदमी ठीक कहता था, मैंने उसकी बात पर विश्वास नहीं किया तो बहुत गलती की।
दौड़ कर वह भागा और दूर जाकर रास्ते पर उस आदमी को पकड़ा और उसके पैर छुए और क्षमा मांगी और कहा, मुझसे बड़ी भूल हो गई जो मैंने तुम्हारी बात पर विश्वास नहीं किया। उस आदमी ने कहाः विश्वास का सवाल नहीं था, तुमने विचार ही नहीं किया। यह विश्वास का सवाल नहीं था कि तुम मुझ पर विश्वास करो, यह सवाल था कि तुम विचार करो कि तुम जो कर रहे हो, वह क्या कर रहे हो? लेकिन तुमने विचार करने से इनकार कर दिया। और अब तुम दूसरी भूल कर रहे हो कि अब तुम मेरे पैर पकड़ कर मुझ पर विश्वास करने की कोशिश कर रहे हो। तब भी तुमने विचार नहीं किया था, अब भी तुम विचार नहीं कर रहे हो।
लेकिन नसरुद्दीन ने कहाः छोड़ो ये बातें, अब तो मुझे मेरा गुरु मिल गया। जिसने भविष्य की तक बात बता दी, जिसने यह बता दिया कि तुम गिरोगे वृक्ष से, भविष्य को कौन जानता है! लेकिन तुम भविष्य को भी जानते हो। अब मैं इसलिए आया हूं तुमसे पूछने कि मेरी मौत कब होगी? यह तुम बता दो, क्योंकि तुम भविष्य को जानने वाले हो। उस आदमी ने कहाः मैं कोई भविष्य को जानने वाला नहीं हूं। और वह कोई भविष्य को जानने की बात न थी, सीधी-साफ थी कि जिस शाखा पर बैठ कर कुल्हाड़ी चला रहे हो, अगर उसी को काटोगे तो गिरोगे और चोट खाओगे। लेकिन मुल्ला कैसे मानने वाला था? उसने जोर से पैर पकड़ लिए और कहा कि जब तक मेरी मौत का न बताओगे, मैं तुम्हें छोडंूगा नहीं। माना ही नहीं। तो उस आदमी ने गुस्से में कहा कि अभी मर जाओगे, जाओ।
वह आदमी तो चला गया, मुल्ला ने सोचा कि यह आदमी तो जो भी कहता है ठीक ही कहता है। वह उसी वक्त गिर गया और मर गया। आस-पास से लोग आए और उसको उठा कर उसकी अरथी को मरघट की तरफ ले जाने लगे। लेकिन बीच में एक रास्ता आता था--दोराहा, जहां से एक रास्ता पश्चिम, एक पूरब की तरफ से जाता था। वे अरथी को ले जाने वाले लोग सोचने लगे कि पूरब से चलें या पश्चिम से, मरघट की तरफ कौन सा रास्ता जल्दी पहुंचाता है? मुल्ला ने ऊपर से सिर उठाया अरथी के और कहा कि मैं मर चुका हूं, अगर मैं जिंदा होता तो तुम्हें बता देता। रास्ता तो पूरब का जो है वही जल्दी पहुंचता है, जब मैं जिंदा था तो पूरब के रास्ते से ही जाता था। लेकिन अब चूंकि मैं मर चुका हूं, मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूं।
लोगों ने उसकी अरथी नीचे पटक दी और कहा कि तुम कैसे मूढ़ हो? जब तुम बोल रहे हो तो तुम जिंदा हो। उसने कहाः यह कभी नहीं हो सकता। मैंने अपने गुरु पर विश्वास कर लिया है। और मेरे गुरु कभी भूल नहीं करते, कभी झूठ नहीं बोलते। भविष्य की बातें बता देते हैं। उन्होंने कहा कि तुम अभी मर जाओगे, मैं मर गया। अब मैं जिंदा नहीं हूं। अब कोई लाख कहे, मैं विश्वास नहीं छोड़ सकता। मैं तो अपने गुरु के चरणों को पकड़े हुए हूं, उन्होंने जो कहा है वह ठीक कहा है।
इस मुल्ला नसरुद्दीन पर हमें हंसी आती है। लेकिन शायद हमें पता नहीं कि वह यह कहानी हम पर हंसने के लिए लिख गया है। हम सबकी हालत ऐसी ही है। जीवन के तथ्यों को देखने की हमारी तैयारी नहीं। वह आदमी जिंदा है, वह आदमी बोल रहा है। लेकिन वह कहता है चूंकि मेरे गुरु ने कह दिया है, इसलिए मैं मर गया हूं।
जीवित, जीवंत होते हुए भी, जीते हुए भी इस तथ्य पर देखने की
उसकी तैयारी नहीं है। लेकिन जो कहा गया है उस पर विश्वास की तैयारी है। हम भी जो है
उसे नहीं देख रहे हैं, जो कहा गया है और जो हमने विश्वास कर
लिया है; उसको ही देखे चले जा रहे हैं, उसको ही दोहराए चले जा रहे हैं। और कोई हमें लाख बताए कि जिंदगी कुछ और है,
तो भी हम मानने को तैयार नहीं हैं।
हम सबको दिखाई पड़ती है कि चारों तरफ की जो जिंदगी हैः सच है, यथार्थ है। लेकिन हमारी किताबों में लिखा है कि बाहर का जो जगत है, वह माया है। हम वही दोहराए जा रहे हैं कि ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है। और जगत चारों तरफ दिखाई पड़ रहा है। चारों तरफ जगत अपने पूरे यथार्थ में मौजूद है। लेकिन किताब में लिखा हुआ है कि जगत माया है और ब्रह्म सत्य है, हम वही दोहराए चले जा रहे हैं। ब्रह्म हमें कहीं पर नहीं दिखाई पड़ रहा, जगत हमें प्रतिपल दिखाई पड़ रहा है।
जो दिखाई पड़ रहा है उसे इनकार कर रहे हैं, जो नहीं दिखाई पड़ रहा है उसकी गवाही भरे चले जा रहे हैं। आश्चर्यजनक है यह बात। और इस भांति का अंधापन लेकर अगर कोई कौम चलेगी तो उस कौम का कोई सुंदर भविष्य नहीं हो सकता है। न अतीत सुंदर था, न वर्तमान सुंदर है और न भविष्य सुंदर हो सकता है।
जीवन कैसा है? जीवन के सत्य कैसे हैं? उन्हें वैसे ही देखना जरूरी है अगर उन्हें बदलना हो। अगर किसी दिन ब्रह्म को भी खोजना हो, तो जगत को माया कह कर उसे नहीं खोज सकते हैं आप। अगर ब्रह्म को भी खेाजना हो तो जगत में जो सत्य है, उसकी खोज करके ही उसे भी खोजा जा सकता है। सत्य की खोज से ही अंततः हम सत्य तक पहंुच सकते हैं। कल्पनाओं की घोषणाओं से और विश्वासों के अंबार लगा लेने से कुछ भी नहीं हो सकता।
प्रेम गंगा
ओशो