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Tuesday, October 16, 2018

मैं निश्चित ही बुद्धत्व की उपलब्ध होना चाहता हूं। लेकिन यदि मैं उपलब्ध हो भी जाता हूं तो इससे बाकी संसार क्या अंतर पडेगा?



लेकिन तुम बाकी संसार की चिंता क्यों कर रहे हो? संसार को अपनी चिंता स्वयं करने दो। और तुम्हें इसकी चिंता नहीं है कि यदि तुम अज्ञानी रह गए तो बाकी संसार का क्या होगा। 

 
यदि तुम अज्ञानी हो तो बाकी संसार का क्या होता है? तुम दुख पैदा करते हो। ऐसा नहीं कि तुम जान-बूझ कर करते हो, पर तुम ही दुख हो; तुम जो भी करो, सब ओर दुख के ही बीज बोते हो। तुम्हारी आकाक्षा व्यर्थ हैं; तुम्हारा होना महत्वपूर्ण है। तुम सोचते हो कि तुम दूसरों की सहायता कर रहे हो, पर तुम बाधा ही डालते हो। तुम सोचते हो कि तुम दूसरों से प्रेम करते हो पर शायद तुम उनकी हत्या ही कर रहे हो। तुम सोचते हो कि दूसरों को कुछ सिखा रहे हो, पर हो सकता है तुम सदा अज्ञानी ही बने रहने में उनकी मदद कर रहे हो। क्योंकि तुम चाहते हो, तुम जो सोचते हो, तुम आकांक्षा करते हो, वह महत्वपूर्ण नहीं है। तुम क्या हो, यह महत्वपूर्ण है।


प्रतिदिन मैं लोगों को देखता हूं जो एक-दूसरे को प्रेम करते हैं, लेकिन वे मार रहे हैं एक-दूसरे को। वे सोचते हैं वे प्रेम कर रहे हैं वे सोचते हैं वे दूसरे के लिए जी रहे हैं और उनके बिना उनके परिवार, उनके प्रेमियों, उनके बच्चों उनकी पत्नियों, उनके पतियों का जीवन दुख से भर जाएगा। लेकिन वे लोग इनके साथ दुखी हैं। और वे हर तरह से सुख देने की कोशिश करते हैं, पर वे जो भी करें गलत हो जाता है।

 
ऐसा होगा ही, क्योंकि वे गलत हैं। करना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, जिस व्यक्तित्व से वह उठ रहा है वह अधिक महत्वपूर्ण है। यदि तुम अज्ञानी हो तो तुम संसार को नर्क बनाने में मदद दे रहे हो। यह पहले ही नर्क है-यह तुम्हारी ही निर्मिति है। जहां भी तुम स्पर्श करते हो नर्क बना लेते हो।


 
यदि तुम बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाते हो तो तुम कुछ भी करो-या तुम्हें कुछ करने की भी जरूरत नहीं है-बस तुम्हारे होने से तुम्हारी उपस्थिति से दूसरों को खिलने में सुखी होने में, आनंदित होने में सहायता मिलेगी।


लेकिन उसकी चिंता तुम्हें नहीं लेनी है। पहली बात तो यह है कि बुद्धत्व को कैसे उपलब्ध होना है। तुम मुझसे पूछते हो 'मैं बुद्धत्व को उपलब्ध होना चाहता हूं।लेकिन यह चाह बड़ी नपुंसक मालूम होती है क्योंकि इसके तुरंत बाद तुम कहते हो 'लेकिन'। जब भी लेकिन बीच में आ जाता है तो उसका अर्थ है अभीप्सा नपुंसक है।लेकिन संसार का क्या होगा?' तुम हो कौन? अपने बारे में तुमने सोच क्या रखा है? क्या संसार तुम पर निर्भर है?


क्या तुम इसे चला रहे हो? तुम इसकी देख- भाल कर रहे हो? तुम उत्तरदायी हो? स्वयं को इतना महत्व क्यों देते हो? इतना महत्वपूर्ण क्यों समझते हो?


यह भाव अहंकार का हिस्सा है। और दूसरों की यह चिंता तुम्हे कभी भी अनुभव के शिखर पर नहीं पहुंचने देगी, क्योंकि वह शिखर तभी उपलब्ध होता है जब तुम सब चिंताएं छोड़ देते हो। और तुम चिंताएं इकट्ठी करने में इतने कुशल हो कि बस अदभुत हो। अपनी ही नहीं दूसरों की भी चिंताएं इकट्ठी किए चले जाते हो जैसे कि तुम्हारी अपनी चिंता पर्याप्त नहीं है। तुम दूसरों के बारे में सोचते रहते हो। और तुम कर क्या सकते हो? तुम बस और अधिक चिंतित और पागल हो सकते हो।

 
मैं एक वाइसराय, लार्ड वैवेल की डायरी पढ़ रहा था। वह आदमी बड़ा ईमानदार मालूम होता है क्योंकि उसके कई वक्तव्य बहुत अदभुत हैं। एक वक्तव्य में वह कहता है, 'जब तक ये तीन बड़े, गांधी, जिन्ना और चर्चिल नहीं मर जाते तब तक भारत मुसीबत में ही रहेगा।ये तीन लोग-गांधी, जिन्ना और चर्चिल-और ये ही हर तरह से मदद कर रहे थे! चर्चिल का अपना वाइसराय लिखता है कि इन तीन लोगों को जल्दी मर जाना चाहिए। और बड़ी आशा से वह उनकी उम्र भी लिखता है-गांधी जिन्ना और चर्चिल। क्योंकि यही तीन समस्याएं हैं।

क्या तुम गांधी जी के बारे में यह कल्पना कर सकते हो कि वे ही समस्या हैं? या जिन्ना? या चर्चिल? तीनों ही इस देश की समस्याओं को सुलझाने की पूरी कोशिश कर रहे थे! और वैवेल कहता है कि यही तीनों समस्या हैं, क्योंकि ये तीनों बड़े हठी हैं; तीनों में से हर-एक के पास पूरा-पूरा सत्य है और बाकी दोनों को बिलकुल गलत समझते हैं। ये तीनों कहीं नहीं मिल सकते, बाकी दो बस गलत हैं। मिलने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।


हर कोई यही सोचता है कि जैसे वही केंद्र है और उसे ही पूरे संसार की चिंता करनी है और पूरे संसार को बदलना है, रूपांतरित करना है, आदर्श संसार बनाना है। तुम बस इतना ही कर सकते हो कि स्वयं को बदल लो। तुम संसार को नहीं बदल सकते। इसे बदलने के चक्कर में तुम और गड़बड़ कर सकते हो, और अराजकता बढ़ा सकते हो; और हानि पहुंचा सकते हो और परेशान हो सकते हो। पहले ही संसार इतना परेशान है और तुम उसकी परेशानी बढ़ा दोगे, उसकी उलझन बढ़ा दोगे।

 
संसार को कृपा करके उसके हाल पर ही छोड़ दो। तुम बस एक ही बात कर सकते हो, वह यह कि आंतरिक मौन, आंतरिक आनंद, तरिक प्रकाश को उपलब्ध हो जाओ। यदि तुम यह उपलब्ध कर लो तो तुमने संसार की बहुत सहायता कर दी। अज्ञान के केवल एक बिंदु को प्रकाश की ली में बदलकर, केवल एक व्यक्ति के अंधकार को प्रकाश में बदलकर, तुमने संसार के एक हिस्से को बदल दिया। और उस बदले हुए हिस्से से बात आगे बढ़ेगी। बुद्ध मरे नहीं हैं। जीसस मरे नहीं हैं। वे मर नहीं सकते, क्योंकि एक श्रृंखला चलती है-ज्योति से ज्योति जले। फिर एक उत्तराधिकारी पैदा होता है और यह क्रम आगे चलता रहता है, वे सदा जीवित रहते हैं।

तंत्र सूत्र 

ओशो

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