हर आदमी की जिंदगी रोज बुरी से बुरी होती जा रही है। लेकिन लोग
कुछ इस तरह कहते हैं, जैसे अंधेरा आज ही आ गया हो। अंधेरा सदा से है, और
ऐसा नहीं है कि आदमी आज बुरा हो गया है; आदमी सदा से ही बुरा
रहा है। लेकिन आज की बुराई दिखाई पड़ती है, पिछली बुराइयां
छिप जाती हैं, खो जाती हैं और दिखाई नहीं पड़ती। और इतिहास के
साथ एक बुनीयादी भूल हो जाती है और वह भूल यह है कि अतीत के तो अच्छे लोग याद रह
जाते हैं और आज के सिर्फ बुरे लोग दिखाई पड़ते हैं। उनके बीच तुलना करने से कठिनाई
हो जाती है।
राम याद हैं, बुद्ध याद हैं, महावीर याद हैं, कृष्ण याद हैं, उस जमाने का साधारण आदमी कौन है उसका हमें कुछ भी पता नहीं। आज से दो हजार साल बाद न मेरी किसी को याद होगी, न आपकी किसी को याद होगी, एक आदमी हमारे बीच थे गांधी, उन्हें लोग याद रखेंगे। दो हजार साल बाद लोग सोचेंगे कि गांधी का युग बड़ा धार्मिक युग रहा होगा--अहिंसा का, प्रेम का, सत्य का। झूठी होगी उनकी धारणा, गलत होगा उनका खयाल। गांधी हमारे प्रतिनिधि, रिप्रेजेंटेटिव नहीं हैं, गांधी अकेले हैं। हम उन जैसे नहीं ठीक उनसे विपरीत हैं। लेकिन वे याद रह जाएंगे और हमारे युग को उनका नाम दिया जाएगा, जो कि सरासर झूठ होगा। गांधी युग कहा जाएगा। युग हम बनाते हैं, गांधी नहीं। हम भूल जाएंगे और गांधी का युग हो जाएगा।
ऐसा ही हुआ है राम के साथ, बुद्ध के साथ, कृष्ण के साथ, महावीर के साथ। आज हम कहते हैं कि महावीर के जमाने के लोग कितने अच्छे रहे होंगे? महावीर के कारण हम ऐसा कहते हैं। लेकिन महावीर प्रतिनिधि नहीं हैं, महावीर अकेले हैं। और इस बात को थोड़ा सोच लेना जरूरी है ताकि हम, आज की बीमारी आज की ही नहीं है सदा की ही है, यह समझ पाएं। अगर बीमारी सदा की है और हमने समझा कि आज की है, तो हम इलाज कभी भी नहीं कर पाएंगे। क्योंकि हम उस बीमारी की जड़ों में ही नहीं उतर सकेंगे। हम समझेंगे बीमारी सामायिक है। जब कि बीमारी सनातन है। बिमारी उतनी ही पुरानी है जितना पुराना आदमी है। और हम समझेंगे आज का युग ही खराब है। तो हम जो तरकीबें सोचेंगे बदलने की वे काम नहीं करेंगी। क्योंकि हमारा निदान ही गलत होगा। बीमारी कितनी पुरानी है बीमारी मिटाने के लिए पहली बात है जो जान लेनी चाहिए। लेकिन भूल हुई है। अतीत के संबंध में निरंतर भूल हो जाती है। उसके कारण हैं।
पहला कारण तो मैं कहना चाहता हूं कि पिछले जमाने के चमकते हुए लोग याद रह जाते हैं और हम आज के अपने पड़ोसी से उनकी तुलना करते हैं। तो बहुत कठिनाई हो जाती है। उस जमाने का साधारण आदमी बिलकुल भूल जाता है। साधारण आदमी आज ही जैसा था। जरा भी फर्क नहीं।
जितनी चोरी आज है,
जितनी बेईमानी आज है, जितना कपट है, उतना ही तब भी था। जरा भी कम नहीं। और जब मैं ऐसा कहता हूं तो मेरा कुछ
मतलब है। बुद्ध सुबह से उठते हैं और सांझ तक लोगों को समझाते हैंः चोरी मत करो,
झूठ मत बोलो, दूसरे की स्त्री को लेकर मत भाग
जाओ। या तो बुद्ध का दिमाग खराब होगा कि भले लोगों को ऐसी बातें समझा रहे हैं जो
ये काम करते ही नहीं या लोग ऐसे रहे होंगे। चालीस साल तक अनवरत सुबह से सांझ तक
बुद्ध ये ही बातें समझा रहे हैं। किनको समझा रहे होंगे? जिनको
समझा रहे हैं वे लोग हमसे भिन्न नहीं हो सकते। क्योंकि बुद्ध की शिक्षाएं हमारे
लिए आज भी काम की मालूम पड़ती हैं। वे हमारे जैसे लोग रहे होंगे, जिनके लिए वह काम की थीं। उसमें बहुत भेद नहीं हो सकता।
इन सारे बड़े पुरुषों को हम इतना आदर देते हैं, उसका भी यही कारण है। सिर्फ आदर उनको दिया जाता है जो अत्यंत न्यून होते हैं, अल्प होते हैं। उन्हें आदर नहीं दिया जाता जो बहुत होते हैं। अगर दुनिया में सज्जन बहुत हो जाएंगे, सज्जन को आदर मिलना बंद हो जाएगा। अगर दुनिया में महात्मा बहुत हो जाएंगे, फिर महात्मा को कोई पूछेगा नहीं। असल में महात्मा को पूछने के लिए चोरों की मौजूदगी बहुत जरूरी है। जो पूछते हैं, जो आदर देते हैं, वे विपरीत होते हैं। इसीलिए पूछते हैं, इसीलिए आदर देते हैं।
स्कूल में एक शिक्षक काले तख्ते पर सफेद खड़िया से लिखता है।
सफेद दिवाल पर भी लिख सकता है। लिख तो जाएगा लेकिन दिखाई नहीं पड़ेगा। सफेद खड़िया
से काले तख्ते पर लिखे तो ही दिखाई पड़ता है। अच्छा आदमी बुरे समाज के काले तख्ते
पर ही दिखाई पड़ता है। नहीं तो दिखाई नहीं पड़ेगा।
महावीर, बुद्ध और कृष्ण और राम जो हमें दिखाई पड़ते हैं हजारों साल के बाद वह समाज की अंधेरी रात, उसके ऊपर चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं। अंधेरी रात में तारे ज्यादा चमकते हैं। दिन में तारे खो नहीं जाते। दिन में तारे उतने ही होते हैं जितने रात में होते हैं लेकिन दिखाई नहीं पड़ते, क्योंकि सफेदी में तारा कैसे दिखाई पड़ेगा? खो जाता है। जिस दिन दुनिया अच्छी होगी सबसे पहले महात्मा खो जाएंगे, वे दिखाई नहीं पड़ेंगे। जब तक दुनिया बुरी है तब तक महात्मा दिखाई पड़ता रहेगा। इसलिए महात्मा के तो हित में है कि दुनिया बुरी रहे। समझाता है, बुराई को मिटाता है। लेकिन उसका अस्तित्व तो रह सकता है, लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ेगा।
अतीत में हमने दस-पांच बड़े नामों को याद रख लिया है। उसका कारण है कि हमने दस-पांच आदमी पैदा किए। बाकी सारी आदमियत बांझ थी। उससे कुछ पैदा नहीं हुआ। आदमी सदा से ऐसा ही है। इसलिए कुछ ऐसा नहीं है कि आज ही अंधेरा हो गया है, और आज ही धर्म खो गया है, और आज ही लोग परमात्मा को याद नहीं कर रहे हैं, कुछ ऐसा नहीं है कि कलियुग की वजह से सब कुछ हो रहा है। सतयुग में सब अच्छा था? जैसा आदमी आज है वैसा सदा था। इसलिए बीमारी से लड़ना बहुत गहरे पड़ेगा।
प्रेम दर्शन
ओशो
No comments:
Post a Comment