आदमी जहां है वहां तृप्ति नहीं है। आदमी जहां है वहां दुख और
विषाद है। और आदमी को जहां तृप्ति की आशा दिखाई पड़ती है वह दूसरा किनारा बहुत दूर
धुंध में छाया मिल भी सकेगा निर्णय करना मुश्किल है। है भी यह भी निश्चय करना मुश्किल
है।
इस किनारे पर कोई सुख नहीं है। उस किनारे पर आशा है लेकिन कैसे उस किनारे तक कोई पहुंचे माझी खोजना होगा। किसी ऐसे का साथ चाहिए जो उस पार हो जो उस पार हो आया हो जिसने संतुष्टि का स्वाद जाना हो जो मोक्ष की हवा में जीया हो। किसी मुक्त का सत्संग चाहिए। गुरु का इतना ही अर्थ है।
गुरु का अर्थ हैः इस किनारे होकर भी जो इस किनारे का नहीं। इस किनारे होकर भी जो उस किनारे का सबूत है। इस किनारे होकर भी जो वस्तुत उस किनारे ही रहता है। तुम्हारे बीच है तुम्हारे जैसा है फिर भी तुम्हारे बीच नहीं। फिर भी तुम्हारे जैसा नहीं।
गुरु का अर्थ है जहां कुछ अपूर्व घटा है। जहां बीज अब बीज ही नहीं फूल बन गए है। जहां संभावना वास्तविक हुई है जहां मनुष्य की अंतिम मंजिल पूरी हुई है जहां मनुष्य अपनी निष्पत्ति को उपलब्ध हुआ है।
गुरु का अर्थ है तुम्हारा भविष्य। गुरु का अर्थ है तुम जो हो सकते हो वैसा कोई हो गया है। उसका हाथ पकड़े बिना यात्रा संभव नहीं है। उसका हाथ पकड़े बिना भटक जाने की संभावना है पहंुचने की नहीं।
आज के सूत्र महत्वपूर्ण हैं--सभी साधकों सभी खोजियों के लिए।
गुरु कहै सो कीजिए करै सो कीजै नाहिं।
चरनदास की सीख सुन यही राख मन माहिं।।
बड़ा अनूठा वचन है और एकदम से समझ में न पड़े ऐसा वचन है। समझ पड़ जाए तो बड़ी संपदा हाथ लग गई।
‘गुरु कहै सो कीजिए करै सो कीजै नाहिं।’
उलटा लगता है। साधारणत तो हम सोचेंगे गुरु जैसा करे वैसा करो। लेकिन चरणदास कहते है गुरु जो कहे वैसा करो जो करे वैसा नहीं। क्यों क्योंकि गुरु जो कर रहा है वह तो उसकी आत्मदशा है। गुरु का कृत्य तो उस पार का कृत्य है। गुरु जो कर रहा है जैसा जी रहा है वैसे तो तुम अभी जी न सकोगे। वैसा जीना चाहा तो झंझट में पड़ोगे। या तो पाखंड हो जाएगा प्रारंभ अभिनय होगा क्योंकि जो तुम्हारी अंतर्दशा नहीं है वह तुम्हारा आचरण कैसे बनेगा
गुरु जैसा है वैसा करने की कोशिश मत करना। वैसा तो किसी दिन जब होगा तब होगा।
महावीर नग्न खड़े हैं तुम भी नग्न खड़े हो जाओ। लेकिन तुम्हारी नग्नता में और महावीर की नग्नता में बड़ा भेद होगा जमीन आसमान का भेद होगा। तुम्हारी नग्नता आरोपित नग्नता होगी। तुम्हारी नग्नता एक तरह का नंगापन होगी। महावीर की नग्नता नंगापन नही है। महावीर की नग्नता निर्दोेषता है। तुम चेष्टा करोगे वस्त्रों को गिराने की। महावीर के साथ घटना और ही घटी है। छुपाने को कुछ नहीं रहा। वस्त्र गिरा दिए--ऐसा नहीं छुपाने को कुछ नहीं रहा। जैसे छोटा बच्चा हो ऐसे हो गए हैं। निर्वस्त्रता नहीं है यह मात्र यह निर्दोेषता का जन्म है।
लेकिन तुम अगर चेष्टा करोगे और महावीर जैसे ही बन कर खड़े हो जाओगे तो तुम सिर्फ निर्वस्त्र होओगे। और इस निर्वस्त्रता में धोखा हो जाएगा। तुम्हे लगेगा हो गया महावीर जैसा।
नहीं महावीर जो कहें वैसा करो जो करें वैसा नहीं। क्यांेकि महावीर जो आज कर रहे हैं वह चेष्टा से नहीं है उनकी सहज स्फुरणा से है। तुम करोगे--चेष्टा होगी आरोपण होगा जबरदस्ती होगी।
मगर अकसर ऐसा होता है कि लोग गुरु का अनुकरण करने लगते हैं। गुरु जैसा करता है वैसा करने लगते हैं। गुरु जो कहता है उसे तो सुनते नहीं हैं। उसे ही सुनो उसी को करते-करते एक दिन ऐसी घड़ी आएगी उस सहज क्रांति की घड़ी उस समाधि की घड़ी जब तुमसे गुरु जैसा होने लगेगा लेकिन गुरु जैसा करना मत। होगा एक दिन जरूर। किया--चूक जाओगे। गुरु जो कहे वही करना। क्योंकि गुरु जब कहता है तो तुम्हें ध्यान में रखकर कहता है। और गुरु जब करता है तो अपनी सहजता से करता है। इस भेद को समझना।
गुरु जब कहता है तो तुमसे कहता है तो तुम पर न.जर होती है। तुम कहां हो इस बात पर नजर होती है। तुम्हारे लिए क्या काम का होगा इस बात पर नजर होती है। तुम्हें किससे लाभ मिलेगा इस बात पर नजर होती है। तुम कैसे बदलोेगे तुम जहां खड़े हो वहां से कैसे पहला कदम उठेगा--उस तरफ इशारा होता है।
गुरु जो बोलता है वह तुमसे बोलता है। इसलिए तुम्हारा ख्याल रख कर बोलता है। गुरु जो करता है वह अपने स्वभाव से करता है अपनी स्थिति से करता है अपनी समाधि से करता है। गुरु का कृत्य उसके भीतर से आता है। गुरु के शब्द तुम्हारे प्रति अनुकंपा से आते हैं। इस भेद को खूब समझ लेना।
तो गुरु के शब्द ही तुम्हारे लिए सार्थक है--गुरु का कृत्य नहीं। हां, शब्दोें को मान कर चलते रहे तो एक दिन गुरु के कृत्य भी तुममें घटित होंगे। वह अपूर्व घड़ी भी आएगी वैसा सूरज तुम्हारे भीतर भी उगेगा। वैसे मेघ तुम्हारे भीतर भी घिरेंगे। वैसा मोर तुम्हारे भीतर भी नाचेगा। वैसी वर्षा निश्चित होनी है। लेकिन अगर तुमने पहले से ही गलत कदम उठाया गलत कदम यानी गुरु ने जैसा किया वैसा किया--तो चूक जाओगे।
नहीं साँझ नहीं भोर
ओशो
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