मुझ से लोग आकर पूछते हैं,
विशेषकर जो अमरीका से आते हैं, वे मुझसे पूछते
हैं कि भारत गरीब क्यों है? क्योंकि भारत मूढ़ है। गरीबी
मौलिक नहीं है, मूढ़ता मौलिक है। मूल में मूढ़ता है। यहां धन
को पकड़ने की आदत है, यहां धन को जीने की आदत नहीं है। यहां
हर चीज को पकड़ने की आदत है। यहां जो मिल जाए, उस पर कब्जा कर
लो, मुट्ठी बंद कर लो। सम्हालकर बैठ जाओ।
अमरीका उछालता है,
जो है, उसका उपयोग कर लो। असल में अमरीका,
जो नहीं है, उसका भी उपयोग करता है। अभी कार
खरीद लेगा और दस साल पैसे चुकाएगा। अभी हैं ही नहीं पैसे। दस साल में पैसे होंगे।
कमाएगा, तब चुकाएगा। इंस्टालमेंट पर खरीद लेगा। इंस्टालमेंट
पर खरीदने का मतलब है : तुम्हारे पास जो धन अभी नहीं है, वह
तुमने खर्च कर दिया।
यहां भारत में जो धन तुम्हारे पास है, उसको भी तुम खर्च नहीं
करते। अभी कल तुमने पढ़ा न, बुद्ध की इस कथा में कि वह आदमी
मर गया—नगर श्रेष्ठी—अपुत्रक। और जब मर
गया, तो उसके घर से सात दिन तक बैलगाडियो में भरकर धन ढोया
गया। और वह खुद न तो कभी खाया ठीक से, न कभी पीया ठीक से।
उसने कपड़े नहीं पहने ठीक से। जराजीर्ण कपड़े पहनता रहा। वह पुराने टूटे —फूटे रथों पर चलता रहा। रूखा—सूखा खाता रहा। वह
शुद्ध भारतीय था!
यही भारतीय भारत की गरीबी के पीछे कारण है।
चीजों को बहने दो। चीजों को चलने दो, गतिमान होने दो। संसार को
भी जीने का ढंग वही है, जो परमात्मा को जीने का ढंग है। पकड़ो
मत।
लेकिन कभी —कभी तुम पकड़ना भी छोड़ देते हो, तब भी पकड नहीं
छूटती। क्योंकि तुम्हारी जड़ता बड़ी गहरी है। एक आदमी कहता है ठीक है। नहीं पकड़ेंगे।
तो धन छोड़कर जंगल भाग जाता है। अब वह त्याग को पकड़ लेता है! पहले धन को पकड़ा था,
अब त्याग को पकड़ लिया!
तुम्हें इस तरह के साधु —संतों का पता होगा, जो धन नहीं छूते। यह मूढ़ता सिर
के बल खडी हो गयी! पहले सिर्फ धन ही धन इनका प्राय था, अब धन
छूने से घबड़ाते हैं, जैसे धन में कोई सांप—बिच्छू है। मध्य में नहीं टिकते।
मध्य में टिकने का मतलब है : धन को आने दो, जाने दो। रोको भर मत। आए भी,
जाए भी। यात्रा जारी रहे।
तो या तो प्रेम करते हैं लोग, और विवाह में रूपांतरित कर लेते हैं। या फिर
इतने घबड़ा जाते हैं, कहते हैं कि हम संन्यासी हुए जाते हैं।
हम इस प्रेम की झंझट में न पड़ेंगे। इसमें झंझट है। हम संन्यासी हैं। हम ब्रह्मचर्य
धारण कर लेते हैं। हम किसी से कभी कोई प्रेम ही न करेंगे।
मगर हर हालत में तुम जड़ रहते हो। या तो विवाह बनकर जड़ या ब्रह्मचारी
बनकर जड़। लेकिन प्रेम आए और जाए,
बहे—उससे तुम घबडाते हो। उससे तुम्हारे प्राण
संकट में पड़ जाते हैं।
वासुदेव यही कह रहा है। वह कह रहा है अपरिग्रह का सूत्र यही है
कि चीजें आतीं, जातीं।
तुम बीच में अडो मत। जब आएं, तो आ जाने दो। जब चली जाएं,
तब चली जाने दो। न तो खींचो आने के लिए। न धकाओ जाने के लिए।
नदी अपने से ही बह रही है,
इसको धकाने इत्यादि की कोई जरूरत नहीं है। जो नदी पर मुट्ठी बांधेगा,
उसकी मुट्ठी खाली रह जाएगी। जल पी लो, स्नान
कर लो, मुट्ठी मत बांधो।
एस धम्मो सनंतनो
ओशो
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