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Sunday, April 12, 2020

प्रेम के अतिरिक्‍त कोई आदमी कभी स्‍वस्‍थ नहीं हो सकता।



प्रेम जीवन में न हो तो मस्‍तिष्‍क रूग्‍ण होगा। चिंता से भरेगा, आदमी शराब पियेगा। नशा करेगा। कहीं जाकर अपने को भूल जाना चाहेगा। दुनिया में बढ़ती हुई शराब शराबियों के कारण नहीं है। परिवार ने उस हालत में ला दिया है लोगों को कि बिना बेहोश हुए थोड़ी देर के लिए भी रास्‍ता मिलना मुश्‍किल हो गया है। तो लोग शराब पीने चले जायेंगे। लोग बेहोश पड़े रहेंगे लोग हत्‍या करेंगे, लोग पागल होते चले जायेंगे।


अमरीका में प्रतिदिन बीस लाख आदमी अपना मानसिक इलाज करवा रहे है। ये सरकारी आंकड़े है। आप तो भली भांति जानते है सरकारी आंकड़े कभी भी सही नहीं होते है। बीस लाख सरकार कहती है। तो कितने लोग इलाज करा रहे होंगे। यह कहना मुश्‍किल है। जो अमरीका की हालत है वह सारी दुनियां की हालत है।


आधुनिक युग के मानविद यह कहते है कि करीब-करीब चार आदमियों में दो आदमी एबनार्मल हो गये है। चार आदमियों में तीन आदमी रूग्‍ण हो गये है। स्‍वस्‍थ नहीं है। जिस समाज में चार आदमियों में तीन आदमी मानसिक रूप से रूग्‍ण हो जाते हों, उस समाज के आधारों को उसकी बुनियादों को फिर से सोच लेना जरूरी है। नहीं तो कल चार आदमी भी रूग्‍ण होंगे और फिर सोचने वाले भी शेष नहीं रह जायेंगे। फिर बहुत मुश्‍किल हो जायेगी।


लेकिन होता ऐसा है कि जब एक ही बीमारी से सारे लोग ग्रसित हो जाते है। तो उस बीमारी का पता नहीं चलता। हम सब एक जैसे रूग्‍ण, बीमार, परेशान है; तो हमें पता नहीं चलता। सभी ऐसे हैइसीलिस स्‍वस्‍थ मालूम पड़ते है। जब सभी ऐसे है, तो ठीक है। दुनियां चलती है, यही जीवन हे। जब ऐसी पीड़ा दिखाई देती है तो हम ऋषि-मुनियों के बचन दोहराते है कि वह तो ऋषि-मुनियों ने पहले ही कह दिया था। की जीवन दुःख है।


यह जीवन दुःख नहीं है। यह दुःख हम बनाये हुए है। वह तो पहले ही ऋषि-मुनियों ने कह दिया था। कि जीवन तो आसार है, उससे छुटकारा पाना चाहिए। जीवन असार नहीं है। यह असार हमने बनाया हुआ है।


जीवन से छुटकारा पाने की सब बातें दो कौड़ी की है। क्‍योंकि जो आदमी जीवन से छुटकारा पाने की कोशिश करता है वह प्रभु को कभी उपलब्‍ध नहीं हो सकता। क्‍योंकि जीवन प्रभु है, जीवन परमात्मा है। जीवन में परमात्‍मा ही तो प्रकट हो रहा है। उससे जो दूर भागेगा,वह परमात्‍मा से ही दूर चला जायेगा।

संभोग से समाधि की ओर 

ओशो 

Sunday, April 5, 2020

कामना का अर्थ


कामना का अर्थ है, दौड़। जहां मैं खड़ा हूं, वहां नहीं है आनंद। जहां कोई और खड़ा है, वहां है आनंद। वहां मुझे पहुंचना है। और मजे की बात यह है कि जहां कोई और खड़ा है, और जहां मुझे आनंद मालूम पड़ता है, वह भी कहीं और पहुंचना चाहता है! वह भी वहां होने को राजी नहीं है। उसे भी वहां आनंद नहीं है। उसे भी कहीं और आनंद है।


कामना का अर्थ है, आनंद कहीं और है, समव्हेयर एल्स। उस जगह को छोड़कर जहां आप खड़े हैं, और कहीं भी हो सकता है आनंद। उस जगह नहीं है, जहां आप हैं। जो आप हैं, वहां आनंद नहीं है। कहीं भी हो सकता है पृथ्वी पर; पृथ्वी के बाहर, चांदत्तारों पर; लेकिन वहां नहीं है, जिस जगह को आप घेरते हैं। जिस होने की स्थिति में आप हैं, वह जगह आनंदरिक्त है--कामना का अर्थ है।


कामना से मुक्ति का अर्थ है, कहीं हो या न हो आनंद, जहां आप हैं, वहां पूरा है; जो आप हैं, वहां पूरा है। संतृप्ति की पराकाष्ठा कामना से मुक्ति है। इंचभर भी कहीं और जाने का मन नहीं है, तो कामना से मुक्त हो जाएंगे।


कामना के बीज, कामना के अंकुर, कामना के तूफान क्यों उठते हैं? क्या इसलिए कि सच में ही आनंद कहीं और है? या इसलिए कि जहां आप खड़े हैं, उस जगह से अपरिचित हैं?


अज्ञानी से पूछिएगा, तो वह कहेगा, कामना इसलिए उठती है कि सुख कहीं और है। और अगर वहां तक जाना है, तो बिना कामना के मार्ग से जाइएगा कैसे? ज्ञानी से पूछिएगा, तो वह कहेगा, कामना के अंधड़ इसलिए उठते हैं कि जहां आप हैं, जो आप हैं, उसका आपको कोई पता ही नहीं है। 

काश, आपको पता चल जाए कि आप क्या हैं, तो कामना ऐसे ही तिरोहित हो जाती है, जैसे सुबह सूरज के उगने पर ओस-कण तिरोहित हो जाते हैं।

गीता दर्शन 

ओशो

जानने का अर्थ


रामकृष्ण के पास केशवचंद्र मिलने गये। और केशवचंद्र ने कहा कि मेरा ईश्वर में भरोसा नहीं है! मैं विवाद करने आया हूं। मैं आपके भरोसे को खंडित कर दूंगा। आप मेरी चुनौती स्वीकार करें। रामकृष्ण ने कहा. बहुत मुश्किल है। तुम यह कर न पाओगे। तुम्हारी हार निश्चित है। नहीं कि मैं विवाद कर सकता हूं। नहीं कि मेरे पास कोई तर्क है। मेरे पास कोई तर्क नहीं, लेकिन मैंने प्रभु को जाना है। तुम लाख खंडन करो, क्या फर्क पड़ता है? मैं फिर भी जानता हूं कि परमात्मा है। यह मेरा अपना निजी अनुभव है, तुम इसे छीन न सकोगे। यह मेरी श्वासश्वास में समाया है। यह मेरे हृदय की धड़कनधड़कन में व्यापा है। यह मेरे रोएंरोएं की पुकार है, इसे तुम छीन न सकोगे। तुम्हारे तर्क का उत्तर मैं न दे पाऊंगा, केशवचंद्र। तुम बुद्धिमान हो, शास्त्रज्ञ हो, ज्ञानी हो, पंडित हो; मैं अनपढ़ गंवार हूंरामकृष्ण ने कहा। लेकिन उलझोगे तो गंवार से जीतोगे नहीं, क्योंकि मेरे कोई सिद्धांत थोड़े ही हैं, कोई विश्वास थोड़े ही हैं। ऐसा मेरा अनुभव है। तुम मेरे अनुभव को कैसे खंडित करोगे? जो मैंने जाना है उसे तुम कैसे अनजाना करवा दोगे? मैंने इन आंखों से देखा है। लाख दुनिया कहे सारी दुनिया एक तरफ हो जाये और कहे कि ईश्वर नहीं है, तो भी मैं कहता रहूंगा, है। क्योंकि मैंने तो जाना है!


केशव तो नहीं माने, उन्होंने तो बड़ा विवाद किया। और रामकृष्ण उनके विवाद को सुनते रहे एक भी तर्क का उत्तर न दिया। बीचबीच में जब केशवचंद्र कोई बहुत गंभीर तर्क उठाते तो वे खड़े होहो कर केशवचंद्र को गले लगा लेते। केशवचंद्र बहुत बेचैन होने लगे, वह जो भीड़ इकट्ठी हो गयी थी देखने, केशवचंद्र के शिष्य आ गये थे कि बड़ा विवाद होगा, वे भी जरा बेचैन होने लगे। और केशवचंद्र को भी पसीना आने लगा। और केशवचंद्र ने कहा, यह मामला क्या है? आप होश में हैं? मैं आपके विपरीत बोल रहा हूं!


रामकृष्ण ने कहा कि तुम सोचते हो कि मेरे विपरीत बोल रहे हो। तुम्हें देख कर मुझे परमात्मा पर और भरोसा आने लगा है। जब ऐसी प्रतिभा हो सकती है संसार में तो बिना परमात्मा के कैसे होगी? तुम्हारी प्रतिभा अनूठी है। तुम्हारे तर्क बहुमूल्य हैंबड़ी धार है तुम्हारे तर्कों में। यह प्रमाण है कि प्रभु है। यह तुम्हारा चैतन्य, यह तुम्हारा तर्क, ये तुम्हारे विचार, यह तुम्हारी प्रणालीइस बात का सबूत है कि परमात्मा है। जब फूल लगते हैं तो सबूत है कि वृक्ष होगा। फूल लाख उपाय करें, वृक्ष को खंडित न कर पायेंगे। उनका होना ही वृक्ष का सबूत हो जाता है। फूल लाख गवाही दें अदालत में जा कर कि वृक्ष नहीं होते हैं, लेकिन फूलों की गवाही ही बता देगी कि वृक्ष होते हैं, अन्यथा फूल कहां से आयेंगे ?


रामकृष्ण ने कहा : मैं तो गंवार हूं मेरे पास तो कोई प्रतिभा का फूल नहीं है; तुम्हारे पास तो प्रतिभा का कमल है। मैं हजारहजार धन्यवाद से भरा हूं। इसलिए उठउठ कर तुम्हें गले लगता हूं कि हे प्रभु, तूने खूब किया, केशवचंद्र को मेरे पास भेजा! तेरी एक झलक और मिली! तुझसे मेरी एक पहचान और हुई! एक नये द्वार से तुझे फिर देखा! अब तो कोई लाख उपाय करे केशव, तुम्हें देख लिया, अब तो कभी मान न सकूंगा कि ईश्वर नहीं है।


केशवचंद्र ने अपने स्मरणों में लिखा है कि जिस एक आदमी से मैं हार गया, वे रामकृष्ण हैं। इस आदमी से जीतने का उपाय न था। उस रात मैं सो न सका और बारबार सोचने लगा, जरूर इस आदमी को कोई अनुभव हुआ है। कोई ऐसा प्रगाढ़ अनुभव हुआ है कि कोई तर्क उसे डगमगाते नहीं। इतना प्रगाढ़ अनुभव हुआ है कि तर्कों के माध्यम से भी, जो विपरीत तर्क हैं उनसे भी वही अनुभव सिद्ध होता है। नहीं, इस आदमी के चरणों में बैठना होगा। इस आदमी से सीखना होगा। इसे जो दिखाई पड़ा है वह मुझे भी देखना होगा। इसके पास आंख है, मेरे पास तर्क है। तर्क काफी नहीं। तर्क से कब किसी की भूख मिटी है! और तर्क से कब किसका कंठ तृप्त हुआ!


निश्चित जानने का अर्थ है रामकृष्ण की भांति जानना। निश्चित जानने का अर्थ है-विश्वास नहीं; अनुभव से आती है जो श्रद्धा, वही।

अष्टावक्र महागीता 

ओशो

Friday, April 3, 2020

समस्या और हल


एक विश्वविद्यालय में विधीशास्त्र के एक अध्यापक अपने जीवनभर वर्ष के पहले दिन की पढ़ाई तखते पर चारऔर दोके अंक लिखकर प्रारंभ करते थे। वे दोनों अंकों को लिखकर विद्यार्थियों से पूछते थे : क्या हल है?'


निश्चय ही कोई विद्यार्थी शीघ्रता से कहता : छः!


और फिर कोई दूसरा कहता : दो!


लेकिन अध्यापक को चुप सिर हिलाते देखकर अंततः अंतिम संभावना को सोचकर अधिकतम विद्यार्थी चिल्लाते आठ। लेकिन अध्यापक तब भी अपना अस्वीकार सूचक सिर हिलाते ही जाते थे!


और तब सन्नाटा छा जाता था क्योंकि और कोई उत्तर तो हो ही नहीं सकता था!


फिर वे अध्यापक हंसते थे और कहते थे : मित्रो, आप सभी ने अत्यंत आधारभूत प्रश्न ही नहीं पूछा तो हल कैसे संभव हो सकता है? आपने यही नहीं जानना चाहा कि वस्तुतः समस्या क्या है? और जो समस्या को सम्यक रूप से जाने बिना ही समाधान जानने मैं लग जाता है, निश्चय ही वह समाधान तो पाता ही नहीं है और उल्टे समस्या को और उलझा लेता है।


क्या यह बात सत्य नहीं है कि समस्या को जाने बिना ही समाधान खोज और पकड़ लिए जाते हैं; जबकि समाधान नहीं, महत्वपूर्ण सदा समस्या ही है। क्योंकि अंततः तो समस्या को उसकी समग्रता में जान लेना ही समाधान बनता है।


और गणित में एसी भूल हो तो हो लेकिन क्या जीवन में भी ऐसा ही नहीं होता है?


क्या वास्तविक समस्या को जाने बिना ही जब हम समाधान के लिए श्रम करने लगते हैं तो सारा श्रम व्यर्थ ही नहीं, आत्मघाती भी सिद्ध नहीं होता है?


मित्र, समस्या को ही जो सही रूप में नहीं जानता है, वह यदि किसी अन्य ही प्रश्न को प्रश्न जानकर हल करता हो तो भी आश्चर्य नहीं है।


क्या आपको उस जहाज़ के बाबत कुछ भी पता नहीं है, जो कि डूब रहा था; और कुछ लोग उसे डूबने से बचाने के लिए उस पर पालिश कर रहे थे। मैं तो सोचता हूँ कि आपको उस जहाज़ के संबंध में ज़रूर ही पता होगा, क्योंकि मैं तो आपको भी उस पर ही सवार देखता हूँ; और न केवल सवार ही देखता हूँ बल्कि यह भी देखता हूँ कि जहाज़ डूब रहा है और आप उसे बचाने के लिए उस पर पालिश करने में लगे हैं!


मित्र, वह जहाज़ जीवन का ही जहाज़ तो है।


फूल और कांटे (अप्रकाशित)

ओशो

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