आदमी मुक्त हो सकता है। उसे प्रयास भी
करना पड़ेगा। लेकिन प्रयास के भी पहले उसे अपने से विराट को पुकार लेना होगा।
प्रयास से भी पहले उसे प्रार्थना करनी हज़ोाई। प्रार्थना से ही उसका प्रयास शुरू
होगा। समझें कि प्रार्थना उसका पहला प्रयास है। लेकिन प्रार्थना प्रयास जैसा नहीं
मालूम होती।
प्रार्थना का मतलब है—तू कर। प्रार्थना का अर्थ है—तू सहायता दे। प्रार्थना का अर्थ है—तू मेरे हाथ को पकड़। प्रार्थना का अर्थ है—तू मुझे बाहर निकाल। अगर प्रार्थना इतने
पर भी रुक जाए, तो भी
प्रार्थना काम नहीं कर पाएगी। अगर प्रार्थना करके ही कैदी सो जाए, तो भी कारागृह से मुक्त नहीं हो पाएगा।
प्रार्थना केवल एक आनेवाले प्रयास का सूत्रपात है।
प्रार्थना जरूरी है, काफी नहीं है। प्रयास अनिवार्य है, पर्याप्त नहीं। और जहां प्रार्थना और
प्रयास संयुक्त हो जाते हैं, वहां विराट
ऊर्जा का जन्म होता है, जिससे असंभव
भी संभव है।
प्रार्थना का अर्थ है, मैं उस विराट की सहायता मांगता हूं। और
प्रयास का अर्थ है कि मैं उस विराट के साथ चलने को राजी है सहयोग करूंगा।
प्रार्थना का अर्थ है, तुम मुझे
उठाओ। और प्रयास का अर्थ है, मैं उठने की
जितनी मेरे पास ताकत है, पूरी लगा
दूंगा। लेकिन प्रार्थना का यह भी अर्थ है कि मैं अपनी ताकत से न उठ सकूंगा, तुम्हारी जरूरत है। और प्रयास का यह अर्थ
है कि अगर मैं ही न उठना चाहूं तो तुम्हारी अनुकंपा भी मुझे कैसे उठा सकेगी? इसलिए मैं उठूंगा, अपने पैरों पर खड़ा होऊंगा। इन जंजीरों को
तोड़ने की कोशिश करूंगा। फिर भी मैं जानता हूं कि मैं कमजोर हूं और तुम्हारी सहायता
के बिना कुछ भी नहीं हो सकता।
कैवल्य उपनिषद
ओशो
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