रामकृष्ण के पास केशवचंद्र मिलने गये। और
केशवचंद्र ने कहा कि मेरा ईश्वर में भरोसा नहीं है! मैं विवाद करने आया हूं। मैं
आपके भरोसे को खंडित कर दूंगा। आप मेरी चुनौती स्वीकार करें। रामकृष्ण ने कहा.
बहुत मुश्किल है। तुम यह कर न पाओगे। तुम्हारी हार निश्चित है। नहीं कि मैं विवाद
कर सकता हूं। नहीं कि मेरे पास कोई तर्क है। मेरे पास कोई तर्क नहीं, लेकिन मैंने प्रभु को जाना है। तुम लाख खंडन करो, क्या फर्क पड़ता है? मैं फिर भी
जानता हूं कि परमात्मा है। यह मेरा अपना निजी अनुभव है, तुम इसे छीन न सकोगे। यह मेरी श्वास—श्वास में समाया है। यह मेरे हृदय की धड़कन— धड़कन में व्यापा है। यह मेरे रोएं—रोएं की पुकार है, इसे तुम छीन न
सकोगे। तुम्हारे तर्क का उत्तर मैं न दे पाऊंगा, केशवचंद्र।
तुम बुद्धिमान हो, शास्त्रज्ञ हो, ज्ञानी हो, पंडित हो; मैं अनपढ़ गंवार हूं—रामकृष्ण ने
कहा। लेकिन उलझोगे तो गंवार से जीतोगे नहीं, क्योंकि मेरे
कोई सिद्धांत थोड़े ही हैं, कोई विश्वास
थोड़े ही हैं। ऐसा मेरा अनुभव है। तुम मेरे अनुभव को कैसे खंडित करोगे? जो मैंने जाना है उसे तुम कैसे अनजाना करवा दोगे? मैंने इन आंखों से देखा है। लाख दुनिया कहे सारी दुनिया एक
तरफ हो जाये और कहे कि ईश्वर नहीं है, तो भी मैं
कहता रहूंगा, है। क्योंकि मैंने तो जाना है!
केशव तो नहीं माने, उन्होंने तो बड़ा विवाद किया। और रामकृष्ण उनके विवाद को
सुनते रहे एक भी तर्क का उत्तर न दिया। बीच—बीच में जब
केशवचंद्र कोई बहुत गंभीर तर्क उठाते तो वे खड़े हो—हो कर
केशवचंद्र को गले लगा लेते। केशवचंद्र बहुत बेचैन होने लगे, वह जो भीड़ इकट्ठी हो गयी थी देखने, केशवचंद्र के शिष्य आ गये थे कि बड़ा विवाद होगा, वे भी जरा बेचैन होने लगे। और केशवचंद्र को भी पसीना आने
लगा। और केशवचंद्र ने कहा, यह मामला क्या
है? आप होश में हैं? मैं आपके
विपरीत बोल रहा हूं!
रामकृष्ण ने कहा कि तुम सोचते हो कि मेरे
विपरीत बोल रहे हो। तुम्हें देख कर मुझे परमात्मा पर और भरोसा आने लगा है। जब ऐसी
प्रतिभा हो सकती है संसार में तो बिना परमात्मा के कैसे होगी? तुम्हारी प्रतिभा अनूठी है। तुम्हारे तर्क बहुमूल्य हैं—बड़ी धार है तुम्हारे तर्कों में। यह प्रमाण है कि प्रभु है।
यह तुम्हारा चैतन्य, यह तुम्हारा तर्क, ये तुम्हारे विचार, यह तुम्हारी
प्रणाली—इस बात का सबूत है कि परमात्मा है। जब फूल
लगते हैं तो सबूत है कि वृक्ष होगा। फूल लाख उपाय करें, वृक्ष को खंडित न कर पायेंगे। उनका होना ही वृक्ष का सबूत
हो जाता है। फूल लाख गवाही दें अदालत में जा कर कि वृक्ष नहीं होते हैं, लेकिन फूलों की गवाही ही बता देगी कि वृक्ष होते हैं, अन्यथा फूल कहां से आयेंगे ?
रामकृष्ण ने कहा : मैं तो गंवार हूं मेरे
पास तो कोई प्रतिभा का फूल नहीं है; तुम्हारे पास
तो प्रतिभा का कमल है। मैं हजार—हजार धन्यवाद
से भरा हूं। इसलिए उठ—उठ कर तुम्हें
गले लगता हूं कि हे प्रभु, तूने खूब किया, केशवचंद्र को मेरे पास भेजा! तेरी एक झलक और मिली! तुझसे
मेरी एक पहचान और हुई! एक नये द्वार से तुझे फिर देखा! अब तो कोई लाख उपाय करे
केशव, तुम्हें देख लिया, अब तो कभी मान
न सकूंगा कि ईश्वर नहीं है।
केशवचंद्र ने अपने स्मरणों में लिखा है कि
जिस एक आदमी से मैं हार गया, वे रामकृष्ण
हैं। इस आदमी से जीतने का उपाय न था। उस रात मैं सो न सका और बार—बार सोचने लगा, जरूर इस आदमी
को कोई अनुभव हुआ है। कोई ऐसा प्रगाढ़ अनुभव हुआ है कि कोई तर्क उसे डगमगाते नहीं।
इतना प्रगाढ़ अनुभव हुआ है कि तर्कों के माध्यम से भी, जो विपरीत तर्क हैं उनसे भी वही अनुभव सिद्ध होता है। नहीं, इस आदमी के चरणों में बैठना होगा। इस आदमी से सीखना होगा।
इसे जो दिखाई पड़ा है वह मुझे भी देखना होगा। इसके पास आंख है, मेरे पास तर्क है। तर्क काफी नहीं। तर्क से कब किसी की भूख
मिटी है! और तर्क से कब किसका कंठ तृप्त हुआ!
निश्चित जानने का अर्थ है रामकृष्ण की
भांति जानना। निश्चित जानने का अर्थ है-विश्वास नहीं; अनुभव से आती है जो श्रद्धा, वही।
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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