लोग मेरे पास आते हैं, और वह कहते हैं: ‘हम परमात्मा को जानना चाहते है—परमात्मा कहां हैं?’ अब यह प्रश्न ही अर्थ हीन है? वह कहां नहीं है? तुम पूछते हो कि वह कहां है, तुम्हें बिलकुल ही अंधा होना चाहिए। क्या तुम उसे देख नहीं सकते हो? केवल वही तो है, वृक्षों में, पक्षीयों में, पशुओं में, पहाड़ों में, जल में, नब में, सब जगह वहीं तो है। एक स्त्री में एक पुरुष में, पिता में माता में, बेटे में कहां नहीं हैं। उसी ने तो इतने सारे रुप ले लिए है। हर तरफ वही तो है। वह हर जगह से तुम्हें, पुकार रहा है, और तुम सुनते ही नहीं हो। तुमने अपनी आंखें हर तरफ से बंद कर ली है। तुमने अपनी आंखों पर पट्टियां बाँध ली है। तुम बस किसी और देखते ही नहीं हो।
तुम एक बहुत ही संकरे ढंग से, बड़े ही केंद्रीभूत तरीके से जी रहे हो। यदि तुम धन की और देख रहे होते हो, तुम बस धन की तरफ देखते हो; फिर तुम किसी और तरफ नहीं देखते हो। यदि तुम शक्ति की तलाश में होते हो, तुम केवल शक्ति की और ही देखते हो, तुम किसी और तरफ नहीं देखते। और स्मरण रखना : धन में परमात्मा नहीं है—क्योंकि धन तो मनुष्य निर्मित है, और परमात्मा तो मनुष्य निर्मित हो ही नहीं सकता। जब मैं कहता हूं कि परमात्मा हर जगह है, स्मरण रखना कि उन चीजों को, जिन्हें मनुष्य ने निर्मित किया है, इसमें शामिल नहीं करना है। परमात्मा मनुष्य-निर्मित नहीं हो सकता। परमात्मा धन में नहीं है। धन तो मनुष्य का एक बड़ी चालाकी भरा आविष्कार है। और ईश्वर शक्ति में भी नहीं है, वह भी मनुष्य का एक पागलपन है। किसी पर अधिपत्य जमाने का विचार ही विक्षिप्त है। यह विचार ही कि ‘मैं सत्ता में रहूं और दूसरे सत्ता-विहीन रहे,’ एक पागल आदमी का विचार है, एक विनष्टकारी विचार है।
परमात्मा राजनीति में नहीं है और परमात्मा धन में भी नहीं है। न ही परमात्मा महत्वकांक्षा में ही है। लेकिन परमात्मा हर उस चीज में है, जहां मनुष्य ने उसे नष्ट नहीं किया। जहां मनुष्य ने कोई अपनी ही रचना नहीं कि है। आधुनिक जगत में यह सर्वाधिक कठिन बातों में से एक है। क्योंकि चारों तरफ से तुम इतनी मनुष्य-निर्मित चीजों से धिरे हुए हो। क्या तुम बस इस तथ्य को देख नहीं पाते?
जब तुम एक वृक्ष के समीप बैठे होते हो, परमात्मा को महसूस करना आसान है। जब तुम कोलतार की बनी सड़क पर बैठे होते हो, तुम उस कोलतार की सड़क पर परमात्मा को वहां न पाओगे। यह बहुत सख्त है। तब तुम किसी आधुनिक शहर में होते हो, चारों और बस सीमेंट और कंक्रीट की इमारतें होती हैं, इस कंक्रीट और सीमेंट के जंगल में तुम परमात्मा को नहीं खोज सकते। तुम इसे नहीं महसूस कर सकते। क्योंकि मनुष्य निर्मित चीजें विकसित नहीं होती, यही तो सारी समस्या है। मनुष्य निर्मित चीजें विकसित नहीं होती। वे प्राय मृत है। उनमें कुछ जीवन नहीं होता। ईश्वर निर्मित चीजें विकसित होती है, पहाड़ तक बढ़ते है। हिमालय अभी भी बढ़ रहा है। ऊंचे और ऊंचे होता जा रहा है। एक वृक्ष उगता है, एक बच्चा विकसित होता है।
मनुष्य-निर्मित चीजें बढ़ती नहीं, महानतम चीजे भी। एक पिकासो का चित्र भी कभी बढ़ेगा नहीं। तब सीमेंट, कंक्रिट के जंगल तो क्या बढ़ेगें? बीथो वन का संगीत तक कभी विकसित नहीं होगा, तब प्रोधौगिकी का, मनुष्य-निर्मित यंत्रों का तो कहना ही क्या?
देखो! जहां कहीं भी तुम वृद्धि देखो, वहां ईश्वर है—क्योंकि केवल ईश्वर ही विकसित होता है, कुछ और नहीं। हर चीज में बस ईश्वर ही बढ़ता है। जब वृक्ष में कोई पत्ता उग रहा होता तो वह ईश्वर ही है। जब कोई पक्षी गीत गा रहा होता है, तब ईश्वर ही गा रहा है। जब कोई पक्षी उड़ान भर रहा होता है, तब परमात्मा उड़ान भर रहा होता है। जब एक छोटा बच्चा खिलखिलाकर हंस रहा होता है तब परमात्मा ही खिलखिला रहा होता है। जब तुम किसी स्त्री या पुरूष की आंखों से आंसुओं को बहते देखते हो, यह ईश्वर ही रो रहा होता है।
जहां कहीं भी तुम जीवंतता पाओं, हां; ईश्वर वहीं है। ध्यान पूर्वक सुनो। समीप आओ। ध्यान पूर्वक महसूस करो। सावधान हो जाओ। तुम पवित्र भूमि पर हो।
तंत्रा-विज्ञान- (सरहा के गीत)
ओशो
No comments:
Post a Comment