मेरे पास लोग आते हैं। कोई कहता है, हम क्रोध करते हैं फिर
पश्चात्ताप करते हैं। लेकिन फिर क्रोध हो जाता है, फिर
पश्चात्ताप करते हैं, फिर क्रोध हो जाता है। हम क्या करें?
मैं उनसे कहता हूं तुमने क्रोध छोड़ने की जीवन भर कोशिश की। अब कृपा
करके इतना करो, पश्चात्ताप छोड़ दो। वे कहते हैं, इससे क्या लाभ होगा?
पश्चात्ताप कर—कर के क्रोध नहीं छूटा और आप हमें और उल्टी शिक्षा दे रहे हैं—पश्चात्ताप छोड़ दो। मैं उनसे कहता हूं तुम कुछ तो छोड़ो। पश्चाताप छोड़ो;
क्रोध तो छूटता नहीं। एक उपाय करके देखो। क्योंकि पश्चात्ताप ही हो
सकता है, क्रोध को बनाए रखने में ईंधन का काम कर रहा है।
तुमने किसी को गाली दी,
क्रोध हो गया। घर आए, सोचा यह तो बड़ी बुरी बात
हो गई। तुम्हारे अहंकार की प्रतिमा खंडित हुई। तुम सोचते हो, तुम बड़े सज्जन, सतपुरुष! तुमसे गाली निकली? यह होना ही नहीं था। अब तुम पश्चात्ताप करके लीपापोती कर रहे हो। वह जो
गाली ने तुम्हारी प्रतिमा पर काले दाग फेंक दिए, उनको धो रहे
हो पश्चात्ताप करके कि मैं तो भला आदमी हूं। हो गया, मेरे
बावजूद हो गया। करना नहीं चाहता था, हो गया। परिस्थिति ऐसी आ
गई कि हो गया। चूक हो गई लेकिन चूक करने की कोई मंशा न थी। देखो पश्चात्ताप कर रहा
हूं अब और क्या करूं? पश्चात्ताप करके तुमने फिर पुताई कर
ली। फिर तुम उसी जगह पर पहुंच गए जहां तुम क्रोध करने के पहले थे। अब तुम फिर
क्रोध करने के लिए तैयार हो गए। अब फिर तुम सज्जन, साधुपुरुष
हो गए।
मैं तुमसे कहता हूं कम से कम पश्चात्ताप न करो। इतनी गांठ क्या
बांधनी! हो गया सो हो गया। और तुम चकित होओगे, अगर तुम पश्चात्ताप छोड़ दो तो दुबारा क्रोध न
कर सकोगे। क्योंकि पश्चात्ताप अगर छोड़ दो तो तुम दुबारा संत और साधुपुरुष न हो
सकोगे। तुम जानोगे मैं बुरा आदमी हूं क्रोध मुझसे होता है।
यह बड़ा भारी अरनुभव होगा। तुम धोखा न दे सकोगे अपने को। तुम
जाकर अपने मित्रों को कह दोगे कि भाई,
मैं बुरा आदमी हूं कभी—कभी गाली भी देता हूं—बावजूद नहीं, मुझसे ही होती है, निकलती है। क्षमा क्या मांगूं? आदमी बुरा हूं। तुम
सोच—समझ कर ही मुझसे संबंध बनाओ। तुम जाकर घोषणा कर दोगे
वृहत संसार में कि मैं बुरा आदमी हूं मुझसे जरा सावधान रहो। दोस्ती मत बनाना,
कभी न कभी बुरा करूंगा। काटूंगा। काटना मेरी आदत है।
अगर तुम ऐसी घोषणा कर सको तो देखते हो कैसी क्रांति घटित न हो
जाए! तम्हारा अहंकार तुमने खंडित कर दिया। क्रोध तो अहंकार से उठता है। जितना
तुम्हारा अहंकार चला जाए उतना ही क्रोध नहीं उठता। और पश्चात्ताप अहंकार को मजबूत
करता है। इसलिए पश्चात्ताप से कभी किसी का क्रोध नहीं जाता।
अष्टावक्र महागीता
ओशो
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