..... जैसे कि क्षण—क्षण मेरी परीक्षा ली जा रही है फिर भी मैं इसके प्रति सजग नहीं हूं और यह
भी नहीं जानता हूं कि कहीं यह सब मेरे मन का खेल तो नहीं है! यह प्रश्न भी किसी
अन्य शक्ति द्वारा ही बनाया गया लगता है जो कि मेरी शक्ति और नियंत्रण के बाहर है
कृपया बतायें कि यह सब क्या है?
यह इतना साफ है! इसमें कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं है। यह
कोई प्रश्न नहीं है, केवल तथ्य का कथन है। और यह शुभ है। यदि वस्तुत: ही तुम्हें ऐसा लगता है
कि तुम एक कठपुतली हो, तो फिर तुम्हें कुछ भी करने की जरूरत
नहीं है। यदि तुम्हें सच में ऐसी प्रतीति हो रही है कि तुम अज्ञात शक्तियों के हाथ
में हो, तो तुम नहीं हो। यही तो चाहिए—कि
तुम नहीं हो जाओ।
लेकिन मैं सोचता हूं कि जब तुम कहते हो कि तुम्हें लगता है तुम
एक कठपुतली की भांति हो, तो उसमें कुछ निंदा का भाव है। तुम्हें यह अच्छा नहीं लगता—कठपुतली की भांति! लेकिन फिर भी तुम तो हो ही। कौन है जो कठपुतली की भांति
महसूस कर रहा है? यदि वास्तव में ही तुम कठपुतली हो तो फिर
कठपुतली की भांति महसूस कौन कर रहा है? कौन महसूस कर सकता है?
कौन है वहां जो महसूस करे? तुम कठपुतली हो और
बात खतम हो गई।
इसलिए एक काम करो : यह खयाल छोड़ दो कि तुम एक कठपुतली हो। सिर्फ
अपने चारों ओर उपस्थित विराट की शक्तियों के प्रति सजग होओ। तुम कुछ भी नहीं हो, कठपुतली भी नहीं। तुम सिर्फ
बहुत—सी शक्तियों का एक मिलन—बिंदु हो,
सिर्फ एक चौराहा हो जहां से बहुत—सी शक्तियां
गुजरती हैं। और क्योंकि बहुत—सी शक्तियां गुजरती हैं तो एक
बिंदु बन जाता है। यदि तुम बहुत—सी रेखाएं खींचो जो कि एक—दूसरे को काटती हों तो एक बिंदु पैदा हो जायेगा। वह बिंदु ही तुम्हारा
अहंकार बन जाता है, और तुम्हें प्रतीति होती है कि तुम हो।
तुम नहीं हो,
केवल विराट है। तुम एक कठपुतली की भांति भी नहीं हो, वह भी अहंकार को एक नये रूप में बनाये रखना है। और चूंइक अहंकार अभी बना
है, इसलिए इस परिस्थिति के प्रति एक निंदा का भाव महसूस होता
है।
आनंदित होओ कि तुम नहीं हो, क्योंकि तुम्हारे खोते ही, सारे दुख भी खो जाते हैं। अहंकार के विलीन होते ही फिर कोई नर्क नहीं है।
तुम मुक्त हो गये—अपने आप से मुक्त हो गये। फिर केवल विराट
की शक्तियां ही शेष बची जो हमेशा से क्रियाशील हैं। तुम तो कहीं भी नहीं हो,
कठपुतली की भांति भी नहीं।
यदि यह बात तुम्हारे भीतर चली जाये तो तुम पहुंच गये। तुम उस
सत्य तक पहुंच गये जहां कि सारे धर्म तुम्हें लाना चाहते हैं। तुमने अंतिम केंद्र
को छू लिया, अंतिम
आधार पर पहुंच गये।
लेकिन यह कठिन है। शायद तुम कल्पना कर रहे हो या सच में तुम्हीं
इसे गढ़ रहे हो। यह बहुत ही कठिन है। तुम सोच सकते हो, लेकिन सोचने से कुछ भी न
होगा—जब तक कि तुम इसे महसूस न करो, जब
तक कि यह तुम्हारी प्रतीति न हो जाये। यह सिर्फ गहरे ध्यान से ही हो सकता है,
अन्यथा यह नहीं हो सकता। केवल ध्यान में ही तुम उस बिंदु पर आ सकते
हो जहां तुम्हें प्रतीति होती है कि ''सब कुछ हो रहा है और
मैं कर्ता नहीं हूं। ''और केवल इतना ही नहीं कि ''मैं करने वाला नहीं हूं'', बल्कि तुम वहा हो ही नहीं
और चीजें अवकाश में घटित हो रही हैं। तुम एक खाली स्थान हो गये हो, और वहां चीजें घट रही हैं, और तुम वहा नहीं हो।
यह तभी हो सकता है जब तुम्हारे सारे विचार बंद हो जायें, और तुम्हारा अस्तित्व
बादलों से रिक्त हो जाये—विचार के बादलों से रिक्त। तुम उस
शुद्ध अस्तित्व में होते हो, तुम इसे महसूस कर सकते हो।
लेकिन यदि तुम महसूस करते हो कि ऐसा हो रहा है तो यह एक अच्छा संकेत है। आगे
बढ़ों... और इस कठपुतली को भी छोड़ो, इसे लादे मत रहो। जब तुम
ही नहीं हो तो फिर इस कठपुतली को क्यों ढोना? उसे भी गिरा
दो। अहंकार से पूरी तरह मुक्त हो जाओ।
केनोउपनिषद
ओशो
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