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Sunday, November 11, 2018

हम सब एक-दूसरे को सताने में लगे हुए हैं


हिटलर से बचना बहुत आसान है। गांधी से बचना बहुत मुश्किल है। क्योंकि हिटलर तो सीधा दुश्मन की तरह सताता है। गांधी तो आपके हित में सताते हैं। हिटलर आपकी छाती पर छुरा रख देता है। गांधी अपनी छाती पर छुरा रख लेते हैं। वे कहते हैं, मैं मर जाऊंगा अगर मेरी न मानी। इसको वे अहिंसा कहते हैं।


दूसरे को मारना हिंसा है, अपने को मारना अहिंसा कैसे हो जाएगा? अगर मैं आपकी छाती पर छुरा रख कर कहूं कि मेरी बात मान लें, तो यह हिंसा है और क्रिमिनल एक्ट है। और मैं अपनी छाती पर छुरा रख कर कहूं कि मैं मर जाऊंगा, आग लगा कर जल जाऊंगा, तो मैं महात्मा हो जाऊंगा। यह भी क्रिमिनल एक्ट है, यह भी हिंसा है। लेकिन यह अच्छे ढंग की हिंसा है, इसमें दूसरे आदमी को हम बड़ी तरकीब से सता रहे हैं। अगर मैं आपके दरवाजे पर बैठ जाऊं और कहूं कि भूखा मर जाऊंगा अगर मेरी बात न मानी, तो मेरी बात गलत हो तो भी मेरी यह जो अच्छे ढंग की हिंसा है यह आपको मजबूर कर देगी, आपको सता डालेगी।

बुरे आदमी सता रहे हैं, अच्छे आदमी सता रहे हैं। हम सब एक-दूसरे को सताने में लगे हुए हैं। और हमने ऐसी तरकीबें खोज रखी हैं कि पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि हम कैसे-कैसे सता रहे हैं। अगर आप किसी एक स्त्री को प्रेम करते हैं, तो आप बहुत जल्दी उसे सताना शुरू कर देते हैं। एक स्त्री अगर आपको प्रेम करती है, तो बहुत जल्दी, पता नहीं चलता, कब उसने आपको सताना शुरू कर दिया। हम एक-दूसरे की गर्दन को दबा लेते हैं। जिन्हें हम प्रेम करते हैं, उनकी गर्दन पर भी फांसी बन जाते हैं।

 
बेटों को बाप सता लेते हैं, जब वे छोटे होते हैं। बच्चे कमजोर होते हैं, बाप ताकतवर होते हैं। लेकिन बहुत जल्दी नाव उलट जाएगी, बच्चे ताकतवर हो जाएंगे, बाप बूढ़े हो जाएंगे। फिर बच्चे सताना शुरू कर देंगे। बुढ़ापे में बच्चे सता रहे हैं, क्योंकि अब वे ताकतवर हो गए हैं। बाप ने सता लिया है जवानी में। बच्चे कमजोर थे, सताना आसान था। जब जो सता सकता है, एक-दूसरे को सता रहा है। हम सब एक-दूसरे को परेशान कर रहे हैं। कुछ लोगों ने तो खोज की है कि सताने वाले नये-नये रास्ते खोजते रहते हैं। 
 

औरंगजेब ने अपने बाप को बंद कर दिया था। और जब बाप को उसने लाल किले में बंद कर दिया तो दस-पांच दिन के बाद बाप ने उसे खबर भेजी कि यहां अकेले में मेरा मन नहीं लगता है, अगर तुम तीस लड़के मुझे दे दो तो मैं उन्हें पढ़ाने का काम करूं तो मेरा मन लग जाए।

 
औरंगजेब ने अपनी आत्मकथा में लिखवाया है कि मेरे बाप को दूसरों को सताने के बिना इतना बेमानी लगता था जीना कि उसने तीस लड़के मांग लिए, उनके बीच डंडा लेकर वह बादशाह बन कर बैठ गया और उनको सताना शुरू कर दिया, उनको शिक्षा देने लगा।

इस संबंध में बहुत खोज-बीन चलती है कि बहुत से लोग जो धंधा चुनते हैं, उस धंधे में भी उनकी वृत्ति काम करती है। वे सताने का धंधा चुन सकते हैं, सताने की व्यवस्था चुन सकते हैं।

 
यह जो आदमी है दुख से भरा हुआ, यह जो आदमी एक-दूसरे को सताए चला जा रहा है और जिसने इस सारी पृथ्वी को नरक बना दिया है...

ऐसा कि मैंने सुना है कि एक आदमी मरा। उसकी पत्नी एक प्रेतात्मविद के पास गई, एक भूत-प्रेत बुलाने वाले के पास गई। और उसने कहा कि मैंने सुना है कि तुम प्रेतात्माओं से बात करवा देते हो। मैं जरा अपने पति के संबंध में खबर लेना चाहती हूं। तो उसने उसके पति की आत्मा को बुलाया। 

उसकी पत्नी ने पूछा कि आप मजे में तो हैं?

उसने कहा, मैं बहुत ही बहुत मजे में हूं, एकदम आनंद में हूं।

तो उसकी पत्नी ने कहा, और स्वर्ग के संबंध में और कुछ खबरें बताओ!
 
उसने कहा, स्वर्ग? तुम गलत समझीं, मैं नरक में आ गया हूं।

उसकी स्त्री ने कहा कि नरक में हो और मजे में हो?

तो उसने कहा, अब पृथ्वी से नरक बहुत सुंदर और स्वस्थ और शांत और आनंदपूर्ण है। अब पृथ्वी से नरक बहुत सुखद है। मैं तो तुलना में कह रहा हूं कि जहां से आया हूं मर कर वहां से नरक बहुत सुखद है। स्वर्ग का मुझे कोई पता नहीं। मैं नरक में आया हुआ हूं। लेकिन मैं तुझे खबर कर दूं कि नियम बदल गए हैं। पहले जो लोग पृथ्वी पर गुनाह करते थे वे नरक भेज दिए जाते थे, अब नरक में जो लोग गुनाह करते हैं वे पृथ्वी पर भेज दिए जाते हैं।

यह जो इतने दुख से भरा हुआ मनुष्य है, इसमें कैसे फूल खिलें? इसकी जिंदगी में आशीर्वाद कैसे प्रकटे? इसके जीवन में आनंद की झलक कैसे आए? किरण कैसे आए?


और अगर आनंद की झलक न आ पाए, तो आदमी जीया और न जीया बराबर हो गया। जीना और न जीना बराबर हो गया। और अगर आनंद की झलक न आ पाए तो जीवन से जो हमें मिल सकता था, वह हम ले ही न पाए। पौधा लगा जरूर, लेकिन फूल न खिले। दीया ले आए घर में जरूर, लेकिन कभी उसमें ज्योति न जली। एक वीणा खरीद ली और घर में टिका दी, लेकिन कभी उसके तारों पर हाथ न गए और कभी संगीत पैदा न हुआ।


बहुत लोग ऐसे ही हैं, जिन्होंने अपने घरों में वीणा को रख लिया है, लेकिन उससे कभी संगीत पैदा नहीं होता।


वीणा अकेली संगीत पैदा नहीं कर सकती है। और जन्म ले लेना काफी नहीं है, जन्म के बाद एक और जन्म भी चाहिए। जन्म के बाद एक और नया जन्म भी चाहिए। एक जन्म तो मिलता है मां-बाप से और एक जन्म स्वयं अपने को देना पड़ता है। जन्म के साथ जीवन नहीं मिलता, सिर्फ वीणा मिलती है, संगीत नहीं मिलता। संगीत तो सीखना पड़ता है।

धर्म साधना 

ओशो

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