मैंने कहा कि तू फिर से सोच, यह पुण्यभूमि है कि यहां पापी बड़े अदभुत हैं कि इतने सब हुए फिर भी वे बिना बदले बैठे
हैं? कि सब अवतार गए, हमारे चिकने घड़े पर
लकीर न खींच पाए! कि सब तीर्थंकर आए, हमने कहा कि आओ और जाओ!
हम उनमें से नहीं हैं कि बातों में आ जाएं!
क्या,
मतलब क्या होता है न: एक घर में अगर गांव भर के डाक्टर आएं तो इसका मतलब
है कि गांव में वही घर सबसे ज्यादा बीमार है। सारे
अवतारों को यहीं पैदा होना पड़े! और कृष्ण ने कहा है गीता में कि जब धर्म की ग्लानि
बढती है, और जब पाप
बढ़ जाता है, और जब दुष्टजन बढ़ जाते हैं, तब मैं आता हूं। और सब अवतार यहीं आए। तो मतलब क्या है? पुण्य भूमि है?
अगर कृष्ण का वाक्य सही है, तो जहा उनको नहीं जाना पड़ा,
पुण्य भूमि वहा हो सकती है। लेकिन सबको चुकता यहां
आना पड़ा! बात जाहिर है कि इस मुल्क की आत्मा बिलकुल चिकनी हो गई है।
हमने इतनी अच्छी बातें सुनी हैं और सुन सुन कर हम ऐसे तल्लीन हो गए हैं
कि करने की हमने कभी फिक्र ही नहीं की है।
समझ आपकी तब तक गहरी न हो पाएगी, पूरी न हो पाएगी, जब तक समझ आपकी अंतरात्मा में प्रविष्ट नहीं होती। और आप कोई निर्णय लें,
तो ही समझ अंतस में प्रविष्ट होती है। निर्णय द्वार है। छोटे से निर्णय
भी बड़े क्रांतिकारी हैं। किस बात का निर्णय लिया, यह बहुत मूल्य
का नहीं है, निर्णय लिया। इस लेने में ही आपके प्राण इकट्ठे हो
जाते हैं, एकजुट हो जाते हैं। निर्णय लेते ही आप दूसरे आदमी हो
जाते हैं। वह निर्णय बिलकुल क्षुद्र भी हो सकता है।
मैं आपसे कहता हूं कि दस मिनट खीसें भी नहीं।
बड़ी अमानवीय बात मालूम पड़ती है;
आपको खांसी आ रही है और मैं खांसने तक नहीं देता! दुष्टता मालूम पड़ती
है। सभा में आप बैठे हैं, मैं आपको कहता हूं, खीसें मत, बिलकुल खांसी बंद रखें। पर आपको खयाल में नहीं है, इतना छोटा सा निर्णय भी आपके
भीतर आत्मा का जन्म बनता है : दस मिनट नहीं खांसूगा! और अगर इसमें आप सफल हो गए,
तो एक खुशी की लहर रोएं—रोएं में फैल जाती है,
आपको पता चलता है कि मैं कोई निर्णय लूं तो पूरा कर सकता हूं।
खांसी,
छींक बड़ी गड़बड़ चीजें हैं। उनको रोको तो और जोर से आती हैं। रोको तो सारा
ध्यान उन्हीं पर केंद्रित हो जाता है। रोको तो खांसी भी बगावत करती है। वह कहती है,
ऐसा तो कभी नहीं किया! यह क्या नया ढंग सीख रहे हैं? यह क्या बात है? यह तो अपना कभी संबंध नहीं रहा ऐसा कि
मैं आऊं और आप रोकें! यह तो मैं न भी आऊं, दूसरे को आ रही हो,
तो आप खास लेते थे! आपको न भी हो, तो दूसरे की
भी पकड़ लेते थे! यह क्या हुआ है?
लेकिन अगर दस मिनट भी आप बिना खांसे रुक जाते
हैं, तो आपके और
शरीर के बीच का संबंध इस छोटी सी बात से भी बदल रहा है।
छोटे छोटे निर्णय, बहुत छोटे छोटे निर्णय
भी बड़े परिणामकारी हैं। छोटे से कोई संबंध नहीं है, निर्णय से संबंध है, डिसीसिवनेस, निर्णायक बुद्धि।
तो आपकी समझ धीरे धीरे गहरी उतर जाएगी।
तो जो मैं कह रहा हूं, उसे सिर्फ सुन न लें, उसे थोड़ा
प्रयोग करें। उपनिषद बड़े व्यावहारिक पाठ हैं। इनका सिद्धांत से कोई संबंध नहीं है। इनका
आपको बदलने, रूपांतरित करने की कीमिया से संबंध है। ये तो सीधे
सूत्र हैं, जिनसे नए मनुष्य का निर्माण हो जाता है।
अध्यात्म उपनिषद
ओशो
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